आज़मगढ़: मंदुरी एयरपोर्ट का विरोध जारी, ग्रामीणों ने कहा-‘जान देंगे, जमीन नहीं देंगे’

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By रितेश विद्यार्थी

उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले में पिछले एक महीने (13 अक्टूबर 2022) से मंदुरी एयरपोर्ट को अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने के लिए किये जा रहे भूमि अधिग्रहण के विरोध में सात गाँवों के ग्रामीणों का आंदोलन चल रहा है। सैकड़ों की संख्या में महिलाएं और पुरुष सगड़ी तहसील के जमुआ हरिरामपुर गांव के प्राथमिक विद्यालय के सामने मैदान में धरना दे रहे हैं और सभा कर रहे हैं।

सगड़ी तहसील के मंदुरी बलदेव गांव में 2005 में मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में एक एयरपोर्ट बनाया गया था। उस समय एयरपोर्ट के लिए जो जमीन ली जानी थी वो बंजर थी। इसलिए ग्रामीणों ने उसका विरोध नहीं किया था।

साल 2017 के विधानसभा चुनाव में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे, तो उन्होंने मंदुरी एयरपोर्ट को इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाने की घोषणा की। मंदुरी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के विस्तारीकरण की योजना का 2018 में शिलान्यास भी कर दिया गया।

इस योजना के तहत सरकार कुल 670 एकड़ जमीन लेना चाहती है। सर्वे और जमीन नपाई का काम सरकार दो चरणों में करेगी। पहले चरण में 360 एकड़ जमीन का सर्वे कार्य पूरा किया जा चुका है और दूसरे चरण में 310 एकड़ जमीन के का सर्वे होना बाकी है।
कई गावों में किया गया गुप्त सर्वे

सर्वे और पैमाइश की जिम्मेदारी तहसील और राजस्व विभाग को दी गयी है। प्रशासन ने पहले इसके लिए आसपास के कई गांवों में गुप्त सर्वे कराया। पहले जिन गांवों में भूमि अधिग्रहण होना था वो रसूखदार बड़े भूस्वामियों के गांव थे जिनकी शासन-प्रशासन व भाजपा सरकार में पकड़ है।

इसलिए उन्होंने दबाव बनाकर अपने गांव में एयरपोर्ट का विस्तारीकरण नहीं होने दिया। उसके बाद सात नए गांवों हसनपुर, कादिरपुर हरकेश, लछेहरा, जिगना कर्मनपुर, जमुआ हरिरामपुर, हिच्छन पट्टी गढ़नपुर, सांती सउरा में जमीन लेने का निर्णय प्रशासन द्वारा लिया गया।

इन सभी गांवों में ज्यादातर दलित- पिछड़े वर्ग के लोग रहते हैं। यहां के अधिकांश परिवार छोटे, सीमांत और मझोले किसान हैं। इन गांवों ने रहने वाले लोगों की करीब 40 फीसदी आबादी या तो भूमिहीन या मामूली ज़मीन वाली है।

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पुलिस ने ग्रामीणों पर किया लाठीचार्ज

बीते 12 अक्टूबर की दोपहर को एसडीएम समेत सरकारी अधिकारी हसनपुर और उसके आसपास के गांवों में प्रस्तावित अंतराष्ट्रीय एयरपोर्ट के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए 7 गांव के जमीन की नपाई करने के लिए पहुंचे थे।

जिसके बाद गांववालों ने इसका विरोध किया। इस दौरान गांव वालों का कहना था कि बिना किसी पूर्व नोटिस या सूचना के जमीन की नपाई नहीं की जा सकती है। इस विरोध के बाद प्रशासनिक अधिकारी वापस लोट गए।

लेकिन इस के बाद भी प्रशासन के अधिकारी नहीं रुके। उसी दिन (12 अक्टूबर) की रात को करीब दो बजे एसडीएम राजीव रतन सिंह भारी पुलिस बल के साथ जमुआ हरिरामपुर व आसपास के गांवों में दुबारा नपाई के लिए पहुंचे। इस बात की जानकारी गांव की ही एक महिला ने दी और गांव वालों को अलर्ट दिया।

