1000 साल काम करे तो भी सीइओ की एक साल की कमाई की बराबरी नहीं कर सकते

migrant worker in delhi nizamuddin

                                                                        By अरविंद नायर

हिंदुस्तान यूनिलीवर के सीईओ की सैलरी 19 करोड़ 37 लाख रुपये सालाना है। जबकी इसी कंपनी के सबसे निचले दर्जे के वर्कर की सैलरी 1 लाख 90 हज़ार रुपये है। 

सीईओ और सामान्य वर्करों के बीच की सैलरी के अंतर का एक अंदाज़ा इस उदाहरण से लगाया जा सकता है। 

अगर यह वर्कर 1000 साल तक काम करे तब भी वो कंपनी के सीईओ के एक साल की कमाई की बराबरी नहीं कर सकता है। 

छठे श्रम आयोग ने कहा था कि सबसे ऊंचे दर्जे और सबसे निचले पायदान के वर्कर की सैलरी के बीच अंतर 1: 12 होना चाहिए। यानी सीईओ की सैलरी सामान्य वर्कर के 12 गुने से अधिक नहीं होनी चाहिए। 

इसको और आसानी से समझा जाय तो अगर वर्कर सी सैलरी 1000 रुपये है तो कंपनी के सबसे ऊंचे अधिकारी की सैलरी 12000 रुपये होनी चाहिए। 

ये भी पढ़ेंः बांग्लादेशः छह दिन से लाखों गारमेंट वर्कर नहीं गए फैक्ट्री, सरकार को किया वेतन बढ़ाने पर मज़बूर

सैलरी में ज़मीन आसमान का अंतर

कंपनियां जो अकूत मुनाफा कमाती हैं वो वर्करों की लगन और हाड़तोड़ मेहनत का नतीजा है। 

आठ-आठ 12-12 घंटे की कड़ी मेहनत से जो मुनाफा होता है उसे ऊपर के सीनियर मैनेजर बटोर ले जाते हैं। लेकिन वर्कर को उनकी वाजिब सैलरी भी नहीं दी जाती है। 

जब हम बात कहते हैं कि वर्कर की सैलरी 30 या 40 हज़ार है और उनकी ज़िंदगी मजे में चल रही है, तो हम भूल जाते हैं कि कंपनी के सीईओ को कितनी सैलरी मिलती है!

इसे लेकर तमाम सर्वे और अध्ययन आए हैं, लेकिन हक़ीकत है कि न्यूनतम मज़दूरी और उसी कंपनी की अधिकतम सैलरी में जमीन आसमान का अंतर आ गया है। 

नतीजतन अधिक से अधिक मज़दूर लगातार हाशिए पर खिसकते जा रहे हैं। 

2015 में कराए गए एक सर्वे में पता चला कि औसतन एक सीईओ को उसी कंपनी के वर्कर के मुकाबले औसतन 335 गुना सैलरी दी जाती है। 

कहीं कहीं तो हालात ये हैं कि अगर वर्कर 40 साल तक काम करे तो भी वो सीईओ की बराबरी नहीं कर सकता है। 

ये भी पढ़ेंः एक्सपोर्ट गारमेंट फ़ैक्ट्रियों के मज़दूरों के बहादुराना संघर्ष के सबक

वर्कर के मुकाबले अधिकतम सैलरी 12 गुने से अधिक न हो

ये भी बहुत बड़ा अंतर है। और इसके खिलाफ पूरी दुनिया में वर्कर संघर्ष कर रहे हैं।

 अभी हाल ही में स्विट्ज़रलैंड में ट्रेड यूनियनों ने एक मेमोरैंडम तैयार किया और मांग रखी कि अधिकतम और न्यूनतम सैलरी का अंतर 1ः12 ही होना चाहिए। 

भारत में इस समस्या से निपटने के लिए ट्रेड यूनियनों ने न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाने की मांग तेज़ कर दी है। 

पिछले महीने आठ नौ जनवरी को हुई आम हड़ताल के दौरान जो मांग सबसे अधिक उठी, वो थी न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाए जाने की। 

मज़दूर वर्ग ठेका प्रथा खत्म करने की मांग के साथ न्यूतन मज़दूरी बढ़ाए जाने को लेकर लगातार सड़क पर है। 

अभी फिर से तीन मार्च को मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान यानी मासा के बैनर तले हज़ारों मज़दूर दिल्ली में इकट्ठा होने वाले हैं।

ये भी पढ़ेंः न्यूनतम मज़दूरी 25,000 रु. की मांग को लेकर 3 मार्च को संसद तक मार्च करेंगे हज़ारों मज़दूर

3 मार्च को संसद पर मज़दूर

करीब एक दर्जन से अधिक मज़दूर संगठन 3 मार्च 2019 को रामलीला मैदान से संसद तक मार्च निकालेंगे। 

मज़दूरों की मांग है कि न्यूनतम मज़दूरी 25000 रुपये प्रतिमाह की जाए। 

मज़दूर संगठनों का कहना है कि ऊपर के स्तर पर थोड़ी सैलरी कम कर नीचे के लोगों की सैलरी बढ़ाई जा सकती है। 

पूरी दुनिया में इस तरह की मांग तेज़ पकड़ रही है और इसे अब नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता।

(अरविंद नायर टीयूसीआई के सेक्रेटरी हैं। यह आलेख उनके वीडियो साक्षात्कार पर आधारित है।) 

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं।)