“बस रहने को एक घर चाहिए और कुछ नहीं”: दिल्ली की झुग्गियों पर बुलडोज़र की दर्दनाक कहानियां- Ground Report

By शशिकला सिंह

“हमारे घर की बहु बेटियों के हाथ पकड़े कर बदसलूकी के साथ घरों के निकाल दिया, पर हम लोग कुछ नहीं कर पाए।”

कस्तूरबा नगर स्थित सेवानगर की रहने वाली 55 वर्षीय विमला देवी ने बताया कि “29 मार्च 2022 को सेंट्रल पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट, CPWD ने हमारी झुग्गियों को तोड़ दिया।

घटना का दिन याद करते हुए वो बताती हैं कि उस दिन सुबह का नास्ता कर रही थी, जैसे ही मैंने पहला निवाला तोड़ कर खाया, तभी किसी ने बाहर के दरवाजे को खटखटया और जल्दी घर खाली करने के लिए बोला।

विमला ने बताया कि उनको लगा कि झुग्गियों का कोई बच्चा शरारत कर रहा है। जब वह बाहर आई तो वहां पुलिस वाले खड़े थे। वो आगे बताती हैं कि पुलिस को देखते ही हाथ पैर कांप गए। कुछ भी समझ नहीं आया था कि अचानक ये क्या हो गया?

विमला देवी ने बताया कि यहीं पली बढ़ी हैं और यहीं शादी हो गयी। उनके दो बच्चे हैं। बड़ा बेटा दिहाड़ी मज़दूरी करता है और बेटी की शादी हो गयी है।

विमला देवी

पुनर्वास का इंतजाम नहीं

कस्तूरबा नगर के पास सेवा नगर इलाके में CPWD द्वारा पुनर्वास का काम तेजी से चल रहा है। इसलिए इलाके की सैकड़ों झुग्गियां को तोड़ दिया गया। इलाके में हर तरफ नीले रंग की टिन लगी हैं।

यहां बीते 50 सालों से झुग्गियों में गुजर बसर करने वाले ज्यादातर प्रवासी मज़दूर हैं, जो बाजार में दुकानों पर काम करते हैं या फिर दिहाड़ी मज़दूरी। CPWD ने झुग्गियों को हटाने से पहले इन लोगों के लिए पुनर्वास का इंतजाम नहीं किया।

जिन गरीबों का आशियाना उजड़ा है, वो जहां तहां किराए पर या खुले आसमान के नीचे गुजर बसर को मजबूर हैं।

विमला बताती हैं कि घटना वाले दिन झुग्गी के ज्यादातर पुरुष काम पर चले गए थे। बच्चे स्कूल और घरों में महिलाएं ही बचीं। उन्होंने बताया कि तीन दिन पहले ही बेटी को एक कंपनी में काम मिला था।

मैंने उसको तुरंत फोन किया और जल्द से जल्द आने को कहा। इसी तरह अन्य महिलाओं ने अपने पति और बच्चों को फोन कर बुलाया। लेकिन तब तक CPWD ने झुग्गियों को तहस नहस करना शुरू कर दिया था। मेरी बहु ने जब घर खाली करने से मना किया, तो CPWD के साथ आये पुलिसवालों ने उसे साथ बदतमीजी करनी शुरू कर दी।

उन्होंने बताया कि पुलिस की इस हरकत की FIR भी हमने हौजखास थाने में दर्ज़ करवाई हैं।

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60 साल पुरानी है बस्ती

सेवा नगर के एल ब्लॉक की झुग्गियों को दिल्ली उच्च न्यायालय से 25-02-2020 से स्टे आर्डर प्राप्त है।

झुग्गियों में रहने वाले लोगों का कहना है कि बिना किसी पूर्व नोटिस के CPWD ने झुग्गियों को थोड़ दिया। इलाके में लगभग 100 झुग्गियां हैं। यहां रहने वाले ज्यादातर परिवार राजस्थान से रोज़गार के लिए आकर बसे हैं।

10-20 झुग्गियां बिहार के प्रवासी मज़दूरों की हैं, जो पिछले 60 सालों से यहां रह रहे हैं। घटना वाले दिन CPWD ने शाम 5 बजे तक आधी से ज्यादा झुग्गियों को तोड़ दिया था। बिजली के कनेक्शन भी काट दिए।