रात में चोरी चुपके से की गयी इस गस्त का विरोध जब गांव वालों ने किया, जिसके बाद अधिकारियों के आदेश पर पुलिस बल ने गांव वालों पर लाठी चार्ज कर दिया।

इस लाठीचार्ज में बहुत से लोगों को चोटें आई हैं, जिसमें महिलाएं भी शामिल हैं। लाठीचार्ज में घायल महिलाओं का आरोप है कि पुलिस ने उनको आपत्तिजनक शब्दों से सम्बोधित भी किया। लाठीचार्ज के दौरान मची अफरातफरी को खेतिहर मज़दूर महिलाओं ने संभाला।

एमए में पढ़ने वाली एक दलित छात्रा सुनीता गौड़ ने कहा कि ‘लेखपाल से उनकी जरीब छीन ली। इसके बाद पुलिस वालों ने उसको गाली देते हुए जबरन पुलिस वैन में बिठाने की कोशिश की।

वजन खेतिहर मज़दूर के तौर पर काम करने वाली सावित्री ने बताया कि जब पॉलिशवालों ने उनको लाठियों से पीटना शुरू किया तो उनका नाबालिग बेटा अपनी उनको बचाने के लिए आया तो पुलिसवालों ने उसको भी पीटना शुरू के दिया।

जिसके बाद पुलिस ने उनको भी वैन में बैठा लिया। इस लाठीचार्ज में अगुवा किसान नेता कपिल यादव और संजीव यादव को भी चोटें आयी हैं।’

स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस की दबंगई इतने पर ही नहीं रुकी। पुलिसवालों ने गांववालों को घरों के अंदर जाकर भी पीटा। इतना ही नहीं इस दौरान पुलिसवालों ने महिलाओं तक को नहीं बख्शा। लाठीचार्ज में एक पुरुष का हाथ भी टूट गया। पुलिसवालों ने ग्रामीणों को उनके घरों में तालाबंद करना शुरू कर दिया।

इसके बाद भी गांववालों ने नपाई का विरोध करना बंद नहीं किया। अंततः माहौल को उग्र होता देख प्रशासन को वहां से वापस लौटना पड़ा।

इस पूरी घटना के दौरान पुलिसवालों ने कुछ ग्रामीणों की गिरफ्तारियां भी की गयी, जन दबाव के कारण उनको छोड़ दिया गया।

12 अक्टूबर को हुई इस गतिविधि के बाद अगली सुबह लाठीचार्ज में घायल हुए सातों गांव के लोगों ने बैठक कर एकजुट करने की रणनीति बनाई। उसी दिन खेतिहर मज़दूर किसानों ने जमुआ हरिरामपुर गांव के प्राथमिक विद्यालय के पास मैदान में अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया।

आंदोलन की रणनीति

जब खेतिहर किसानों ने अपनी जमीन बचाने के आंदोलन शुरू तो उनके समर्थन में आज़मगढ़ के वामपंथी, जनवादी व किसान संगठनों ने धरना स्थल पर पहुंचकर अपना समर्थन देना शुरू किया।

चूँकि ये सारे संगठन संयुक्त किसान मोर्चा के पार्ट हैं। इसलिये इन सब ने मिलकर संयुक्त किसान मोर्चा (किसान संग्राम समिति, रिहाई मंच, अखिल भारतीय किसान महा सभा, जनमुक्ति मोर्चा, संयुक्त किसान-मजदूर संघ, जय किसान आंदोलन, पूर्वांचल किसान मोर्चा) की ओर से इस आंदोलन को समर्थन व सहयोग देने का निर्णय लिया।

इसके अलावा नेशनल एशोसीएशन ऑफ पीपुल्स मूवमेंट NAPM ने भी इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया है। संयुक्त किसान मोर्चा की पहलकदमी पर स्वतः स्फूर्त ढंग से शुरू हुए। इसके बाद आंदोलन को व्यवस्थित ढंग से चलाने व नेतृत्व प्रदान करने के लिए ‘जमीन बचाओ-मकान बचाओ’ संयुक्त मोर्चा का गठन किया गया।

