ओल्ड पेंशन स्कीम पर फिर अहलूवालिया ने किया विष वमन, ट्विटर पर हुए ट्रोल

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योजना आयोग के पूर्व डिप्टी चेयरमैन और अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने ओल्ड पेंशन स्कीम पर फिर से ताज़ा हमला बोला है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ एक कार्यक्रम में शामिल हुए अहलूवालिया ने इसे ‘बेतुका’ और ‘भविष्य में कंगाली लाने’ वाला क़रार दिया है।

अहलूवालिया ने शुक्रवार को एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में कहा, “जो लोग इसे आगे बढ़ा रहे हैं, उसका नतीजा ये होगा कि 10 साल बाद वित्तीय कंगाली आएगी। मेरा मानना है कि ये कदम बेतुका है और वित्तीय कंगाली का कारण बन सकता है।”

अहलूवालिया ने ये बयान ऐसे वक़्त दिया है, जब राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल समेत कई राज्य सरकारों ने ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल कर दिया है या इसे लागू करने का ऐलान किया है।

अहलूवालिया पहले भी ओल्ड पेंशन स्कीम की आलोचना कर चुके हैं और इसे ‘सबसे बड़ी रेवड़ी’ बता चुके हैं।

कांग्रेस नीत यूपीए गठबंधन में मनमोहन सिंह सरकार के समय अहलूवालिया योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन थे। योजना आयोग अब अस्तित्व में नहीं है।

मनमोहन सिंह के बाद आर्थिक मामलों में उन्हें कांग्रेस का थिंक टैंक माना जाता है।

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अहलूवालिया को किस बात की तकलीफ़

मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा, “एक अर्थशास्त्री के रूप में मैं यही कहूंगा कि राजनीतिक पार्टियां और सत्ताधारी पार्टियों को चाहिए कि वो सिस्टम को ऐसे कदम उठाने से रोकें जो निश्चित रूप से वित्तीय तबाही का सबब होगा।”

उन्होंने आगे कहा, “लेकिन ये कैसे किया जाए? जनता को बड़े पैमाने पर ये समझाने की ज़रूरत है कि भविष्य में इसकी कितनी क़ीमत चुकानी पड़ेगी। मान लीजिए सरकार आपको ऐसी पेंशन स्कीम दे रही है जो पहले से बेहतर है तो लोग इसे पसंद करेंगे। लेकिन कोई इसकी क़ीमत चुका रहा है। इसलिए हमें ऐसा जनमानस बनाने पर ध्यान देना होगा।”

अहलूवालिया ने कहा, “राजनीतिक व्यवस्था में जो लोग इसकी क़ीमत चुकाते हैं, उनकी भी बात सुनी जानी चाहिए और अगर राजनीतिक सिस्टम ये करने में अक्षम है तो मेरे पास इसका कोई समाधान नहीं है।”

उन्होंने कहा, “इसी तरह की चीजें अन्य देशों में भी होती हैं और हम ऐसे दौर में जी रहे हैं जहां कई देश राजनीतिक तौर पर गैरज़िम्मेदाराना फैसले ले रहे हैं। लेकिन इसमें सुधार की भी गुंजाइश होती है। समस्या ये है और मुझे शंका है कि इस तरह के कदम उठाने को लेकर केंद्र सरकार पर काफ़ी दबाव होगा चाहे कोई भी सरकार हो।”

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राज्यों पर तोहमत मढ़ रहे अहलूवालिया

मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि सुधारों का मुख्य दारोमदार राज्यों पर होता है और बहुत सारे ऐसे सुधार हैं जिनके लिए केंद्र को कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं होती।

उन्होंने कहा, “उदाहरण के लिए राज्य के क़ानून के मुताबिक कई मामलों में अपराधीकरण को ख़त्म करने के लिए केंद्र की कोई भूमिका नहीं होती है। केंद्र ऐसा करने से राज्य को नहीं रोकता है। लेकिन राज्य नहीं कर रहे हैं। ऐसी बहुत सी चीजों की लंबी सूची बना सकते हैं जो पूरी तरह राज्य के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।”

उन्होंने कहा, “इस लिहाज से देखें तो सिर्फ पेंशन स्कीम ही नहीं, बल्कि बिजली दरों को तय करने का मामला भी पूरी तरह राज्य के अधिकार में है, केंद्र सरकार राज्य के स्तर पर बिजली की दरें तय नहीं करती है।”

अहलूवालिया के मुताबिक, “अगर आप जलवायु परिवर्तन की समस्या को लेकर विचार करें जिसे हमने राष्ट्रीय स्तर पर 2070 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने का इरादा बनाया है, तो इसे हासिल करने के लिए आपको अक्षय ऊर्जा की ओर जाना होगा।”

उन्होंने कहा, “लेकिन राज्य के स्तर पर अगर आप रिन्यूएबल एनर्जी के लिए निवेश लाते हैं और इससे बिजली की क़ीमतें बढ़ती हैं तो क्या आप उपभोक्ताओं पर इसका भार डालेंगे या नहीं?”