मिली जानकारी के अनुसार, CPWD का कहना है कि झुग्गियां अवैध है, इसलिए थोड़ा गया है। वहीं यहां रहने वालों के सभी पहचान पत्र इस झुग्गियों के नाम के बने हैं।

झुग्गियों के टूटने के बाद लोग सड़कों पर रहने को मज़बूर हैं, झुग्गियां टूटने के करीब 5 महीने बाद जब बरसात शुरू होने वाली थी, तो लोगों ने मलबा हटाकर तिरपाल लगा लिए और रहने लगे।

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शब्दों में बयान करना मुश्किल

अपने 9 महीने के बेटे को गोद लेकर खड़ी 20 साल की सरोज बताती हैं कि मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकती। उन्होंने बताया कि जिस दिन हमारी झुग्गियों को तोड़ा गया, उससे 10 दिन पहले ही मैं माँ बनी थी। झुग्गियों के टूटने के बाद हम सभी लोग सड़क पर रहने को मज़बूर थे। मैं भी अपने बेटे को लेकर सड़क पर ही बैठी थी।

अपने बेटे की ओर ममता भरी निगाहों से देखते हुए बताती हैं कि यह केवल एक माँ ही जान सकती है, 10 दिन के बच्चे की क्या-क्या जरूरतें होती हैं। इसको शब्दों में नहीं बताया जा सकता।

सरोज बताती हैं कि वह राजस्थान के एक छोटे से गांव की रहने वाली हैं। उनके माता पिता ने बहुत उम्मीदों के साथ 2 साल पहले उनकी शादी दिल्ली में रहने वाले एक मज़दूर परिवार के बेटे से की थी। वो कहती हैं कि मेरे माता पिता बहुत दुखी हैं कि आज उनकी बेटी के पास रहने को घर भी नहीं है।
सरोज के पति एक पेट्रोल पंप पर काम करते हैं। उनकी सास कोठियों में घरेलू कामगार के तौर पर काम करती हैं।

सरोज की सास सुनीति बताती हैं कि उस दिन हम सभी अपने परिवार को लेकर सड़क पर थे। चारों तरफ से मच्छरों ने घेरा हुआ था ऐसे में छोटे बच्चे के साथ खुले में रहना खतरे से खाली नहीं था।

परिस्थितियों से मज़बूर सुनीता ने बताया कि उस दिन मेरी मालकिन ने मेरी बहु को अपने घर में पनाह दी। जिसके बाद करीब 3 महीनों तक सरोज वहीं रही।

हैरानी की बात यह है कि 60 सालों से सेवा नगर की झुग्गियों में रहने वाले परिवारों के घरों में शौचालय नहीं हैं। यहां रहे वाले लोग सड़क किनारे बने सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल करते हैं। इतना ही नहीं इस शौचालयों के खुलने और बंद होने का भी समय निर्धारित हैं। सुबह 4 बजे से रात को 10 बजे तक ही लोग इसका यूज कर सकते हैं। उसके बाद कहीं खुले में शौच करते हैं।

जहां एक तरफ केंद्र सरकार स्वच्छ भारत और हर घर शौचालय होने का दावा करती है। वहीं उनकी पोल ऐसे इलाकों में जाने के बाद खुल जाती है।

राम देवी

सब नष्ट हो गया

टूटी हुई झुग्गियों के नजदीक एक काली मंदिर हैं, जहां एक बूढी दादी अपने 30 साल के नवासे के साथ रहती हैं। इससे पहले वो भी झुग्गियों में ही रहती थी। इनका घर भी CPWD ने उजाड़ दिया।

अपने कांपते होठों और नम आँखों से इंसाफ कि उम्मीद भरे 75 वर्षीय राम देवी बताती हैं कि इस दुनिया में मेरे नवासे के अलावा कोई नहीं हैं। पति की मौत तो कई साल पहले हो गयी थी, एक बेटी भी थी। 8 साल पहले उसकी और उसके पति यानि मेरे दामाद की सड़क हादसे में मौत हो गयी। तबसे मेरा नवासा मेरे साथ ही रहता है।

उन्होंने बताया कि 55 साल पहले ब्याह कर इन झुग्गियों में आयी थी। जीवनभर अच्छे बुरे हर तरह के अनुभव जिए। लेकिन जबसे रहने का ठिकाना खत्म हुआ है, लगता है सब नष्ट हो गया।

