मोदी सरकार ने डीज़ल पेट्रोल को खून चूसने का ज़रिया बना लिया है; सरकारी लूट-2

By एस. वी. सिंह

तेल-गैस की बेतहाशा बढ़ती कीमतों का अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमतों से कोई सम्बन्ध नहीं, ये बात तो सिद्ध हो चुकी है क्योंकि जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है विश्व बाज़ार में कच्चे तेल के दाम गिरते जा रहे हैं और देश में दाम बढ़ते जा रहे हैं।

दरअसल, तेल और गैस अत्यंत जीवनावश्यक वस्तुएं बन चुकी हैं और केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने इन्हें लोगों का खून चूसने का जरिया बना लिया है। जितना चाहो निचोड़ते जाओ।

मोदी सरकार को जीएसटी से बहुत मुहब्बत है, आधी रात को ढोल ढमाकों के साथ इसकी शुरुआत की गई थी लेकिन सरकार डीज़ल व पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में लाने को तैयार नहीं। वज़ह ये है कि जीएसटी में कर की अधिकतम सीमा 28% है जबकि सरकार इन पदार्थों पर लगभग 55 से 66% टैक्स वसूल रही है।

मोदी सरकार अब तक के अपने 7 साल से भी कम के कार्यकाल में डीज़ल, पेट्रोल पर कर के रूप में 19 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा पैसे देश की ग़रीब आबादी से ऐंठ चुकी है।

इतनी चिंता है इन तथाकथित राष्ट्रवादियों को देश के महंगाई में पिसते जा रहे ‘मेरे भाइयों बहनों’ की!! इनके राष्ट्रवाद का मतलब है चंद एकाधिकारी पूंजीपतियों के सामने देश के सारे संसाधन तश्तरी में सजा कर परोस देना और दरिद्रता में डूबते जा रहे जन मानस के महासागर को मज़हबी और अन्ध राष्ट्रवादी नशे की ख़ुमारी में गाफ़िल रखना और उन्हें बांटकर रखना।

लूट का तरीका

मद                            पेट्रोल                     डीज़ल 
मूल क़ीमत                  33.70                   35.23
भाड़ा                             00.28                   00.25
टैक्स (केंद्र)                 32.90                    31.80
वैट (राज्य सरकार)   20.61                   11.68
डीलर का कमीशन   03.68                   02.51
बाज़ार भाव                 91.17                   81.47

पड़ोस के बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों में भी इतने टैक्स नहीं वसूले जा रहे हैं। कोरोना महामारी से बेहाल लोगों को इन छोटे देशों ने भी पेट्रोल डीज़ल के दामों में राहत दी है, दाम कम किये हैं।

पूंजीवादी व्यवस्था में राजसत्ता की जन विरोधी, मानवद्रोही नीतियों से शोषित पीड़ित वर्ग के लड़ने का एक ही तरीका है; जन आन्दोलन, देशव्यापी प्रखर जन आन्दोलन, सारे शोषित वर्ग व उसके मित्र वर्गों को क्रांतिकारी लाइन पर गोलबंद कर ज़बरदस्त संयुक्त जन आन्दोलन आयोजित कर सरकार को जन विरोधी कानून व नीतियाँ वापस लेने को विवश करना तथा साथ ही मानवद्रोही हो चुकी पूंजीवादी व्यवस्था की जगह शोषित पीड़ित वर्ग की सत्ता वाली समाजवादी व्यवस्था प्रस्थापित करना जिसमें सारे का सारा उत्पादन-वितरण व्यक्तिगत मुनाफ़े के लिए नहीं बल्कि समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप होता है।

महंगाई और बेरोज़गारी में पिस रही जनता से थोड़ी भी संवेदनशीलता होती तो डीज़ल, पेट्रोल, गैस के दाम में राहत देती और देश के अडानियों-अम्बानियों जिनकी आय लॉक डाउन में भी साल में डबल होती जा रही है, उन पर टैक्स लगाती। हो इसके एकदम उल्टा रहा है। किसी भी रूप में गरीबों को दी जाने वाला अनुदान/ सब्सिडी भाजपा सरकार को मंज़ूर नहीं, इससे देश के खजाने पर बोझ पड़ता है।

हाँ, अमीरों, कॉर्पोरेट धनपशुओं को अनुदान/ सब्सिडी/ कर माफ़ी/ क़र्ज़ माफ़ी/ कर रियायत/ सस्ती ज़मीनें/ बीस-बीस लाख करोड़ के रहत पैकेज आदि देने में सरकार बहादुर को ख़ुशी मिलती है; इससे सरकारी खजाने का बोझ जो हलका होता है!!

मोदी सरकार का एक ही मूलमंत्र है, गरीबों का खून निचोड़ते जाओ, ये काम झटके में नहीं बल्कि धीरे-धीरे करते जाओ, लोग सहते जाएंगे। वैसे तो सन 1947 से ही हर सरकार पूंजीवादी वर्ग की ताबेदार, हित रक्षक रही है, मौजूदा व्यवस्था में उससे अलग कुछ होना संभव भी नहीं है लेकिन जितनी नंगई से कॉर्पोरेट मगरमच्छों के सामने मोदी सरकार बिछती जा रही है वैसी कोई भी सरकार नहीं बिछी।

ये तथ्य अब रहस्य नहीं रहा, खासतौर से मौजूदा किसान आन्दोलन के दौरान कि अडानी के हित साधने में सरकार किसी भी हद तक जा सकती है, सारा देश, हकीक़त जान चुका है। जुमले बे-असर इसीलिए होते जा रहे हैं।

ये सरकार नेहरू को ही नहीं, बाबर और अलाउद्दीन खिलजी को भी मौजूदा डीज़ल-पेट्रोल की कीमतों के लिए ज़िम्मेदार ठहरा सकती है! पेट्रोलियम मंत्री ज्ञान दे ही चुके हैं कि क़ीमतें जाड़े के मौसम की वजह से बढ़ रही हैं जैसे-जैसे गर्मी आएगी, अपने आप ठीक हो जाएंगी!

फासीवादी सरकार को लोगों को मूर्ख बनाने की अपनी क्षमता पर से कभी भी भरोसा नहीं उठता। उन्हें हमेशा आत्म विश्वास होता है कि वे कैसी भी विशालकाय बेहूदगी परोसें, लोग उसे ग्रहण करते जाएंगे। एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग फासिस्टों को सत्ता में बे-वज़ह ही नहीं बिठाता। असाध्य व्यवस्थाजन्य संकट से निबटने का ये एक आखिरी औजार होता है।

मोदी सरकार ने डीज़ल, पेट्रोल व गैस पर टैक्स 2014 के 31% स्तर से बढ़ाकर 2021 में 66% कर दिया। वहीँ दूसरी ओर धन पशुओं पर लगने वाले कॉर्पोरेट टैक्स को 34% से घटाकर 22% कर दिया। ग़रीबों की इतनी फिक़रमंद है, मोदी की राष्ट्रवादी सरकार!!

लोगों के सामने दो ही विकल्प हैं : जैसे ये सरकार हांके हंकते जाओ या फिर देश व्यापी प्रचंड जन आन्दोलन से सरकार को डीज़ल-पेट्रोल-गैस को पूरी तरह कर मुक्त तथा कॉर्पोरेट टैक्स को 22% से बढ़ाकर 66% करने को बाध्य करो। (समाप्तः)

(यथार्थ पत्रिका से साभार।)

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