अहलूवालिया ने आगे कहा, “या आप तर्क देंगे कि किसानों इससे मुक्त रखना चाहिए या कुछ अन्य लोगों के लिए कम क़ीमत वसूलनी चाहिए।।। पेंशन स्कीम के मुकाबले ये समस्या बहुत जल्द उभर सकती है।”

उन्होंने कहा, ” इसलिए राजनीतिक स्तर पर अख़बारों आदि में एक नैरेटिव बनाना होगा और जनता को भी सूचना देनी होगी तो लोगों को भी पता होगा कि क्या हो रहा है। अगर ये नहीं होता है तो मुझे नहीं लगता कि इसका कोई आसान हल निकलेगा।”

कुछ दिन पहले अहलूवालिया ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि पिछले समय में जो हमने सही दिशा में उपलब्धियां हासिल की थीं, उससे उल्टी दिशा में ये सब हो रहा है।

इंडियन एक्सप्रेस की एक ख़बर के अनुसार, बीते नवंबर में अहलूवालिया ने ओल्ड पेंशन स्कीम को ‘सबसे बड़ी रेवड़ी’ कहा क़रार दिया था।

कांग्रेस शासित सरकारों, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल किया गया है। हिमाचल सरकार भी इसे लागू करने का वादा कर रही है।

शनिवार को हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा, “कैबिनेट की पहली मीटिंग के बाद हम जल्दी ही राज्य में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करेंगे।”

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अशोक गहलोत का पटलवार, ट्विटर यूज़र ने किया ट्रोल

अहलूवालिया के इस बयान पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा, “अगर देश 60 साल तक ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करके और पेंशन देकर विकास कर सकता है तो क्या कर्मचारी को अपने बुढ़ापे के दौरान सुरक्षित महसूस करने का अधिकार नहीं है?”

“अगर कर्मचारी 30-35 साल नौकरी करता है और उसे बुढ़ापे में पेंशन भी नहीं मिलेगी तो वो कैसे अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाएगा, गुड गवर्नेंस में वो कैसे भागीदारी कर सकेगा?”
बीजेपी के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा है कि इससे कांग्रेस को सीख लेनी चाहिए। उन्होंने ट्वीट किया है, “कांग्रेस अपने परिवार व प्रधानमंत्री के विश्वसनीय अर्थशास्त्री की बात पर मंथन करे, अपनी तात्कालिक राजनीतिक ज़मीन बचाने के लिए देश के भविष्य के साथ क्या कर रहे हैं अपने ही लोगों की ज़ुबानी सुन लीजिए फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध विष वमन करिये।”

एक ट्विटर यूज़र रवींद्र साठे ने टिप्पणी की है, “उम्मीद है कि मिस्टर अहलूवालिया ये बुनियादी अर्थशास्त्र अपने राजनीतिक बॉस श्री राहुल गांधी को बताएं, जिनकी पार्टी अपने शासन वाले राज्यों में इस विनाशकारी स्कीम को बहाल करने पर अड़ी हुई है।”

एक अन्य ट्विटर यूज़र श्रीकांत पांडे ने लिखा है, “35 की सेवा के बाद 70,000 रुपये सैलरी मिलती है। रिटायर्ड कर्मचारी एनपीएस के तहत मिलने वाले 1900 रुपये में कैसे जीवन यापन करेगा? इन अर्थशास्त्रियों को ये भी बताना चाहिए। वरना इन्हें ओल्ड पेंशन स्कीम के ख़िलाफ़ बोलने का कोई हक़ नहीं।”

Pension Mahakumbh for old pension scheme in MP

क्या है ओल्ड पेंशन स्कीम?

ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत सेवानिवृत्त कर्मचारी को अनिवार्य पेंशन का अधिकार है। ये सेवानिवृत्ति के समय मिलने वाले मूल वेतन का 50 प्रतिशत होता है। यानी मूल वेतन का आधा हिस्सा पेंशन के रूप में दिया जाता है।

इतना ही नहीं, सेवानिवृत्त कर्मचारी को कार्यरत कर्मचारी की तरह लगातार महंगाई भत्ता में बढ़ोतरी की सुविधा भी मिलती है।

इससे महंगाई बढ़ने के साथ-साथ पेंशन में भी बढ़ोतरी होती रहती है।

किन राज्यों में फिर से लागू हुई ओल्ड पेंशन स्कीम

राजस्थान के बाद कई राज्यों ने ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने का फैसला किया। तथ्य ये भी है कि ये सभी राज्य गैर भाजपा शासित हैं।

हाल ही में हिमाचल प्रदेश के चुनावों में पेंशन एक प्रमुख सार्वजनिक मुद्दा बनकर उभरा था।

राज्य के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि वह अपनी पहली कैबिनेट बैठक में पुरानी पेंशन बहाल करने का वादा पूरा करेंगे।

राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड सरकारें पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का फ़ैसला पहले ही कर चुकी हैं।

पिछले महीने पंजाब सरकार ने भी पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने का आदेश जारी किया था।

18 नवंबर को जारी नोटिफ़िकेशन में कहा गया कि नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) के तहत आने वाले कर्मचारियों को पुरानी स्कीम का लाभ दिया जाएगा।

लेकिन बीजेपी नीत केंद्र सरकार की इस मामले पर अलग राय है। भाजपा केंद्र सरकार ने निकट भविष्य में पुरानी पेंशन योजना की बहाली की संभावना से इनकार किया है।

धीरे धीरे अन्य राज्यों में भी ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल किए जाने के लिए कर्मचारी यूनियनों की ओर से दबाव बढ़ रहा है।

साल 2024 में आम चुनावों से पहले छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना समेत नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। जानकारों की राय है कि अगर यह मुद्दा ज़ोर पकड़ता गया तो इसका असर भी आम चुनावों में देखने को मिल सकता है।

उल्लेखनीय है कि साल 2004 में केंद्र की तत्कालीन अटल बिहारी सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम ख़त्म कर न्यू पेंशन स्कीम की घोषणा की थी।

(बीबीसी हिंदी से साभार)

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