श्रीलंका: रातों रात भागे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री छुपे, सांप्रदायिकता ने देश को धकेला गृह युद्ध की आग में

श्रीलंका में हो रहे आर्थिक और राजनैतिक उथल पुथल के बीच बुधवार को इस्तीफा देने का वादा कर राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे मालदीव्स भाग खड़े हुए हैं और अब वहां से सिंगापूर जाने के लिए प्राइवेट जेट का इंतज़ार कर रहे हैं।

चरमराई अर्थव्यवस्था और गगनचुंबी महंगाई से निजात पाने श्रीलंकाई जनता हिंसक प्रदर्शनों का रुख अख्तियार किया था और राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग करते हुए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भवन पर कब्जा कर लिया था।

राजपक्षे ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति बना दिया था लेकिन फिलहाल विक्रमासिंघे भी चंपत हैं। स्थानीय मीडिया के अनुसार वह अभी उत्तर-पूर्वी श्रीलंका में नौसेना के बेस पर हैं।

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PTI की खबर के मुताबिक कोलंबो और पश्चिमी प्रांत में हिंसक प्रदर्शनों के बाद शांति बनाए रखने के लिए पिछली रात कर्फ्यू लगाया गया था, जिसे कि आज सुबह हटा दिया गया है।

राजपक्षे के देश से भाग जाने के बाद बुधवार को दोपहर के बाद से प्रदर्शनकारियों की प्रधानमंत्री कार्यालय और संसद के मुख्य जंक्शन पर सुरक्षा बलों के साथ झड़प हुई, जिसके बाद कम से कम 84 लोग अस्पताल में भर्ती थे।

बैरिकेड को तोड़ने और प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रवेश करने की कोशिश कर रही भीड़ पर पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और पानी की बौछारें चलाईं।

पुलिस प्रवक्ता निहाल थलडुवा ने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने श्रीलंकाई सेना के एक जवान से एक टी56 बंदूक और 60 गोलियां छीन लीं। इस मामले में शिकायत दर्ज कर ली गई है, पुलिस ने कहा।

जनता अभी भी रोजमर्रा का सामान लेने के लिए जूझ रही है। पेट्रोल पंपों पर अत्यधिक लंबी लाइन देखी गई लेकिन लोगों को अभी तक पेट्रोल नहीं मिल पाया है।

दशकों से आइडेंटिटी पॉलिटिक्स में लिप्त रही देश की राजनीति का परिणाम आज यह है कि सड़कों पर सांप्रदायिक दंगे शुरू हो रहे हैं।

राजपक्षे परिवार ने सत्ता अपने कब्जे में बनाए रखने के लिए सिंहाला बाहुल राजनीति का सहारा लिया था और बहुसंख्यक वर्ग को भ्रमित करने के लिए तमिल, मुस्लिम व दूसरे अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और उत्पीड़न को बढ़ावा दिया।

जैसी परिस्थिति मोदी शासनकाल से भारत में देखने को मिल रही है, सालों से लेकर कुछ समय पहले तक भी श्रीलंका का यही हाल था जहां हलाल और हिजाब में जनता फंसी रह गई और दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था की कमर पूरी तरह टूट गई।

लेकिन लोगों के दाने दाने को मोहताज होने पर आखिरकार नफरत की राजनीति भी राजपक्षे परिवार की सत्ता बचा नहीं पाई और लोगों ने उन्हें खदेड़ने की ठान ली।

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