मज़दूरों के लिए मोदी का मूल मंत्र- काम करो न करो, ज़िक्र ज़रूर करो

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By खुशबू सिंह

भारत में पहला लॉकडाउन 24 मार्च को हुआ था, 27 मार्च से मज़दूरों के पलायन का सिलसिला शुरू हो गया। लॉकडाउन के महज 6 दिन के भीतर पलायन कर रहें 34 मज़दूरों की मौत अलग-अलग तरह से हो हुई।

8 मई को औरंगाबाद के जालना रेलवे लाइन के पास पटरी पर सो रहे 17 मज़दूरों को मालगाड़ी ने कुचल दिया। 16 मई को उत्तरप्रदेश के औरैया जिले में ट्रक हादसे में 24 मज़दूरों की जान चली गई

30 मई को रेलेव पुलिस बल ने एक डाटा साझा करते हुए बताया था, की 9 मई से 27 मई के बीच श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में 80 मज़दूरों की जान जा चुकी है।

इन सभी घटनाओं के बीच देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश वासियों से तीन बार मन की बात कर चुके हैं। इस बार इन घटनाओं का प्रधानमंत्री ने कोई जिक्र नहीं किया है।

इस दौरान पीएम मोदी को मज़दूरों की याद आई और इस याद में उन्होंने मज़दूरों की झोली में संवेदनाओं की टोकरी उड़ेल दी।

जिन मज़दूरों के कंधों पर इस देश की पूरी अर्थव्यस्था टिकी है क्या वे मज़दूर देश के प्रधानमंत्री के ‘मन’ का विषय हैं?

अगर हैं तो ‘मन की बात’ में मज़दूरों के बारे में सिर्फ ज़िक्र ही क्यों किया जाता है, फ्रिक क्यों नहीं हैं। उन्हें जिसने इस देश की अर्थव्यस्था को 2.94 ट्रिलियन डॉलर तक पहुचाने में साथ दिया है।

पहले लॉकडाउन के 6 दिन बाद यानी 29 मार्च को प्रधानमंत्री ने मन की बात की। उस समय मज़दूरों का पलायन बड़ा मुद्दा बनता जा रहा था, पर मज़दूरों के बारे में कोई बात नहीं हुई।

अचानक लॉकडाउन की घोषणा के कारण सभी लोग अपने-अपने घरों में कैद हो गए, इस बात पर प्रधानमंत्री ने देश वासियों से माफी भी मांगी।

लेकिन उन गरीब मज़दूरों से प्रधानामंत्री ने एक बार भी माफी नहीं मांगा जो रातों-रात घर से बेघर हो गए, हाथ सो रोजी रोटी छिन गई।

26 अप्रैल को मोदी ने दूसरी बार मन की बात की। इस बार उन्होंने शासन-प्रशासन, किसान, कोरोना वॉरिर्यस आदि इन सभी का जिक्र किया।

लेकिन इस बार भी उनके मन से मज़दूर ग़ायब ही रहे जबकि सड़कों पर मज़दूरों का रेला लगा हुआ था।

बात बात पर फ़िल्मी सितारों को ट्वीट कर बधाई देने वाले प्रधानमंत्री के मन में लगातार सड़कों पर हो रहे मज़दूरों की मौत के बारे में ख्याल नहीं आया।

अब जब सड़क पर, ट्रेन के नीचे, ट्रेन में जान गंवाने वाले मज़दूरों की संख्या हज़ार के पास पहुंचने वाली है, पीएम मोदी के मन में मज़दूरों का ख्याल आया लेकिन मुंह से केवल संवेदना ही निकली।

31 मई को मन की बात में उन्होंने मज़दूरों को शामिल किया और संवेदनावों से भरी झोली इन्हें पकड़ा दी।

इस बार मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा ‘हमारे देश में कोई वर्ग ऐसा नहीं है जो कठिनाई में न हो, परेशानी में न हो और इस संकट की सबसे बड़ी चोट अगर किसी पर पड़ी है तो वो हमारे गरीब, मजदूर, श्रमिक वर्ग पर पड़ी है। उनकी तकलीफ, उनका दर्द, उनकी पीड़ा शब्दों में नहीं कही जा सकती।’

आखिर कब तक देश के प्रधानमंत्री गरीब मज़दूरों के जख्मों पर संवेदनाओं का मरहम लगाते रहेगें? कब उन परिवारों, बच्चों को इंसाफ मिलेगा जिन्होने लॉकडाउन में अपनो को सदा के लिए खो दिया?

ऐसा लगता है कि मज़दूर, ग़रीब, दलित, अल्पसंख्यकों के लिए मोदी का मूल मंत्र बन गया है कुछ करो या न करो, फिक्र ज़रूर करो, और फिक्र करो न करो, ज़िक्र ज़रूर करो।

जबकि राहत पैकेज की घोषणा में सबसे अधिक उद्योगपतियों का ख्याल रखा जाता है।

प्रधानमंत्री जी को चाहिए कि वो फ़िक्र और ज़िक्र का राग छोड़ें और हर मज़दूर के खाते में तबतक हर महीने 8-10 रुपये सीधे डालें जबतक उनकी छिनी नौकरी फिर से मिल नहीं जाती। क्या प्रधानमंत्री ये करेंगे?

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