पुणे की केमिकल फ़ैक्ट्री में भीषण हादसा, 18 मज़दूर जल कर मरे, मृतकों में 15 महिलाएं

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सोमवार की शाम महाराष्ट्र के पुणे में स्थित एक केमिकल फ़ैक्ट्री में भीषण आग लगने से 18 मज़दूरों की जलने कर मौत हो गई। इनमें 15 महिलाएं शामिल हैं।

बीबीसी मराठी के अनुसार, इस कंपनी में वॉटर प्योरीफ़ायर बनाया जाता था जिसमें क्लोरीन डाईऑक्साइड का इस्तेमाल होता है। हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि यहां सैनिटाइज़र भी बनाया जाता था।

पुलिस के अनुसार, पुणे के बाहरी हिस्से में स्थित केमिकल कंपनी एसवीएस एक्वा टेक्नोलॉजीज़ में शाम चार बजे के क़रीब ये घटना घटी और उस समय वहां 37 मज़दूर काम कर रहे थे, जिनमें 19 मज़दूर किसी तरह बच गए।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार,  अधिकांश पुरुष मज़दूर किसी तरह भाग कर जान बचाने में सफल रहे जबकि अधिकांश महिला मज़दूर अंदर ही फंस गईं।

मुख्य अग्निशमन अधिकारी देवेंद्र पोटफोडे के अनुसार, 18 मज़दूरों के शव बरामद कर लिए गए हैं। घटना के कारणों का अभी पता नहीं चल पाया है। लेकिन कुछ स्थानीय लोगों ने मीडिया कर्मियों को बताया कि, प्लांट में एक धमाके के बाद आग लगी। लोगों को बचाने के लिए प्रशासन को प्लांट की दीवार को जेसीबी से तोड़नी पड़ी।

पोटफोडे के अनुसार, रसायन बनाने वाली कंपनी विभिन्न रसायनों का निर्यात करती थी। हालांकि फ़ायर सेफ़्टी को लेकर क्या स्थिति थी, इस बात का पता नहीं चल पाया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति ने इस भीषण दुर्घटना पर दुख व्यक्त किया है। मोदी ने मृतकों के परिजनों को केंद्र की ओर से 2-2 लाख रुपये अनुग्रह राशि देने की घोषणा की है।

लेकिन राज्य की ठाकरे सरकार की ओर से कोई बयान न आने पर सोशल मीडिया पर सवाल किए जा रहे हैं।

कोरोना की दूसरी भीषण लहर में भी मज़दूर फ़ैक्ट्रियों में काम कर रहे हैं। पिछले साल ही मोदी सरकार ने ऐसे लोगों को फ्रंट लाइन वर्कर का तमगा दिया था। लेकिन आम तौर पर देखा गया है कि इन दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले मज़दूरों के परिजनों को ठीक से मुआवज़ा भी नहीं मिल पाया।

बीते कुछ सालों में औद्योगिक हादसों में तेज़ी देखी जा रही है। ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता अजीत कुमार का कहना है कि ‘फ़ैक्ट्री मालिकों को खुली छूट देने का ये परिणाम है।’

वो कहते हैं कि ‘कंपनियों में अब सेफ़्टी को लेकर कोई जांच पड़ताल नहीं होती और ये मैनेजमेंट के ऊपर है कि वो इसे कराता है या नहीं। जबकि कंपनियां जांच पड़ताल या मरम्मत करने पर होने वाले खर्च को बचाने के लिए मशीनों, कलपुर्ज़ों, ब्वायलर तक की मरम्मत और देखरेख नहीं कराती हैं, जिससे हादसों में बहुत इजाफ़ा हुआ है। ‘

अब जब पूरे देश में 44 श्रम क़ानूनों को ख़त्म कर 4 लेबर कोड लाए जा रहे हैं, जांच पड़ताल और मरम्मत की क़ानूनी जवाबदेही भी फ़ैक्ट्रियों से ख़त्म होने जा रही है। सरकार की मंशा फ़ैक्ट्री मालिकों के मुनाफ़े को अधिक से अधिक बढ़ाने के लिए उन्हें खुली छूट देने की है।

अजीत कहते हैं, “ऐसे में फ़ैक्ट्रियां दिन ब दिन मज़दूरों के लिए और कब्रगाह बनती जाएंगी।”

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