पेट्रोलियम पर टैक्स लगा मोदी सरकार ने 7 महीने में 1.4 लाख करोड़ वसूले; सरकारी लूट-1

Petrol pump

By एस. वी. सिंह

बीते फरवरी तक मोदी सरकार ने डीज़ल, पेट्रोल व गैस पर टैक्स लगाकर जनता से  क़रीब 1,40,000 करोड़ रुपये और लूट लिए। पेट्रोल, डीज़ल व गैस के दामों ने फरवरी 2021 में पिछले सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर डाले। अगस्त महीने में दिल्ली में पेट्रोल ₹80.43 प्रति लीटर, डीज़ल ₹73.56 प्रति लीटर तथा रसोई गैस का एक सिलिंडर ₹681 में मिल रहा था।

लेकिन मार्च 2021 तक आते आते पेट्रोल 91.17 रुपये प्रति लीटर, डीज़ल 81.47 रुपये प्रति लीटर और रसोई गैस का सिलिंडर 819 रुपये का हो चुका था।

पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के एक बार फिर पेट्रोलियम पदार्थों के दाम में बढ़ोत्तरी की लगाम मोदी सरकार ने खोल दी है। रविवार को पेट्रोल और डीज़ल के दामों में 24 से लेकर 29 पैसे तक की वृद्धि हुई है।

पेट्रोल के दाम कई राज्यों में शतक लगा चुके हैं। राजस्थान के श्री गंगानगर में पेट्रोल 103.27 रुपये और डीजल 95.70 रुपये का हो गया है। दिल्ली में पेट्रोल 92.58 रुपये और डीज़ल 83.22 रुपये प्रति लीटर हो गया है। इसी तरह मुंबई में  98.88 रुपये और 90.40 रुपये,  कोलकाता में 92.67 रुपये और 86.06 रुपये जबकि चेन्नई में 94.31 रुपये और 88.07 रुपये प्रति लीटर हो चुका है।

अकेले फरवरी महीने में डीज़ल-पेट्रोल के दाम लगातार 13 दिन तक बढ़ते जाने का रिकॉर्ड बना चुके हैं, तीन सप्ताह में रसोई गैस के दाम 125 रुपये प्रति सिलिंडर बढ़ चुके हैं; 4 फरवरी को 25 रुपये, 15 फरवरी को 50 रुपये, 25 फरवरी को 25 रुपये तथा 1 मार्च को 25 रुपये।

अब देश में किसी को कोई संदेह नहीं कि भाजपा के चुनावी नारे, ‘सबका साथ, सबका विकास’ का असल मतलब है, ‘अडानी-अम्बानी का विकास और गरीबों का विनाश’। मेहनतक़श अवाम आज भयंकर पीड़ा की ज़िन्दगी जीने को मजबूर है और महंगाई के बोझ तले लगातार बारीक़ पिसता चला जा रहा है।

कोरोना की मारी लगभग आधी आबादी तो भुखमरी के कगार पर पहुँच ही चुकी है, निम्न मध्यम वर्ग को भी रोटी के लाले पड़ रहे हैं। नाम मात्र की संवेदनशील सरकार भी मेहनतक़श अवाम की घनघोर होती जा रही कंगाल आबादी को कुछ राहत देने की सोचती लेकिन मोदी सरकार तो हर रोज़ डीज़ल, पेट्रोल तथा गैस की कीमतें लगातार, बेतहाशा बढ़ाकर गरीबों की सूखी हड्डियों से बची-खुची मज्जा को भी निचोड़ लेना चाहती है।

खुद को ‘राष्ट्रवादी’ कहने वाली मोदी सरकार का असली घृणित खूंख्वार चेहरा आज एकदम नंगे रूप में लोगों के सामने है। गरीबों के प्रति संवेदनहीनता और सरमाएदार मालिकों के प्रति कर्तव्यनिष्ठता की मौजूदा केंद्र सरकार की कोई सीमा नहीं।