मंदिर के मालिक का धन्यवाद करते हुए दादी ने बताया कि जुलाई-अगस्त के महीने में मेरे नाती कि तबियत ज्यादा ख़राब हो गयी थे। जिसके बाद मंदिर के मालिक ने हमें मंदिर में एक कमरा दिया है।

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राम देवी

मिटटी के चूल्हे के आसपास बिखरी लकड़ियों के बीच खड़ी दादी ने कहा कि-

बीमारी के कारण नवासा कहीं भी ज्यादा दिन तक काम नहीं कर पाता है। हम बहुत गरीब हैं। उन्होंने बताया कि उनको न तो राशन मिलता है और न ही वृद्धा पेंशन। जबकि सभी के पहचान पत्र दिल्ली के हैं।

वो बोलती है कि सिलेंडर बहुत महंगा आता है। इसलिए आस पास से सूखी लकड़ियां इकट्ठा कर लेती हूं और फिर चूल्हे पर ही खाना बना लेती हूँ।

दादी चाहती हैं कि सरकार उनको एक छोटा सा मकान दे जिससे वो अपने नवासे के लिए कुछ तो छोड़ कर जाएँ।

आम आदमी पार्टी के क़ानूनी सलाहकर और कस्तूरबा नगर के विधायक मदन लाल गुप्ता

राजनीतिक पक्ष

कस्तूरबा नगर से आम आदमी पार्टी के विधायक मदन लाल से वर्कर्स यूनिटी की टीम ने परेशान झुग्गी वासियों की समस्याओं पर चर्चा की।

मदन लाल का कहना है कि CPWD केंद्र सरकार के अधीन आती है। इसलिए दिल्ली सरकार इस मामले में चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती है। शौचालय की समस्या पर उनका कहना है कि जब तक झुग्गियों का मामला उच्च न्यायालय में चल रहा है, हम वहां कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने बताया कि CPWD वालों ने बिना पुनर्वास का इंतजाम किये ही झुग्गियों को तोड़ दिया। झुग्गियों में पानी बिजली कुछ नहीं है। इसलिए हम बस मदद के तौर पर पानी के टैंकर्स भेजते हैं।

मदन लाल आगे कहते हैं कि झुग्गीवालों की ओर से मांगपत्र की एक कॉपी हमारे पास भी आयी थी। जिसके बाद इस इलाके का विधायक होने के नाते हमने उनको ये भरोसा दिया कि पार्टी अपनी और से क़ानूनी लड़ाई लड़ने के लिए मदद कर सकती हैं।

वकील की फीस और खर्चा नहीं देना पड़ेगा। उन्होंने इस बात का भी आश्वासन दिया दी यदि CPWD झुग्गियों को तोड़ने के बाद पुनर्वास के लिए कुछ राशि देने के मन बनती है तो पार्टी इसमें भी झुग्गी में रहने वाले परिवारों की आर्थिक मदद भी करने को तैयार है।

झुग्गियों के प्रधान मंगतू राम

परिस्थितियों से मज़बूर

झुग्गियों के प्रधान मंगतू राम बताते हैं कि “इस इलाके में कोई सामाजिक संगठन सक्रिय नहीं है। अगर कोई होगा भी तो हमारी सुध किसी ने नहीं ली है।”

झुग्गी वाले लोग अपने आप ही संघर्ष की लड़ाई लड़ रहे हैं। पिछले 7 महीने से हम सभी परिवार बिना पानी और बिजली के जीवन बसर कर रहे हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय से स्टे मिलने के बाद CPWD के अधिकारियों ने हमको परेशान करना बंद कर दिया है।

उन्होंने बताया कि महीने की हर 15 तारीख को कोर्ट में सुनवाई होती है लेकिन इसमें CPWD का कोई प्रतिनिधि हाज़िर नहीं होता है, इसलिए अभी तक मामला आगे नहीं बढ़ सका है।

परिस्थियों से मज़बूर अपने हाथों को बांधकर बैठे मंगतू राम ने कहा कि” प्रधान होने के बाद भी मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूँ। हम बस यहीं चाहते हैं कि झुग्गियों को हटाने से पहले केंद्र सरकार झुग्गियों में रहने वाले सभी परिवारों के रहने का इंतज़ाम करे। क्योंकि यहां रहने वाले लोग गरीब हैं। इसलिए न तो कहीं किराये पर रह सकते और न नया मकान बना सकते हैं।”