‘जमीन बचाओ-मकान बचाओ’ सयुक्त मोर्चा ने प्रभावित सातों गांवों में ग्राम कमेटियों का गठन किया गया। इन ग्राम कमेटियों के प्रतिनिधियों को लेकर एक मुख्य कमेटी का गठन किया गया। इस सभी प्रतिनिधियों द्वारा धरने व आंदोलन का संचालन किया जा रहा है।

वर्तमान में संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) और NAPM दोनों ही ‘जमीन बचाओ- मकान बचाओ’ संयुक्त मोर्चा के पार्ट हैं। संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा इस आंदोलन को समर्थन देने से ग्रामीणों में अपनी लड़ाई को लेकर आत्मविश्वास बढ़ा है।

‘जमीन बचाओ- मकान बचाओ’ संयुक्त मोर्चा नियमित तौर पर अपनी बैठकों का आयोजन करता है और आगे की रणनीतियों पर चर्चा की जाती है। इस कड़ी में 13 अक्टूबर के बाद से लड़ाई को योजनाबद्ध ढंग से आंदोलन का रूप देकर आगे बढ़ाया जा रहा है।

अनिश्चितकालीन धरना प्रति दिन दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक चलता है। धरना सम्बन्धी मामलों पर चर्चा व सूचना मीडिया प्रभारी द्वारा सूचना प्रेस व सोशल मीडिया तक पहुंचाते हैं।

संयुक्त मोर्चा द्वारा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन भी जिलाधिकारी के माध्यम से भेजा जा चुकें हैं। ग्रामीणों ने अपने विरोध से अवगत कराने के लिए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को पोस्टकार्ड भी भेजा है। ग्रामीणों को जमीन संबंधी लड़ाई के लिए जागरूक करने के लिए गांव गांव ने चौपाल लगाए गए हैं।

धरना स्थल पर प्रतिदिन जन सभा और सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे जन गीतों-नाटकों का आयोजन किया जाता है। जिला मुख्यालय पर भी बीच-बीच में विरोध प्रदर्शन किया जाता है। अलग-अलग दिन बाहर से समर्थन देने के लिए अन्य संगठनों व जन नेताओं को भी धरना स्थल पर बुलाया जाता है।

भूमि अधिग्रहण, विस्थापन के खिलाफ अन्य जगहों पर चल रहे आंदोलनों के नेताओं से भी संपर्क किया जा रहा है। उनको समर्थन देने व उनसे समर्थन लेने का प्रयास भी किया जा रहा है ताकि आंदोलन को और मजबूत बनाया जा सके।

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किसान और मज़दूर संगठनों के वरिष्ठ नेताओं ने दिया समर्थन

20 अक्टूबर को संयुक्त किसान मोर्चा ने किसान संगठनों, जन संगठनों, छात्र संगठनों से आंदोलन को समर्थन देने के लिए आजमगढ़ आने का आह्वान किया।

इसके बाद से हरियाणा के किसान नेता गुरुनाम सिंह चढूनी, उत्तराखंड के किसान नेता जगतार सिंह बाजवा, मनरेगा मजदूर यूनियन, जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय(NAPM) से अरुंधति ध्रुव, मेधा पाटकर, सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे, भारतीय किसान यूनियन से राकेश टिकैत, एपवा(बनारस) से कुसुम वर्मा, सिटिज़न फ़ॉर जस्टिस एंड पीस से मुनीज़ा खान, भगत सिंह छात्र मोर्चा (BHU) से इप्शिता, संदीप, विनय, मेहनतकश मुक्ति मोर्चा(चन्दौली) से रितेश विद्यार्थी, पूर्वांचल के तमाम किसान संगठनों के प्रतिनिधिगण आदि आंदोलन के समर्थन में अब तक धरनास्थल पर आ चुके हैं।

