असम: 2021 से अबतक राज्य में 4500 घरों पर बुलडोज़र चलाए, मुसलमान मज़दूरों की बस्तियों को निशाना बनाने का आरोप

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By नित्यानंद गायेन

एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी का साल 2022 तक हरेक नागरिक को पक्का घर देने का वादा, वहीं  इधर 2022 खत्म हो गया  और  भाजपा शासित राज्य असम में सरकार ने पिछले दो सालों में 4500 घरों पर बुलडोज़र चलाकर हज़ारों परिवारों को बेघर कर दिया गया।

बीते साल के अंतिम सप्ताह में कथित अतिक्रमण हटाने के नाम पर 40 परिवारों  का आशियाना छीन कर उन्हें विस्थापित कर दिया गया।

ख़बर के अनुसार,  26 दिसंबर 2022 को असम के बारपेटा में कनारा सतरा में लगभग 40 परिवारों के घर पर बुलडोज़र चला दिया गया। इससे केवल एक सप्ताह पहले, राज्य में नागांव जिले के बटाद्रवा थान में एक और बड़ा बेदखली अभियान चलाया गया था।

एनडीटीवी के वेबसाइट पर  26 दिसंबर को प्रकाशित खबर के मुताबिक, असम सरकार ने एक सप्ताह के भीतर दूसरे अतिक्रमण रोधी अभियान में सोमवार को बरपेटा जिले में 400 बीघा (132 एकड़ से अधिक) जमीन खाली कराने के लिए अभियान चलाया और इसी दौरान विरोध करने पर स्थानीय कांग्रेस विधायक शरमन अली अहमद को हिरासत में ले लिया गया।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कनारा सतरा में कई साल पहले 400 बीघा जमीन पर कब्जा कर लिया गया था। अधिकारी ने कहा, “करीब 400 लोगों को आज निकाला गया। 45 से 60 घरों में से सभी कच्चे या अस्थाई थे, उन्हें ध्वस्त कर दिया गया था। निकाले गए लोगों की तरफ से कोई विरोध नहीं हुआ; पूरी प्रक्रिया शांतिपूर्वक संपन्न हुई।”

2021 से 4,449 घरों पर बुलडोज़र चलाया

बेदखल परिवारों में ज्यादातर किसानी करने वाले समुदायों  के लोग हैं।  वे क्षेत्र में सरसों, आलू, मक्का और कई सब्जियों की खेती कर रहे थे।

इस कार्रवाई में घरों को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल किया गया। भारी मशीनरी को इलाके में कई पेड़ उखाड़ते भी देखा गया।

कांग्रेस विधायक शरमन अली अहमद ने मांग की कि बेदखल लोगों का पुनर्वास किया जाए।  पहला बेदखली अभियान 19 दिसंबर को नागांव जिले के बटाद्रवा में चलाया गया था। दो दिन तक चले बुलडोज़र से 5,000 से अधिक घरों को जमींदोज़ कर दिया गया।

ख़बरों के अनुसार भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद मई, 2021 से लेकर अब तक 4,449 परिवारों को बेघर किया जा चुका है जिनमें अधिकांश अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लकु रखते हैं।

तृणमूल कांग्रेस के पूर्व सांसद अहमद हसन इमरान ने एक खुला पत्र लिख कर कहा है कि असम में मुस्लिमों के हज़ारों घरों पर बुलडोज़र चलाए जा रहे हैं।

उन्होंने लिखा है कि जिन लोगों के घरों पर बुलडोज़र चलाए गए वो यहां पर 70-80 सालों से रहते आए हैं और नियमित सरकारी टैक्स की अदायगी करते आए हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकारी बेदखली कार्रवाई का निशाना मुसलमान बस्तियों को बनाया जा रहा है।

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हज़ारों परिवारों के घरों पर बुलडोज़र का कहर

असम सरकार की इस  कार्रवाई की निंदा करते हुए , अहमद ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि उनके निर्वाचन क्षेत्र में कवायद “अवैध, अमानवीय और संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ” है।

उन्होंने दावा किया कि भूखंड को 1992 में एक निष्क्रिय संगठन ‘बोरो कृषक समिति’ को आवंटित किया गया था, लेकिन इसने कभी भी भूमि पर कब्जा नहीं किया और न ही कभी इसका उपयोग उस उद्देश्य के लिए किया जिसके लिए इसे आवंटित किया गया था।