ग़रीबों पर असर

सबसे पहले, डीज़ल एक आधारभूत पेट्रोलियम पदार्थ है। इसकी क़ीमत में हुई किसी भी वृद्धि का एकदम सीधा दुश्चक्रीय प्रभाव तुरंत सारी वस्तुओं की क़ीमतों पर पड़ता है। हमारे इस विशाल देश में किसी भी वस्तु की क़ीमत में माल भाड़े का अनुपात काफ़ी बड़ा होता है।

डीज़ल में हुई किसी भी वृद्धि से माल भाड़े में बढ़ोतरी निश्चित है जिसके प्रभाव से सभी वस्तुओं के दाम बढ़ना अवश्यम्भावी है। इसका परिणाम ये होता है कि जिंदा रहने, साँस चलते रहने के लिए, धमनियों में रक्त संचार बनाए रखने के लिए आम ग़रीब की प्लेट में जो कुछ भी बचा है वो एक-एक कर ग़ायब होना शुरू हो जाता है।

फल, सब्जी, दालें भी आधी से अधिक अत्यंत निर्धन आबादी ही नहीं बल्कि निम्न मध्यम वर्ग के लिए भी विलासिता की वस्तुएं बन चुकी हैं जिनका खर्च चंद लोग ही, वो भी तीज त्यौहार पर ही वहन कर पाते हैं। डीज़ल की कीमतें बढ़ने से व्यापक स्तर पर भुखमरी बढ़ती है, कंगाली फैलती है, ये एक सच्चाई है जिसे हर कोई जानता है लेकिन दिन रात हाथ हिला हिलाकर ग़रीबों की दुहाई देने वाली सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं।

रोज़ कमाकर खाने वाले आज असह्य कष्ट झेल रहे हैं उनकी ज़िन्दगी नरक बनती जा रही है इसीलिए ज़रा सी बात पर पूरे के पूरे परिवार ने अपनी ज़िन्दगी समाप्त कर ली ऐसी हृदयविदारक ख़बरें हमें अक्सर पढ़ने में आती रहती हैं। हालाँकि ऐसी ख़बरें देने वाले मीडिया की पहुँच भी दूर दराज़ देहात के महासागर तक नहीं है। मध्यम वर्ग के सर्वहाराकरण की प्रक्रिया दिनोंदिन तीव्र होती जा रही है। अँधेरा घुप्प होता जा रहा है।

दूसरी बात, बस तथा रेल किराया, यूँ तो वैसे भी बढ़ता ही रहता है, लेकिन डीज़ल वृद्धि के साथ तो निश्चित ही बढ़ता है। वो ज़माना भी पीछे छूट गया जब किराया वृद्धि घोषित की जाती थी और फिर आन्दोलन हुआ करते थे। अब ऐसी किसी घोषणा की कोई ज़रूरत ही महसूस नहीं की जाती क्योंकि ये एक नित्य होने वाला कृत्य हो चुका है। बसों का साल में किराया इतनी बार बढ़ता है कि हिसाब रखना मुश्किल है।

अभी 26 फरवरी को थोड़ी दूरी के रेल किराए में जो वृद्धि की घोषणा हुई थी, उसे सुनकर तो मोदी भक्तों के मुंह भी फ़ैल गए; 300%!!

7 साल में किसानों से ढाई लाख करोड़ ऐंठे

तीसरे, डीज़ल के दामों में हुई 1 पैसे की वृद्धि से भी सीमांत व लघु किसानों के खेत मज़दूर बनते जाने की प्रक्रिया तेज़ हो जाती है। सीमांत व लघु किसानों के विशाल 86% समूह के हाथ से ज़मीन छूटती जा रही है।

सरकारी आंकड़ों के ही मुताबिक़ वर्ष 2019-20 में खेती के काम में देशभर में कुल 1325 करोड़ लीटर डीज़ल की खपत हुई। मोदी जब सत्ता में आए तब डीज़ल 55.49 रुपये प्रति लीटर बिक रहा था जिसका दाम दिल्ली में आज 83.22 रुपये प्रति लीटर है।