लखनऊ और बनारस के किसान संगठनों ने धरना स्थल तक पदयात्रा करने का निर्णय लिया है।

 सामाजिक और आर्थिक स्थिति

मंदुरी एयरपोर्ट को अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने की इस गतिविधि में आजमगढ़ जिले के सात गांव प्रभावित हो रहे है। उनको उजड़ा जा रहा है। इस गांवों में रहने वाली कुल आबादी में से 40 फीसदी आबादी भूमिहीन है और खेतिहर मज़दूर के तौर पर काम करती है। जिनके पास जीवन यापन के लिए मज़दूरी के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।

इस योजन के तहत करीब 6000 से 40000 घरों को उजड़ने की प्रशासन तैयारी कर रहा है। इनके सभी भूमिहीन मज़दूरों के पास गांव में सिर्फ अपना घर है या थोड़ी बहुत ग्राम समाज, बंजर व जलाशय की जमीन है। जिस पर वो थोड़ा बहुत कुछ बो-खा लेते हैं।

इस संबंध में ग्रामीणों ने सरकार से मुआवजा लेने से भी माना कर दिया है। योजना से प्रभावित गांव के लोगों का कहना है कि हमें मुआवजा नहीं चाहिए, बल्कि जीना है हम उतने में संतुष्ट हैं। लेकिन हम अपनी जमीन को नहीं देंगे।

दलित बहुमूल्य आबादी होने के कारण ग्रामीणों के पास गांव की सम्पति के अलावा और कुछ नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव के बाहर रहने का कोई ठिकाना नहीं है। न ही इतना पैसे हैं कि ये कहीं और जमीन लेकर घर बना सकें।

उनका कहना है कि गांव में फिर भी साफ-हवा पानी मिल जाता है। अगर इन गांवों को उजाड़ दिया जायेगा, तो सभी ग्रामीण मज़दूरों के हालात मलिन बस्तियों में रहने वाले घुमंतू मज़दूरों जैसी हो जाएगी।

पिछले एक महीने से चल रहे धरने व आंदोलन में सबसे ज्यादा भागीदारी महिलाओं की है। जातिगत भागीदारी देखें तो धरने में आने वाली ज्यादातर जनता दलित है, उसके बाद पिछड़ी जातियों के हैं। जबकि ऊँची जाती के लोग उंगली पर गिने जा सकते है और इस वर्ग की महिलाओं की न के बराबर है।

जीविका, पर्यावरण, संस्कृति और अस्तित्व का सवाल

आज़मगढ़ एक कृषि प्रधान जिला है। यहां की 65% आबादी मुख्य तौर पर कृषि या कृषि से जुड़े कामों जैसे पशु पालन, खेत मजदूरी आदि पर निर्भर है।

बाकी लोग रोजगार की तलाश में कुछ-कुछ महीनों के लिए बड़े शहरों-महानगरों में जाते हैं और फिर वापस गांव चले आते हैं।

इन 7 गांवों की जो जमीन ली जा रही है, वह बहुत उपजाऊ जमीन है। जंहा धान, गेहूँ, दलहन, तिलहन, मक्के, चरी, ईंख आदि की खेती इन जमीनों पर होती है।

समय-समय पर यह जमीन सारे ग्रामीणों के पशुओं के लिए सामूहिक चारागाह का काम भी करती है। यहाँ लोगों के पास फलदार पेड़ और बगीचे भी हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी यहाँ रह रहे लोगों का अपने गांव, अपनी मिट्टी, पेड़ों आदि से भावनात्मक लगाव है।

ये अपनी ग्रामीण संस्कृति में रचे बसे हुए हैं। लोग मजबूरी में रोजगार के लिए भले ही अपने गांव से दूर जाते हैं, लेकिन उनका दिल अपने गांव में ही बसा रहता है। इस भूमि अधिग्रहण से उनके जीविका, संस्कृति और अस्तित्व का सवाल जुड़ा हुआ है, लगातार तबाह होते पर्यावरण का सवाल जुड़ा हुआ है।

गांव के सभी खेत मजदूरों, पशुपालकों और मेहनतकश किसानों के जेहन में बस एक ही चिंता दिख रही है कि भयानक बेरोजगारी के इस दौर में अपने गांव, घर और जमीन से बेदखल होना उनकी जिंदगी को तबाह कर देगा।