अहमद ने कहा, “नतीजतन, भूमि राजस्व विभाग को वापस कर दी गई।” उन्होंने कहा कि आजादी के बाद बागबार के लगभग 65 राजस्व गांवों का क्षरण हुआ है और हजारों परिवार बेघर और भूमिहीन हो गए हैं।

अहमद ने कहा, “इन कटाव प्रभावित परिवारों का पुनर्वास करना पिछली सरकारों का संवैधानिक कर्तव्य था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। नतीजतन, भूमिहीन और बेघर परिवार जहां कहीं भी शरण ले सकते हैं, शरण ले रहे हैं।” उन्होंने दावा किया कि बेदखल परिवार बाढ़ और कटाव में अपनी जमीन खोने के बाद इलाके में बस गए थे।

इससे पहले बुलडोज़र अभियान नागांव में 1,000 बीघा (1.35 वर्ग किमी) को कब्ज़ाने के लिए था, जहां से 359 परिवारों को उजाड़ा गया। इस कार्रवाई से नाराज़ कांग्रेस ने असम विधानसभा से वॉक आउट किया था।

असम में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि सभी लोगों, चाहे हिंदू हों या मुसलमान, को सतरा की जमीन खाली करनी होगी।

ख़बरों  के अनुसार, बुलडोज़र अभियान के खिलाफ पूर्व में हुए विरोध प्रदर्शनों के परिणामस्वरूप राज्य द्वारा निर्दोष लोगों की हत्या की गई है। 23 सितंबर, 2021 को असम में एक अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने वाले निष्कासन अभियान के दौरान पुलिस की गोलीबारी में ढालपुर के दो निवासी मारे गए थे।

‘सबरंग’ की खबर के अनुसार उनमें से एक मेनल हक बेदखली का विरोध कर रहे थे लेकिन 12 साल के किशोर शेख फरीद का विरोध से कोई लेना-देना नहीं था।

सबरंग इंडिया का सहयोगी संगठन सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) गौहाटी उच्च न्यायालय के समक्ष दो अलग-अलग रिट याचिकाओं में इन दोनों पीड़ितों के लिए न्याय की मांग कर रहा है। फरीद के मामले में, राज्य ने दावा किया कि पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई।

असम में भाजपा सरकार द्वारा इस विध्वंस अभियान के खिलाफ विरोध जारी है, बीते 28 दिसंबर को ऑल असम अल्पसंख्यक छात्र यूनियन (AAMSU) ने इसके खिलाफ विरोध करते हुए  असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का पुतला दहन किया।

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बेघर लोगों को पानी देने से भी सरकार ने किया इनकार

अमर उजाला  की एक रिपोर्ट के अनुसार, सीएम सरमा ने कहा कि भाजपा सरकार बेदखली की कवायद जारी रखेगी और इस बारे में बात करने का कोई मतलब नहीं है।

उन्होंने कहा कि ‘बेदखली एक सतत प्रक्रिया है और यह नहीं रुकेगी। हम पूरे राज्य में और बटाद्रवा में भी वन और सरकारी भूमि को साफ कर देंगे।’

वहीं, जब कांग्रेस विधायक रकीबुल हुसैन ने सरकार से बटाद्रवा में बेदखल लोगों की पीने के पानी और भोजन जैसी बुनियादी जरूरतों के इंतजाम की अपील की तो मुख्यमंत्री ने कहा, बेदखल लोगों को पानी देने की कोई नीति नहीं है।

उन्होंने जमीन पर कब्जा करके कानून तोड़ा है, इसलिए हम उनके लिए शिविर नहीं लगा सकते। यह गैर सरकारी संगठनों का काम है।

बता दें कि असम सरकार द्वारा किये जा रहे  बुलडोजर और  विस्थापन कार्रवाई के खिलाफ़ बरपेटा से कांग्रेस सासंद अब्दुल खालिक ने लोकसभा में 23 दिसंबर को  स्थगन नोटिस भी दिया था।

लेकिन असम सरकार पर किसी भी विरोध का कोई असर नहीं पड़ा और गरीबों के घरों पर बुलडोजर चलते रहे।

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