साढ़े नौ साल से जेल में बंद मारुति यूनियन के दो और नेताओं को मिली ज़मानत

maruti struggle

उम्र कैद की सज़ा के तहत जेल में बंद मारूति सुजुकी वर्कर्स यूनियन के 13 नेताओं में दो नेताओं की ज़मानत बुधवार को चंडीगढ़ उच्च न्यायालय से हो गई। इस मामले में पहली ज़मानत बीते 24 नवंबर को रामबिलास को मिली थी।

साढ़े नौ साल जेल में बिताने के बाद मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन के सदस्य संदीप ढिल्लों और सुरेश को 19 जनवरी को ज़मानत मिली। इस मामले में 8 मज़दूर नेता अभी भी जेल में हैं। इनमें से एक यूनियन सदस्य, सोहन को ज़मानत नहीं मिल सकी।

संदीप और सुरेश के साथ अन्य साथी सोहन की जमानत की भी अर्जी लगी थी, लेकिन उच्च न्यायलय द्वारा उनकी जमानत की गुंजाइश को न देखते हुए वकीलों ने अपील फिलहाल वापस ले ली है।

उल्लेखनीय है कि 13 मज़दूर नेताओं में पवन दहिया व जिया लाल की बीते साल मौत हो गई थी।

ग़ौरतलब है कि मारुति मानेसर प्लांट के मज़दूरों ने जून 2011 में यूनियन बनाने की मांग पर संघर्ष शुरू किया था। यूनियन की बुनियादी मांग के पीछे सम्मानजनक काम की शर्तें हासिल करने के कई पहलु छिपे थे।

मज़दूरों के जुझारू संघर्ष ने इस आन्दोलन को हरियाणा ही नहीं पूरे देश में मज़दूर शक्ति और एकता का प्रतीक बना दिया।

जुलाई 2012 में कंपनी में मज़दूरों और कंपनी बाउंसरों के टकराव और एक मैनेजर की मौत के बाद 546 स्थायी और 1800 ठेका मज़दूरों को बिना जांच काम से निकाल दिया गया और सभी यूनियन नेताओं सहित 213 लोगों पर संगीन धाराओं में एफ़आईआर दर्ज कर दी गई।

इतनी बड़ी संख्या में नेतृत्वकारी वर्करों के जेल में जाने के बावजूद मारुति का आंदोलन चलता रहा और इसके लिए बाहर मौजूद मज़दूर नेताओं की  ‘प्रोविजनल कमेटी’ बनाई गई।

साल 2012 में गिरफ्तार किए गए 147 मजदूरों को जहां 2017 में, 5 साल जेल काटने के बाद, गुड़गांव सेशन कोर्ट द्वारा बाइज्ज़त बरी किया गया वहीं उसी केस में 12 सदस्यीय यूनियन बॉडी के सभी सदस्यों और एक मज़दूर जियालाल को उम्र कैद की सजा सुना दी गई।

लेबर एक्टिविस्ट नयन कहते हैं कि ‘मारुती मज़दूरों पर किया गया बर्बर हमला, सत्ता द्वारा सभी मजदूरों को सबक सिखाने के लिए किया गया था, ताकि अन्याय और शोषण के खिलाफ कोई और सिर ना उठा पाए। कांग्रेस से लेकर भाजपा, पुलिस से लेकर न्याय व्यवस्था, सभी कंपनी राज के सामने नकमस्तक रहे।’

टीयूसीआई के महासचिव और वरिष्ठ वकील संजय सिंघवी का कहना है कि ये मुकदमा ऊपरी अदालों में बहुत देर तक नहीं टिकेगा क्योंकि ये अभी तय ही नहीं हुआ कि मैनेजर की मौत कैसे हुई है और उसमें इन मज़दूरों का क्या हाथ है।’

हालांकि मारुति मज़दूरों के संघर्ष के कारण आखिरकार कंपनी को यूनियन की मान्यता देनी पड़ी। यूनियन को अपने इशारे पर नचाने की कोशिश भी हुई लेकिन अंततः स्वतंत्र यूनियन के गठन और कंपनी की ओर से इसे मान्यता मिलने में कामयाबी हासिल हुई।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.