फिल्मकारों का फिल्मकार गोदार, जो फिल्मों को दुनिया बदलने का माध्यम मानते थे

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By मनीष आजाद

गोदार (Jean-Luc Godard) की मृत्यु पर उनकी पार्टनर ने कहा कि वे बीमार नहीं थे, बस थक चुके थे। इसलिए उन्होंने इच्छा मृत्यु चुन ली। गौरतलब है कि स्विट्जरलैंड में इच्छा मृत्यु मान्य है।

मनुष्य बुनियादी तौर पर ऐसा रचनाकार है, जो जब तक जीता है, रचता है। जब नहीं रच पाता तो ‘मर’ जाता है।

इस अर्थ में वह ईश्वर से बड़ा रचनाकार है। क्योकि ‘ईश्वर ने सिर्फ एक बार दुनिया रची’ और फिर हाथ बांध कर बैठ गया और इस तरह उसकी मृत्यु हो गयी। आज हम उसकी दुर्गंध पूर्ण लाश को कांधे पर ढो रहे हैं। क्योकि उसे दफनाने का साहस हममे नहीं है।

गोदार अपनी पहली फिल्म ‘ब्रेथलेस’ से अंतिम फ़िल्म ‘इमेज बुक’ तक लगातार रचते रहे और कहानी/फॉर्म में लगातार प्रयोग करते रहे।

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उनका मशहूर कथन है- ‘फ़िल्म में निश्चय ही शुरुआत, मध्य और अंत होना चाहिए। लेकिन जरूरी नहीं कि यह इसी क्रम में हो।’

बांग्ला सिनेमा में सत्यजीत राय, ऋत्विक घटक और मृणाल सेन की तिकड़ी ने जो किया वहीं काम फ्रेंच सिनेमा में गोदार (Jean-Luc Godard), तुफे (Truffaut), और ब्रेसां (Bresson) ने किया।

गोदार का अध्ययन इस दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है कि उनका सिनेमा विश्व के सामाजिक/राजनीतिक आन्दोलनों (68 का छात्र आंदोलन, वियतनाम विरोधी आंदोलन, तीसरी दुनिया का राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन और चीन की सांस्कृतिक क्रांति) से किस तरह प्रभावित था।

जैसे जैसे ये आंदोलन कमजोर होते गए, गोदार की फिल्मों का प्रगतिशील/क्रांतिकारी कथ्य भी कमजोर होता गया और वो फ़िल्म मेकिंग के अतिशय प्रयोगों में लीन होते गए।

2016 में आयी उनकी फिल्म ‘गुडबॉय टू लैंग्वेज’ ने वास्तव में उन्होंने भाषा को गुडबॉय बोल दिया और कथ्य से पल्ला झाड़ लिया। मेरी नज़र में इसी फिल्म में गोदार की रचनात्मक मौत हो गयी थी।

लेकिन यह बात भी सच है कि विश्व सिनेमा पर, विशेषकर ‘थर्ड (वर्ल्ड) सिनेमा आंदोलन’ पर गोदार का विशेषकर शुरुआती गोदार का वही प्रभाव था जो 20 और 30 के दशक में सर्गेई ऐजेंटाइन (Sergei Eisenstein) का विश्व सिनेमा पर था।

जिस तरह से ‘एडिटिंग’ (मोंटाज) को सर्गेई से जोड़ कर देखा जाता है, उसी तरह ‘जम्प कट’ को गोदार का योगदान माना जाता है। इससे फ़िल्म में एक आंतरिक ऊर्जा आ जाती है।

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गोदार को ‘ह्रदय’ का नहीं ‘दिमाग’ का फिल्मकार माना जाता है।

ब्रेख़्त के ऐलियनेशन इफ़ेक्ट (Alienation effect) का फ़िल्म में जितना शानदार इस्तेमाल गोदार ने किया वह बहुत कम फिल्मों में मिलता है।

गोदार उन फिल्मकारों में रहे हैं, जो अपनी कला का इस्तेमाल दुनिया बदलने में करना चाहते थे।

उन्हीं की परंपरा के फिल्मकार गी दुबो (Guy Debord) ने एक जगह लिखा है-“दुनिया को फिल्माने का काम बहुत हुआ, असल सवाल उसे बदलने का है।”

यह बात गोदार पर विशेषकर शुरुआती गोदार पर हूबहू लागू होती है।

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