एक दफा जब धरनास्थल पर बैठे ग्रामीणों से पूछा गया कि आप सभी में से कितने लोग जहाज में बैठे हैं तो किसी ने भी हाथ नहीं उठाया। इस अभी गावं में रहने वाले मज़दूरों को ट्रैन में रिज़र्वेशन कराने के लिए भी अपनी जेब तलाशनी पड़ती है, वो अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट लेकर क्या करेंगे।

लोगों का स्पष्ट कहना है कि यहाँ पहले से एयरपोर्ट है ही और आसपास के जिलों कुशीनगर, बनारस, इलाहाबाद में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट भी है, फिर यहाँ अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने की क्या जरूरत है।

ग्रामीणों का मानना है कि सरकार लोग यह भी जानते हैं कि यह सब सरकारी योजनाओं के नाम पर जमीन हड़पकर बाद में देशी-विदेशी कंपनियों के हवाले कर देने की साजिश है।

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आज़मगढ़ की धरती आंदोलनों की धरती है। हाल के वर्षों में इसे आतंकगढ़ कहकर बदनाम करने की भरपूर कोशिश शासकवर्गों खासकर कॉरपोरेट परस्त दलाल हिंदुत्ववादी फासीवादी संगठनों द्वारा की गई है।

लेकिन यहां की साझी विरासत और वामपंथी संघर्षों के इतिहास और वर्तमान को मिटाया नहीं जा सका।

यह राहुल सांकृत्यायन, कैफ़ी आज़मी की धरती है। अन्याय के खिलाफ संघर्षों का इसका शानदार इतिहास रहा है। आज भी किसी भी संघर्ष में यहाँ के लोग अग्रिम पंक्ति में खड़ा रहते हैं।

जमीन बचाओ-मकान बचाओ संयुक्त मोर्चा का यह शानदार और व्यवस्थित आंदोलन इस बात का उदाहरण है।

विकास मॉडल बनाम विनाश मॉडल

गौरतलब है कि लंबे समय से भारत में जो ‘विकास मॉडल’ चल रहा है वह विकास नहीं बल्कि देश की जनता के विनाश का मॉडल है। यह ‘विकास मॉडल’ अमेरिकी नेतृत्व में विदेशी साम्राज्यवादियों द्वारा तैयार किया गया है।

पहले कांग्रेस और तत्कालीन भाजपा सरकार साम्राज्यवादियों के निर्देश पर उनके और दलाल भारतीय बड़े पूंजीपतियों, बड़े भूस्वामियों के फायदे के लिए काम कर रही है।

1951 से 2010 के बीच शोषक दलाल सरकारों द्वारा 6.5 करोड़ लोगों को विस्थापित करके 4 करोड़ एकड़ जमीन पर जबरदस्ती कब्जा किया गया है। विस्थापित लोगों को नाम मात्र का हर्जाना मिला है व पुनर्वास भी अपवाद स्वरूप ही हुआ है।

साम्राज्यवादी देश खुद अपने यहां कृषि सेक्टर को भारी सब्सिडी दे रहै हैं जिससे वहां सस्ते खर्च पर भारी संख्या में कृषक माल पैदा किया जा रहा है और भारत जैसे देशों के घरेलू बाजार में उड़ेल दिया जा रहा है। उनके अनाज, कृषि औजार, खाद-बीज-उर्वरक-कीटनाशक से भारत के बाजार पटे हुए हैं।

भारतीय कृषि क्षेत्र के मामले में भी साम्राज्यवादियों पर निर्भर किया जा रहा है। हैवी माइनिंग प्रोजेक्ट, बिग डैम्स, मेगा इंडस्ट्रियल प्रोजेक्ट्स के लिए छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और कई अन्य राज्यों के आदिवासी किसानों को जबरिया बेदखल करके लाखों एकड़ जमीन कब्जा किया गया है और आज भी किया जा रहा है। जिससे पर्यावरण, जंगल, पानी आदि की भारी तबाही हो रही है।

