रक्षा कंपनियों को बेचने का रास्ता साफ़, 80,000 आर्डनेंस कर्मचारी विरोध में, अनिश्चितकालीन हड़ताल की तैयारी

ordnance factory murad nagar

देश में  क़रीब 220 साल पुरानी आर्डनेंस फ़ैक्ट्री बोर्ड को मोदी सरकार ने ख़त्म कर दिया है। बीते कई महीनों से प्रदर्शन कर रही यूनियनों और कर्मचारियों ने सरकार के इस कदम के ख़िलाफ़ दो बार अनिश्चित हड़ताल भी बोला लेकिन रक्षा क्षेत्र की संवेदनशील इकाईयों को बचाने में नाकाम रहे।

अब आर्डनेंस ट्रेड यूनियनों एआईडीईएफ़, आईएनडीडब्ल्यूएफ़ और बीपीएमएस ने 19 जून को इस फैसले की प्रतियां जलाने का निर्णय लिया है। सभी यूनियनें रविवार को मिलकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर फैसला लेंगी।

ऑर्डनेंस फ़ैक्ट्री बोर्ड (ओएफ़बी) को अंग्रेज़ों ने 1775 में बनाया था और इस समय देश में कुल 41 आर्डनेंस फ़ैक्ट्रियां हैं जो बम गोला बारूद, हथियार, टैंक, तोप और मिसाइलें बनाती हैं। ये सार्वजनिक क्षेत्र कि कंपनियां हैं और इन पर सरकार का 100 प्रतिशत मालिकाना हक़ है।

ट्रेड यूनियनों का कहना है कि बीएसएनएल को जिस तरह पहले कार्पोरेशन बनाया गया और फिर उसकी ऐसी हालत कर दी गई कि उसकी परिसंपत्तियों को औने पौने दामों में बेचना पड़ा, वही हाल आर्डनेंस फ़ैक्ट्रियों का हो जाएगा।

ओएफ़बी को ख़त्म कर सात अलग अलग कार्पोरेशन बनाए जाएंगे और 41 फ़ैक्ट्रियों को इन्हीं में सम्मिलित किया जाएगा। ट्रेड यूनियनों इसे मोदी सरकार की मनमानी करार देते हुए अनिश्चितकालीन हड़ताल की चेतावनी दी है।

एटक (ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस) ने सरकार के इस फ़ैसले को ख़ारिज़ करते हुए कहा है कि देश की अग्रणी रक्षा उद्योग को मोदी सरकार ने बर्बाद करने के लिए ये फैसला लिया है, ताकि इस राष्ट्रीय संपत्ति को बेचा जा सके।

बयान में एटक ने कहा है कि पिछले साल जब पूरे देश कोरोना महामारी और लॉकडाउन की गिरफ़्त में था, मोदी सरकार जन विरोधी, मज़दूर विरोधी, किसान विरोधी कई फैसले लिए थे और उसी समय उसने ओएफ़बी समेत कई सार्वजनिक उपक्रमों और सरकारी विभागों के विनिवेश और निजीकरण के फैसले लिए थे।

उल्लेखनीय है कि बीते दो दशकों में जितने भी रक्षा मंत्री आए उनमें से अधिकांश ने ट्रेड यूनियनों को ये आश्वासन और वादा दिया था कि आर्डनेंस फ़ैक्ट्रियों का निजीकरण नहीं होगा। यूनियनों ने इस वादे को तोड़ने का मोदी सरकार पर आरोप लगाया है।

ट्रेड यूनियोनों और फ़ेडरेशन ऑफ़ डिफ़ेंस सिविलियन एम्प्लाईज़ ने सरकार के मनमाना फैसले के ख़िलाफ़ 10 अक्टूबर 2020 में अनिश्चितकाली हड़ताल की घोषणा की थी जिसके बाद सरकारी मैनेजमेंट और  ट्रेड यूनियनों के बीच चीफ़ लेबर कमिश्नर (सेंट्रल) की मध्यस्थता में एक दिन पहले ही 9 अक्टूबर को समझौता हो गया और हड़ताल टल गई।

