एक्सिडेंट के बाद कैजुअल की न ठेकेदार ले रहा जिम्मेदारी, न कंपनी, बेलसोनिका यूनियन आई आगे

मारुति की कंपोनेंट मेकर कंपनी बेलसोनिका में एक कैजुअल मजदूर एक दुर्घटना में भयंकर घायल हो जाने के बाद जीवन और मौत से जूझ रहा है, लेकिन न तो इसकी जिम्मेदारी ठेकेदार ले रहा है न ही कंपनी।

खबर के मुताबिक, बीते 7 सितम्बर को कंपनी में कार्यरत एक कैजुअल ठेका मजदूर सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गया।

सड़क पर पड़े घायल अवस्था में उन्हें किसी ने सिविल अस्पताल में भर्ती कराया जहां, उन्हें सफदरजंग अस्पताल में रेफर किया गया। लेकिन रास्ते में ही तबीयत ख़राब होने के कारण उनके परिवार वालों ने उनको गुड़गांव प्लस अस्पताल में ही भर्ती करवा दिया। लेकिन एक दिन के इलाज का ज्यादा खर्च आने के बाद परिवार वालों ने उनको मानेसर में स्थित ईएसआई अस्पताल में भर्ती कराया गया।

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वहां डॉक्टरों ने कहा कि ठेका मजदूर को काम करते हुए अभी छह महीने नहीं हुए हैं। और ESI का पैसा कटे हुए सिर्फ ढाई महीने ही हुए हैं, इसलिए इनको ईएसआई की सुविधा नहीं मिल सकती है। क्योंकि छह महीने तक की नौकरी के बाद ही ईएसआई में इलाज की सुविधा मिल सकती है।

इसके बाद वर्कर के परिजनों ने उसे एक प्राईवेट अस्पताल में ले गए, जहां से उसे दिल्ली के मैक्स में रेफर कर दिया गया। वहां इलाज इतना महंगा है कि परिजनों को जान बचाने के लिए कर्ज तक लेना पड़ गया।

कैजुअल मजदूरों ने बेलसोनिका यूनियन से इसमें मदद करने के लिए कहा। यूनियन के महासचिव अजीत सिंह ने बताया कि यूनियन ने सभी सदस्यों से 100 रुपये का चंदा इकट्ठा कर उस कैजुअल मजदूर के इलाज के लिए मदद करने का फैसला लिया है।

क्या कहते हैं मजदूर नेता?

मजदूर नेता अजीत सिंह ने कहा कि जबसे छह छह महीने के लिए कैजुअल ठेका वर्करों की भर्ती हो रही है उन्हें मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा खत्म हो गई है।

वो कहते हैं, “आप ही बताईए कि जब वर्कर को छह महीने में निकाल दिया जाता है तो वो ईएसआई में इलाज कैसे करा पाएगा। ये मजदूर मजबूरी में 14-15 हजार के लिए अपनी जान दांव पर लगा रहे हैं।”

कैजुअल ठेका मजदूरों ऐसे सस्ते मजदूर हैं जिनके घायल होने या मारे जाने के बाद उनकी जगह दूसरे ठेका मजदूर को भर्ती कर लिया जाता है और कंपनी उसकी जिम्मेदारी लेने से साफ मुकर जाती है और ठेकेदार भरसक मामले को रफा दफा कर देते हैं।

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उनका कहना है कि “बेलसोनिका प्रबंधन को केवल अपना काम होने से मतलब है। प्रबंधन को ये भी मालूम है कि किसी मज़दूर का एक्सीडेंट भी हुआ है। उनको कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि जिस मशीन पर वह काम करता था वहां पर दूसरा ठेका मज़दूर काम कर रहा है।”

उनका आरोप है कि “प्रबंधन को ठेका मज़दूरों से काम करवाना ज्यादा अच्छे लगते है। लेकिन जब यही मज़दूर जब अपनी मांगों को मालिक के सामने रखते हैं तो यही वर्कर बुरे हो जाते हैं।”

औद्योगिक दुर्घटनाओं में मजदूरों की मौतें

संसद में साल 2021 में सरकार की दी गई जानकारी के मुताबिक पांच सालों में कम से कम 6500 कामगार फ़ैक्ट्रियों, पोर्ट, माइनों और कन्स्ट्रक्शन साइटों पर मारे गए।

अकेले साल 2021 में हर महीने मैन्यूफ़ैक्चरिंग इंडस्ट्री में 162 से ज़्यादा मज़दूरों की मौत हुई।

एक गै़र-सरकारी संस्था सेफ़ इन इंडिया फ़ाउडेशन के मुताबिर साल 2016 से 2022 के बीच 3955 गंभीर दुर्घटनाएं हुईं. इनमें से 70 प्रतिशत मामलों में किसी मज़दूर की उंगली या हाथ कट गए थे।

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