माइनिंग विस्फोट के दौरान निकलने वाली गैस इतनी जहरीली होती है जिससे वहां काम करने वाले मज़दूरों और आसपास के नागरिकों को शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य का भारी नुकसान होता है। पोर्ट, एयरपोर्ट, कोल्ड स्टोरेज, मल्टीप्लेक्स सिनेमा हॉल, उद्योगों को बिजली और पानी सप्लाई करने के लिए बनने वाले बड़े बांधों के लिए लाखों एकड़ जमीन किसानों से छीना जा रहा है।

खनन के काम से जल स्तर काफी नीचे चला जाता है। पर्यवरण-जंगल की भारी तबाही होती है। 1 टन एल्युमिनियम बनाने में 1378 टन पानी खर्च होता है। यह काम कांग्रेस सरकार भी करती रही है। लेकिन मोदी सरकार जिस आक्रामकता के साथ साम्राज्यवादी नीतियों को जनता पर थोप रही है वो भयानक है।

मोदी की भाजपा सरकार ने इस काम के लिए ढेर सारे कानूनों में खतरनाक बदलाव किया है व कुछ जनद्रोही अध्यादेश भी ले आई है जो आगे चलकर संसद से भी पारित करा लिया जाएगा। जैसे- इनवायरमेंट (प्रीवेंशन) एक्ट 1986, जल प्रदूषण (प्रीवेंशन) एक्ट 1974, वायु प्रदूषण (प्रिवेंशन) एक्ट 1981 ,फॉरेस्ट कन्जर्वेशन आर्डिनेंस 2024।

पूरी देश में जारी है जमीनी संघर्ष

यह सब कुछ साम्राज्यवादियों, दलाल भारतीय पूंजीपतियों व बड़े भूस्वामियों के हित में किया जा रहा है। साम्राज्यवादी नीतियों की बानगी देखिए कि विश्व बाजार में लौह अयस्क 1000 रुपये प्रति टन है लेकिन 50-400 प्रति टन के हिसाब से जापान, चीन कोरिया को निर्यात किया जाता है। जबकि वहीं देश के छोटे व्यवसायियों- छोटे उद्दोगपतियों को कई गुना ज्यादा की कीमत पर बेचा जाता है।

अभी हाल ही में आज़मगढ़ की ही तरह सोनभद्र में भी 650 एकड़ जमीन एयरपोर्ट के नाम पर लेने की घोषणा हुई है। हसदेव अरण्य जंगल को खनन के लिए तबाह करने के खिलाफ आंदोलन चल रहा है।

बस्तर के जंगलों में खनन के काम को तेज करने व आदिवासियों के प्रतिरोध को कुचलने के लिए कदम-कदम पर सैन्य कैम्प बनाने के खिलाफ पिछले डेढ़ साल से चल सिलगेर में आदिवासी किसानों का जुझारू आंदोलन चल रहा है।

कैमूर पठार(बिहार) में सैकड़ों गाँवों को बाघ अभ्यारण्य के नाम पर हटाया जाना है। बाघ तो बहाना है पहले बाघ के नाम पर हटाएंगे फिर कंपनियों को दे देंगे। कई अन्य टाइगर रिज़र्व इस बात के उदाहरण हैं। जिनको इंसानों की चिंता नहीं है उन्हें बाघों की भला क्या चिंता हो सकती है। कैमूर की जनता इसके खिलाफ मजबूती से लड़ रही है। बड़े भूस्वामियों के पास जमीन ज्यादा है, उनकी कमाई के सैकड़ों श्रोत है।

वो भूमाफिया, शिक्षा माफिया, ठेकेदार, प्रॉपर्टी डीलर बने, बस-ट्रक मालिक हैं। खेती में उनकी कोई रुचि नहीं है। इसलिए वो तो इंतजार करते रहते हैं कि उनकी जमीन से कोई हाइवे, सड़क इत्यादि निकल जाए ताकि कुछ मोटी रकम भी मिल जाये और उनकी जमीन भी महंगी हो जाये।

आज़मगढ़ के मामले में पहले जिन गाँवों में जमीन ली जानी थी वहाँ के बड़े रसूखदार भूस्वामियों ने अपनी पकड़ का इस्तेमाल करके अपनी जमीन का अधिग्रहण होने से बचा लिया ताकि उनके बगल वाले गाँवों में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का विस्तारीकरण भी हो, उनकी जमीन भी बची रहे और एयरपोर्ट बनने से उसकी कीमत भी बढ़ जाये ताकि व्यवसायिक उद्देश्यों से वो जमीन का इस्तेमाल करके मुनाफा कमा सकें।

