रेलवे की दुर्दशा: हर दिन 200-250 ट्रेंने की जा रही हैं रद्द

By लखमीचंद प्रियदर्शी

भारत की लाइफ लाइन भारतीय रेल सेवा की हालत बेहद चिंताजनक है। उदारीकरण, निजीकरण और अब कार्पोरेट जगत को रेल सेवा गतिविधियों को हवाले करने पर भी और अधिक दुर्गति हो रही है।

बेहताशा बढती डायनेमिक किराया प्रणाली ने जहां किरायों में बहुत अधिक किराये बढाएं हैं वहीं रेल सेवाओं की गुणवत्तापूर्ण देने में भी कमी आयी है।

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लगभग 150-250 या इससे भी अधिक ट्रेनों को रोज रद्द कर दिया जाता है विशेषकर त्योहारों के सीजन और सर्वाधिक मांग के समय ट्रेनों का रद्दी करण पूर्व में ही आरक्षित (लगभग 120 दिन के अंदर आरक्षित टिकट कराने के बाबजूद) अमानवीय और असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा ही निशानी है।

त्योहारी सीजन में रेगुलर के साथ-साथ स्पेशल ट्रेनों को भी रेल मंत्रालय चलाते रहे हैं। पर जितनी स्पेशल ट्रेनों को चलाने की घोषणा की जाती है तो साथ ही रद्द की जाने वाली ट्रेनों के कारण रेल मंत्रालय के दावों की पोल खुल जाती है।

मोदी सरकार के पिछले आठ साल के कार्यकाल में रेल कर्मचारियों की स्थायी कर्मचारियों की संख्या लगभग आधी(2014 की तुलना में) हो गयी है, और ठेकेदारो के अंतर्गत काफी मात्रा में अस्थायी कर्मचारियों को रेल मे रखा जा रहा।

 

जिनके वेतनमान बहुत ही न्यूनतम होते हैं वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार। बिना बेहतर और नियमित कर्मचारियों के रेलवे को चलाने में परेशानियां तो बढेगी ही।

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कोरोना काल के बाद अभी भी पूर्व की भांति रेल सेवाएं पटरी पर नहीं लौटी है, हिंदुस्तान अखबार के आज के अंक में संपादकीय लेख में रेलवे सेवाओं की कमियाँ और बढती किरायों के विषय में चिंता उसकी वास्तविक स्थिति को बयां करने के लिए काफी है। एक बात और है कि रेलवे ने पिछले वित्तीय वर्ष में भी अच्छा खासा लाभ कमाया है।

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