लॉकडाउन के बीच ग्रेटर नोएडा से पैदल ही चल पड़े सासाराम, 250 किमी बाद ही पुलिस ने लौटाया

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By संदीप राउज़ी

राशन और पैसा ख़त्म होने और लॉकडाउन ख़त्म न होता देख बिहार के 17 मज़दूर ग्रेटर नोएडा के कासना गांव से पैदल ही अपने घर की ओर निकल पड़े लेकिन कानपुर से पहले ही उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और उन्हेें उल्टेपांव कासना अपने कमरे पर लौटना पड़ा।

इन्हीं मज़दूरों में साहेब राम, राहुल और विजय सकुशल अपने कमरे पर लौट जाए जबकि 11 लोगों को कासना थाने ले जाया गया।

विजय बताते हैं कि 23 अप्रैल को सुबह तीन बजे ही 17 लोग कमरे से निकल गए। साथ में एक परिवार भी था जिसमें एक दुधमुहा बच्चा और एक महिला थी।

उन्होंने कहा कि कुछ दूर पैदल फिर ट्रक की सवारी करते हुए वो आगरा से आगे एक्सप्रेस वे पकड़ते हुए कानपुर के क़रीब पहुंच गए थे लेकिन पुलिस की नज़र उन पर पड़ी तो वहीं रोक लिया गया।

साहेब राम कहते हैं कि पुलिस ने उन्हें खाना खिलाया और ग्रेटर नोएडा आ रहे ट्रक से उन सभी को वापस भेज दिया। पुलिसकर्मियों ने उनसे कहा कि आपलोग अपने कमरे पर लौट जाएं क्योंकि लॉकडाउन के चलते कोई गाड़ी नहीं मिलेगी और आगे और परेशानी झेलनी पड़ेगी।

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11 लोगों पर मुकदमा दर्ज

विजय कहते हैं कि पुलिस की गाड़ी उन्हें इटावा के आगे तक एस्कार्ट करती रही ताकि वे कहीं बीच में ही न उतर जाएं।

इसके बावजूद इन मज़दूरों को वापसी में पैदल काफ़ी दूर चलना पड़ा।

25 अप्रैल को ये सभी दोपहर तक कासना में अपने कमरे पर थे लेकिन इन तीन लोगों को छोड़ बाकी 11 लोगों को थाने ले जाया गया क्योंकि मकान मालिक ने बिना कानूनी कार्यवाही के बिल्डिंग में आने की इजाज़त नहीं दी।

तीन लोग गौतमबुद्ध यूनिवर्सिटी गए और वहां से मेडिकल चेकअप के बाद अपने कमरे पर लौटे।

कासना थाना इंचार्ज प्रशांत दीक्षित ने बताया कि ‘ये मज़दूर दनकौर तक गए थे और वहीं से इन्हें लौटा दिया गया। अब इन पर लॉकडाउन तोड़ने का मुकदमा दर्ज किया जाएगा और थाने से ही उनको ज़मानत पर छोड़ दिया जाएगा।’

दरअसल पिछले कुछ दिनों से कासना गांव से वर्कर्स यूनिटी हेल्पलाइन को राशन पहुंचाने के लिए लगातार फ़ोन आ रहे थे। इसी सिलसिले में हेल्पलाइन की टीम 25 अप्रैल को वहां पहुंची थी।

चूंकि ग्रेटर नोएडा और कासना औद्योगिक क्षेत्र में हज़ारों प्रवासी मज़दूर काम करते हैं, और इनमें अधिकांश बिहार, बंगाल और ओडिशा के हैं।

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पैसे ख़त्म, राशन ख़त्म

योगी सरकार के आदेश के बावजूद सूखा राशन इन मज़दूरों को नहीं मिल पा रहा है और पका हुआ खाने का वितरण एक किलोमीटर दूर किया जाता है।

मज़दूरों का कहना है कि घर के बाहर निकलने पर पुलिस डंडे मारती है, इसलिए वो खाना लेने भी नहीं जा पाते और आधार कार्ड पर सूखा राशन पाने की लाइन में लगने के बावजूद राशन नहीं मिल पा रहा है।

बिहार के ही रहने वाले एक अन्य मज़दूर सरताज़ ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि इनमें से अधिकांश मज़दूर दलित पृष्ठभूमि से हैं और सरकार की नाकामी के चलते सभी भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके हैं।

अभी 23 अप्रैल को ही झारखंड में रांची के एक मज़दूर की अहमदाबाद में मौत हो गई है। परवेज़ अंसारी नामके इस मज़दूर ने अपनी मौत के पांच दिन पहले एक वीडियो बनाकर सरकार से मदद की गुहार लगाई थी।

इससे पहले गुड़गांव के सेक्टर 53 में एक मज़दूर ने राशन के लिए अपना मोबाइल बेच दिया था और फिर घर पर आकर फांसी लगा ली थी।

प्रवासी मज़दूरों के साथ आए दिन इस तरह की घटनाएं घट रही हैं और मोदी सरकार की ओर से पीएम केयर्स फंड में दान देने की अपील के अलावा इन मज़दूरों को मदद पहुंचाने की कोई ज़मीनी कोशिश नहीं दिखाई देती है।

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मज़दूरों को उनके घर पहुंचाया जाए

इसे लेकर कई ट्रेड यूनियनों ने आवाज़ भी उठाई है और इन मज़दूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए तत्काल स्पेशल बसें और ट्रेनें चलाने की मांग की है।

लॉकडाउन भले ही तीन मई तक के लिए घोषित है लेकिन ऐसा दिख नहीं रहा कि उसके बाद भी प्रवासी मज़दूर घर जा पाएंगे, क्योंकि अब राज्य सरकारें सख़्ती करने लगी हैं।

25 अप्रैल को ही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रदेश में सामूहिक रूप से इकट्ठा होने पर 30 जून तक प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि यूपी सरकार और मध्यप्रदेश सरकार ने अपने राज्य के फंसे हुए मज़दूरों को वापस लाने के इंतजा़म की घोषणा की थी।

लेकिन मोदी सरकार के अहम मंत्री नितिन गडकरी ने यूपी सरकार के इस फैसले की आलोचना की है।

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