दिल्ली के घरेलू कामगार कर रहे हैं नकद बोनस की मांग, संग्रामी घरेलु-कामगार यूनियन ने चलाया अभियान

दक्षिणी दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में संग्रामी घरेलू-कामगार यूनियन (CGU) के बैनर तले घरेलू कामगारों ने सम्मानजनक बोनस के अधिकार के लिए एक अभियान चलाया है।

इस तीन दिवसीय अभियान के माध्यम से घरेलू कामगारों को दिवाली से पहले मिलने वाले बोनस को नकद रूप में दिए जाने की मांग की जा रही है।

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CGU के सदस्यों का कहना है कि घरों में काम करने वाली महिलाओं को  बोनस नकद में दिया जाना चाहिए। मालिकों को यह समझना चाहिए कि यदि नकद में बोनस दिया जायेगा तो घरेलू कामगार इसे अपनी जरूरत के अनुसार खर्च कर सकते हैं, जैसे दीपावली पर त्योहार मनाना, बच्चों की फीस देना, ऋण की अदायगी, चिकित्सा  इत्यादि के लिए उपयोग कर सकते हैं।

घरेलू-कामगार यूनियन के फेसबुक पेज से मिली जानकारी के मुताबिक यूनियन के इस अभियान में घरेलू कामगार महिलाएं बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहीं हैं।

दिल्ली में घरेलू कामगार के तौर पर काम करने वाली एक महिला का कहना है कि, बहुत से घरों में महिला कामगारों को पूरा सम्मान नहीं मिलता है। वह कहती हैं – “एक साल से ज्यादा काम करने के बाद भी हम लोगों को बोनस नहीं दिया जाता है, और अगर दिया भी जाता है तो बस एक मिठाई का डिब्बा।”

उनका कहना है कि अगर मिठाई के डब्बे या साड़ी की जगह नकद बोनस दिया जाये तो उन पैसों को  हम अपनी जरूरतों के अनुसार खर्च कर सकते हैं।

नहीं दिया जा रहा मज़दूर का दर्जा

संगठन के सदस्यों का कहना है कि “घरेलू कामगारों को ‘मज़दूर’ का दर्जा और उनके अधिकारों को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (संयुक्त राष्ट्र का हिस्सा) सम्मेलन -189 द्वारा मान्यता प्राप्त किया गया है। जिसमें भारत सरकार के प्रतिनिधियों के भी हस्ताक्षर हैं। लेकिन भारत में अभी तक सही मायनों में इसको मज़दूर का दर्जा नहीं दिया जा रहा है। यहां तक कि साप्ताहिक छुट्टी, वार्षिक बोनस, स्वास्थ्य बीमा और पेंशन का भी कोई प्रावधान नहीं है।”

गौरतलब है कि ऊंची ईमारती सुरक्षापूर्ण सोसायटी वाले समुदायों और स्मार्ट दिखने वाले कार्यालयों से लेकर कारखानों तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से घरेलू कामगारों के श्रम पर निर्भर हैं, लेकिन रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) या प्लेसमेंट एजेंसियों का कोई विनियमन नहीं है।

घरेलू कामगारों के साथ भेदभाव और शोषण की घटनाएं लगातार सामने आती रही हैं। लेकिन इनके लिए अभी का कोई ठोस कानून नहीं है।

कोविड-लॉकडाउन के बाद से आर्थिक मंदी और लोगों की नौकरी जाने से इस क्षेत्र में संकट गहरा गया है। बढ़ती तादात में छोटी लड़कियों को गुलामी की परिस्थितियों में धकेला जा रहा है।

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आज मजदूर विरोधी नई श्रम संहिताओं को लागू करने का प्रयास किया जा रहा है। इस माहौल में उन क्षेत्रों के मुद्दों पर, जिन्हें पिछले कानून में भी श्रम कानून के दायरे से बाहर रखा गया है, उन पर अधिक गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है।

मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) के राष्ट्रव्यापी विरोध के आह्वान पर एसजीयू संघर्षरत मजदूर संगठनों के साथ 13 नवंबर 2022 को इन आवाजों को एकजुट करने के लिए दिल्ली में राष्ट्रपति भवन तक मार्च करेगा।

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