एटक ने अपने बयान में कहा है कि सरकार ने औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 33 का उल्लंघन किया है और क़ानून की अनदेखी करते हुए आर्डनेंस फ़ैक्ट्रियों को कार्पोरेटाइज़ करने की अपनी नीति को लागू किया है।

इस संबंध में एआईडीईएफ़, आईएनडीडब्ल्यूएफ़ और बीपीएमएस की ओर से दी गई शिकायतों को चीफ़ लेबर कमिश्नर (सेंट्रल) ने पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया।

यूनियन ने केंद्रीय लेबर कमिश्नर पर आरोप लगाते हुए कहा है कि सरकार 16 जून को ओएफ़बी भंग कर सके इसके एक दिन पहले केंद्रीय लेबर कमिश्नर ने आनन फानन में 15 जून को एक समझौता मीटिंग बुलाई और जिन मान्यता प्राप्त यूनियनों ने हड़ताल का नोटिस दिया था, उनकी गैर मौजूदगी में सरकारी दबाव में मीटिंग को जल्द ख़त्म कर दिया गया।

एटक की महासचिव अमरजीत कौर ने कहा है कि आर्डनेंस फ़ैक्ट्रियों के 80,000 कर्मचारियों की यूनियनें इस सरकारी फैसले से सहमत नहीं हैं।  इसके लिए यूनियनो ने चार कारण गिनाए हैं।

1- किसी भी सरकारी विभाग के कार्पोरेटाइज़ किए जाने का मतलब है कि अंततः उसका निजीकरण होगा। सरकार ने पहले ही ये घोषित कर दिया है कि सभी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को निजी हाथों में दे दिया जाएगा। इसलिए आर्डनेंस फ़ैक्ट्रियों का निजीकरण राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा तैयारियों के हित के ख़िलाफ़ है।

2- केंद्र सरकार के कर्मचारियों/ डिफ़ेंस सिविलियन एम्प्लाई के रूप में इन कर्मचारियों की भर्ती संविधान के अनुच्छेद 309 के तहत ऑल इंडिया प्रतियोगी परिक्षाओं के द्वारा होती है। इनकी सैलरी और पेंशन भी भारत सरकार के एकीकृत फंड से दी जाती है। अगर इन फ़ैक्ट्रियों के स्टेटस को बदला जाता है तो कर्मचारियों की ये सुविधाएं भी छिन जाएंगी।

3- बीते 20 सालों में पांच पूर्व रक्षा मंत्रियों ने लिखित रूप से आश्वासन दिया था कि ओएफ़बी को कार्पोरेटाइज़ नहीं किया जाएगा। मौजूदा फैसला इन समझौतों और आश्वासनों का खुला उल्लंघन है।

4- रक्षा मंत्री भी रक्षा मामलों की संसदीय समिति के सामने कह चुके हैं कि ओएफ़बी का कार्पोरेटाइजेशन टिकाऊ नहीं होगा।

ऑर्डनेंस फ़ैक्ट्रियों के कर्मचारियों ने फैसला किया है कि वो सरकार के इस फैसले का विरोध करेंगे और अनिश्चितकालीन हड़ताल की प्रक्रिया फिर से शुरू करेंगे।

अमरजीत कौर ने कहा है कि एटक आर्डनेंस फ़ैक्ट्री के कर्मचारियों के साथ है। उन्होंने देश के लोगों और सभी क्षेत्र की ट्रेड यूनियनों से अपील की है कि वो सरकार के इस फ़ैसले का एकजुट होकर विरोध करें और सार्वजनिक सम्पत्तियों को कार्पोरेटाइज़ करने और उसकी संपत्तियों को अपने पसंदीदा उद्योगपतियों को बेचने के ख़िलाफ़ एकजुट हों।

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