आज़मगढ़ की जनता यह बात समझ रही है कि सरकार पहले सरकारी एयरपोर्ट के नाम पर जमीन से हमें बेदखल कर देगी फिर उसे किसी देशी-विदेशी कंपनी को सौंप देगी। लोग यह समझते हैं कि खेती और गांव उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी जीविका व आवास उपलब्ध कराते हैं। महंगाई जिस गति से बढ़ रही है और मुद्रा का जिस गति से अवमूल्यन हो रहा है। मुआवजे की कोई भी राशि जमीन की तुलना में छोटी है। 15 सालों से मंदुरी में एयरपोर्ट बना हुआ है लेकिन स्थानीय लोगों के जीविकोपार्जन में उससे कोई लाभ नहीं है।

आगे की रणनीति

संयुक्त किसान मोर्चा के सहयोग से और स्थानीय लोगों के दम पर चल रहे इस आंदोलन ने शासन-प्रशासन व भाजपा सरकार के कान खड़े कर दिए हैं। एक छोटे से क्षेत्र में चल रहे इस आंदोलन ने पूरे उत्तर प्रदेश और आसपास के राज्यों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। बेशक इसमें संयुक्त किसान मोर्चा की महत्वपूर्ण भूमिका है।

“जान देंगे, जमीन नहीं देंगे”, “जमीन हमारी आपकी, नहीं किसी के बाप की”, “कौन बनाया हिंदुस्तान, भारत का मजदूर किसान”, “लड़ेंगे-जीतेंगे”, “अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का मास्टर प्लान वापस लो”, “किसी भी कीमत पर जमीन-मकान नहीं छोड़ेंगे”, “विस्तारीकरण के नाम पर भूमि अधिग्रहण वापस लो”, “सर्वे के नाम पर महिलाओं का उत्पीड़न बंद करो”, “दलित महिलाओं और ग्रामीणों के उत्पीड़न की न्यायिक जांच कराओ”, “जमीन के लुटेरों वापस जाओ” जैसे नारों, तख्तियों और बैनरों से धरना स्थल गुलजार है। बाहर से आये लोगों के रहने, खाने का इंतजाम ग्रामीण अपने घरों में करते हैं।

स्थानीय आंदोलनकारियों व बाहर से आये आंदोलनकारियों के साथ बैठकर व बातचीत कर “जमीन बचाओ, मकान बचाओ संयुक्त मोर्चा” आंदोलन को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाने और मजबूत करने की रणनीति तैयार करता है। आगे इस आंदोलन को और प्रभावी बनाने व मजबूत करने के लिए अन्य जगहों पर चल रहे आंदोलनों से रिश्ता कायम किया जा रहा है।

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साथ ही साथ संयुक्त किसान मोर्चा के केंद्रीय एजेंडे में इस मुद्दे को शामिल कराने का प्रयास भी जारी है। ताकि अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट की गैर जरूरी व मजदूर-किसान विरोधी, जीविका-खेती और पर्यावरण विरोधी योजना को रद्द कराया जा सके। विकास के जनद्रोही साम्राज्यवाद परस्त- कॉरपोरेट परस्त मॉडल को ध्वस्त किया जा सके।

प्रभावित गाँवों की जनता व अगुआई करने वाले ग्राम कमेटियों के अलावा इस आंदोलन में शुरू से ही संयुक्त किसान मोर्चा आज़मगढ़ व पूर्वी उत्तर प्रदेश के नेताओं दुःखरन राम, राजेश आज़ाद, राजीव यादव, राजनेत यादव, रविन्द्रनाथ राय, रामराज, विनोद यादव, वीरेंद्र यादव आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लोक गायक काशीनाथ यादव के क्रांतिकारी गीत भी धरना स्थल पर उत्साहजनक माहौल बनाये रखते हैं।

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