कीहिन फ़ी में कुछ महिला मज़दूर बांड भर कर लौटीं, बाकी 16 दिन से दिन रात बैठी हैं धरने पर

keihin fie workers strike

हरियाणा के बावल औद्योगिक क्षेत्र में स्थित कीहिन फ़ी ऑटो पार्ट्स मेकर कंपनी में 16 दिनों से दिनरात कंपनी गेट पर महिला मज़दूर धरना दे रही हैं।

महिला मज़दूरों की वर्किंग कमेटी ने बताया कि वर्किंग कमेटी को छोड़ कर बाकी महिलाएं गुड कंडक्ट बांड भर कर काम पर वापस लौट गई हैं।

इससे पहले सोशल मीडिया पर प्रचारित किया गया कि दो मार्च को श्रम विभाग के अधिकारियों की मध्यस्थता में प्रबंधन और श्रमिकों की वर्कस कमेटी के बीच लिखित वेतन समझौता हो गया।

समझौते के बारे में भी कहा गया कि सभी मज़दूरों को कंपनी में वापस लेने के साथ वेतन में 3 साल के लिए 9,500 रुपए की वृद्धि हुई है जो 60+20+20 के फार्मूले के अनुसार लागू होगी। यानी पहले साल वेतन बढ़ोत्तरी का 60 प्रतिशत, दूसरे साल 20 और तीसरी साल 20 प्रतिशत लागू होगा। लेकिन वर्किंग कमेटी ने समझौते की ख़बर को अफ़वाह करार दिया है।

प्रबंधन और महिला मज़दूरों के बीच पिछले महीने 13 फ़रवरी को वेतन समझौते पर वार्ता होनी थी लेकिन मैनेजमेंट ने छह अगुवा मज़दूरों समेत नौ को निलंबित कर दिया था। यही नहीं जब सोमवार, 15 फ़रवरी को मज़दूर कंपनी गेट पर पहुंचे तो उनसे गुड कंडक्ट बांड भरने को कहा गया।

महिला मज़दूरों ने अपने साथियों के निलंबन और गुड कंडक्ट बांड भरने के विरोध में गेट पर धरना शुरू कर दिया। उल्लेखनीय है कि इन महिला मज़दूरों में बीएसएफ़ के पूर्व जवान तेजबहादुर की पत्नी भी थीं।

इस कंपनी में क़रीब 1000 मज़दूर काम करते हैं लेकिन केवल 165 महिला मज़दूर ही परमानेंट हैं और यहां कोई यूनियन भी नहीं है। इन परमानेंट मज़दूरों ने एक वर्किंग कमेटी बना रखी  जो मज़दूरों की समस्याओं पर मैनेजमेंट से बात करती है।

प्रचारित समझौते में क्या है

बाहर धरने पर बैठीं महिला मज़दूरों को अंडरटेकिंग भरकर ड्यूटी ज्वाइन करना होगा। सभी सस्पेंड  महिला मज़दूरों को 10 मार्च से वापस काम पर रख लिया जाएगा।

माँग पत्र के अनुसार 60+20+20 के फार्मूले पर 3 साल के लिए 9,500 रुपए की मासिक वेतन वृद्धि।

केहिन फिन की इस प्लांट में शुरू में बस महिलाएं काम करती थीं। 2014 में आन्दोलन करके अपने वेतन पर समझौता एवं एक कमेटी का गठन किया था। तबसे यह समिति मजदूरों के अधिकारों को लेकर लगातार काम किया है।

प्लांट में 165 महिला कर्मचारी कार्यरत हैं। सभी स्थाई है। 2005 में जिन महिला कर्मचारियों की नियुक्ति हुई थी उनको 6 महीने बाद नियुक्ति पत्र दे दिया गया था। जिन कर्मचारियों की नियुक्ति 2007 में हुई थी उन्हें 2010 में नियुक्ति पत्र दिया गया।

साल 2005 में जिन कर्मचारियों की नियुक्ति हुई थी उनका वेतन ₹28,000 के आस है और जिन कर्मचारियों के नियुक्ति 2007 में हुई थी उनका वेतन ₹25,000 है।

संघर्ष

ये महिलाएं पूरे सोलह दिन कंपनी के गेट के बाहर दिन रात धरने पर बैठी रहीं। जिस वर्दी में ये घर से आई थीं उसी वर्दी में उन्हें रुकना पड़ा। शुरू के दो दिन तक बिना शौचालय और पानी के ही उन्होंने गुजारा। दो दिन बाद जब प्रशासन से गुहार लगाई गई तो मोबाइल टायलेट और पानी का टैंकर वहां रखा गया।

कंपनी के अंदर पानी पीने या टॉयलेट इस्तेमाल करने तक की इजाज़त नहीं थी। रात में कड़ाके की ठंड और दिन में चिलचिलाती धूप में ही धरना चलता रहा। यहां टेंट लगाने की कोशिश की गई लेकिन उसे प्रशासन ने नहीं लगने दिया। मजबूरन महिलाओं को ठंडी और सर्दी झेलनी पड़ी।

एक महिला श्रमिक ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि 2017 में भी जब उनका समझौता हुआ था, उस दौरान भी उन्हें धरने पर बैठना पड़ा था, तब जाकर वेतन समझौता हो पाया। ये महिलाएं कंपनी की शुरुआत से ही यहां काम कर रही हैं और अधिकांश औरतों को 15-15 साल काम करते हुए हो गए हैं।

इन महिलाओं को कंपनी के अंदर भी कड़ी मेहनत से काम कराया जाता है। एक महिला ने बताया कि उन्हें दिन में आधे घंटे लंच ब्रेक और दो बार पांच पांच मिनट के ब्रेक के अलावा कोई और मौका नहीं दिया जा। टॉयलेट के लिए भी परमिशन लेनी पड़ती है।

ये महिलाएं फ्यूल इंजेक्टर और कार्बोरेटर बनाने वाली मशीनों पर काम करती हैं और एक दिन में उन्हें 2350 पार्ट्स बनाने होते हैं। एक महिला वर्कर ने बताया कि अब कंपनी दबाव डाल रही है कि मशीन के साइकिल टाइम से काम किया जाए जो कि 9 सेकेंड में एक पार्ट बनाती है।

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