शाहदरा स्थित कस्तूरबा नगर

कस्तूरबा नगर (शाहदरा) के हालात

दिल्ली में दो जगह कस्तूरबा नगर है और दोनों ही जगहों पर निर्माण के नाम पर झुग्गियों को तोड़ा जा रहा है। कस्तूरबा नगर (शाहदरा) में सक्रिय कस्तूरबा नगर युवा संघर्ष मंच की सदस्य संगीता खोदा ने कहा कि “फिलहाल हमारे संगठन को इस बात की कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने वर्कर्स यूनिटी का धन्यवाद किया कि हमारे जरिए घटना की जानकारी मिली।”

वह बताती है की शाहदरा स्थित कस्तूरबा नगर में 1947 के बंटवारे के बाद पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र से आये दलित लोगों को बसाने के लिए जगह की ज़रुरत पड़ी। राजधानी की सीमा पर इस जगह को खाली पा कर सरकार ने लोगों को यहां बसने को कहा। इस इलाके को कस्तूरबा नगर का नाम भी मिला। यहां करीब 200 लोग 70 साल से रहते आये हैं।

आज इतने सालों बाद इन लोगों से प्रमाण पत्र और घर के काग़ज़ात मांगे जा रहे है। “उनसे उनके यहाँ रहने के अधिकार पर दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने सवाल उठाया है। अगस्त के पहले हफ्ते, उनके घरों के पास एक पोल पर अंग्रेजी में एक नोटिस चिपकाया गया ।”

अंग्रेजी पढ़ने वालों की मदद से वहाँ के निवासियों को पता चला की DDA ने उनके घरों को अवैध घोषित किया है।

अवैध बताकर अब DDA इन घरों को तोड़ने वाली है। तब से कस्तूरबा नगर के लोग तनाव में है।

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उनका मानना है कि चाहे केंद्र सरकार हो या दिल्ली सरकार, ये सभी मिल कर निर्माण के नाम पर झुग्गियों को उजाड़ रहे है। लेकिन पुनर्वास के नाम पर कुछ भी नहीं देते हैं।

संगीता ने कहा कि जब देश के प्रधानमंत्री सत्ता में आने के लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे, तब उन्होंने वादा किया था कि देश के हर नागरिक के सिर पर छत होगी।

वहीं केजरीवाल ने 2013 में चुनावी प्रचार के समय ‘जहां झुग्गी ,वहां मकान‘ नारे के साथ दिल्ली में रहने वाले झुग्गी वालों को इस बात का आश्वासन दिया था कि दिल्ली में जहां जहां झुग्गियां है, वहां मकान बनाए जाएंगे।

हौसखास, सेवा नगर झुग्गियां

उन्होंने बताया कि कस्तूरबा नगर के अलावा कटपुतली कॉलोनी (शादीपुर) और खड़क गांव में भी 100 से ज्यादा झुग्गियों को तोड़ दिया गया है।

संगीता का कहना है कि झुग्गियों को तोड़ने के लिए सरकर ऐसी नीतियों का इस्तेमाल करती हैं, जिससे झुग्गी वासी एक साथ आवाज न उठा सकें।

उन्होंने बताया कि दिल्ली में जहां भी झुग्गियां तोड़ी गयी हैं, वहां 40 फीसदी झुग्गियों को नहीं तोड़ा गया है। इसके वो लोग आंदोलन का हिस्सा नहीं बनाना चाहते है जिनकी झुग्गियां नहीं टूटी हैं।

संगीता ने वर्तमान परिस्थियों पर चिंता जताते हुए कहा कि जहां पहले सरकार पुनर्वास की बात करती थी, अब तो केवल झुग्गियों को उजड़ा जा रहा है और पुनर्वास का कहीं नामों निशान ही नहीं है।

झुग्गियों के गरीब मज़दूर परिवारों को सड़क पर छोड़ दिया गया है। इनकी सुध कोई नहीं ले रहा है।

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One Comment on ““बस रहने को एक घर चाहिए और कुछ नहीं”: दिल्ली की झुग्गियों पर बुलडोज़र की दर्दनाक कहानियां- Ground Report”

  1. बहुत बढ़िया रिपोर्ट..

    आज के दौर में ऐसी खबरों पर किसी का ध्यान नहीं है.

    गरीब मजूदरों की आवाज पर उचित फोरम पर उठनी चाहिए.

    वर्कर्स यूनिटी की टीम का काम प्रशंसनीय है..

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