इसका मतलब हुआ कि किसानों की आय दोगुनी करने की दुहाई देने वाली मोदी सरकार ने किसानों से अपने 7 साल के कार्यकाल में कुल 2,40,964 करोड़ रुपये डीज़ल पर टैक्स बढ़ाकर ऐंठ लिए।

चौथा, मोदी सरकार की रसोई गैस पर टैक्स की लूट और भी भयानक है। गैस की बेतहाशा बढ़ती कीमतों से सारा समाज तिलमिलाया हुआ है, आधी से अधिक आबादी की रसोइयों से गैस के सिलिंडर ग़ायब हो चुके हैं। 2014 में रसोई गैस का सिलिंडर 220 रुपये का बिक रहा था और आज दिल्ली में 900 रुपये का मिल रहा है।

उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों में से कुल 3% लोग ही सिलिंडर भरवा पा रहे हैं। बाक़ी घरों में गैस के चूल्हों के नीचे लकड़ियाँ जलाकर रोटियां सिक रही हैं। हर महीने हजारों के गैस कनेक्शन कट रहे हैं क्योंकि लगातार 6 महीने तक सिलिंडर ना भरवा पाने वाले गैस उपभोक्ता का गैस कनेक्शन कट जाता है।

बढ़ती गैस की कीमतों ने मध्यम वर्ग के घरों के बजट भी बिगाड़ कर रख दिए हैं, गरीबों की बात तो जाने ही दीजिए। मोदी जी को गरीबों की इतनी चिंता है कि 7 फरवरी से 1 मार्च के बीच 3 सप्ताह में रसोई गैस के दाम चार बार में कुल ₹125 बढ़ा चुके हैं!

पांचवां, दुपहिया वाहन बरदाश्त कर पाना भी अब मेहनतक़श वर्ग के लिए सम्भव नहीं रहा। ये बात वाहनों की बिक्री के गिरते आंकड़ों से भी साबित हो रही है। फेडरेशन ऑफ़ ऑटोमोबाइल डीलर एसोसिएशन ने देश में कुल 1480 वाहन पंजीकरण केन्द्रों में से 1273 केन्द्रों पर पिछले साल पंजीकृत हुए वाहनों की संख्या प्रकाशित की है। इसके अनुसार जनवरी 2020 के मुकाबले जनवरी 2021 में तिपहिया वाहनों में 51.13 प्रतिशत की कमी, दोपहिया वाहनों में 8.78 प्रतिशत और व्यावसायिक वाहों के पंजीकरण में 24.99 प्रतिशत की कमी आई है।

ऑटोमोबाइल सेक्टर में बिक्री में गिरावट का व्यापक दुष्प्रभाव पड़ता है क्योंकि ये सेक्टर देश में सबसे ज्यादा रोज़गार देने वाले सेक्टरों में से एक है। सबसे ज्यादा छोटे उद्योग, बड़े वाहन निर्माता कंपनियों की सहायक इकाईयों के रूप में ही काम करते हैं। इस क्षेत्र में मंदी का नकारात्मक प्रभाव तुरंत ही फरीदाबाद, गुडगाँव जैसे शहरों में मज़दूरों की सेहत पर नज़र आने लगता है।

छठा, रोज़गार के अकाल के मौजूदा समय में बहुत सारे युवा, घरों में आपूर्ति करने वाली कंपनियों जैसे अमेज़न, ज़ोमेटो, स्वीगी आदि कंपनियों में डिलीवरी बॉय के रूप में काम कर गुजारा करते हैं। इनकी हालत आजकल बहुत ही दयनीय है। इनकी मोटरसाइकिलों में ताले लग गए उनकी जगह साइकिल आ गई हैं लेकिन इनसे उतना काम नहीं निकल पाता जिससे उन्हें वेतन कम और तनाव ज्यादा मिल रहा है। ऑटो चलाने वाले, ओला। ऊबर के लिए गाड़ियाँ चलाने वाले लाखों ड्राईवर किस तरह गुजारा कर रहे हैं, वे ही जानते हैं। (क्रमशः)

(यथार्थ पत्रिका से साभार।)

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