किसानों के दिल्ली कूच से घबराई मोदी सरकार ने शुरू की नेताओं की गिरफ़्तारी

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केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और ढाई सौ किसान संगठनों के मंच अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के संसद चलो आह्वान के दो दिन पहले ही किसान नेताओं की गिरफ़्तारियां शुरू हो गई हैं।

यूनियनों ने 26 नवंबर को देशव्यापी आम हड़ताल की घोषणा की है जबकि किसान संगठन 27 नवंबर को संसद घेरने का ऐलान कर चुके हैं जिन्हें यूनियनों का भी समर्थन हासिल है।

किसान संगठनों का कहना है कि वे अपनी मांगें माने जाने तक संसद का घेराव जारी रखेंगे। उल्लेखनीय है कि बीते क़रीब ढाई महीने से पंजाब के किसान रेलवे पटरियों पर धरना दे रहे थे और अभी बीते सोमवार को ही सशर्त आंदोलन स्थगित किया है।

अब लड़ाई की रणनीति मोदी सरकार को उसके ही घर में चुनौती देने की है ताकि सरकार दिल्ली में आराम से क़ानून पर क़ानून रद्दी की टोकरी में फेंक कर चैन की सांस न ले पाए।

हालांकि मोदी सरकार भी अपनी करतूतों से उपजने वाले विरोध से निपटने को लेकर सो नहीं रही है और किसानों के दिल्ली पहुंचने से पहले ही नेताओं को गिरफ़्तार करना शुरू कर दिया है।

workers protest masa at delhi ground

हरियाणा कांग्रेस ने ट्वीट कर कहा है, “किसान समर्थक होने का झूठा दिखावा करने वाली भाजपा ज़जपा सरकार किसान विरोधी काले कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसान नेताओ को गिरफ़्तार कर तानाशाही क़ायम करने पर तुली है।”

मंगलवार को स्वराज इंडिया पार्टी के नेता योगेंद्र यादव ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर बीजेपी की केंद्र सरकार और राज्य सरकार पर किसान नेताओं को गिरफ़्तार करने के आरोप लगाए हैं।

उन्होंने कहा कि तमाम किसान नेताओं और कार्यकर्ताओं के घरों पर छापा मारकर पुलिस उन्हें हिरासत में ले रही है और गिरफ़्तार कर रही है।

योगेंद्र यादव ने अपने फ़ेसबुक पेज पर लिखा है, “एआईकेएससीसी के राष्ट्रीय वर्किंग ग्रुप तथा राज्य स्तरीय संयोजकों ने देश भर के किसानों से आग्रह किया कि वे अपनी मांगों पर जोर देने के लिए दिल्ली की ओर कूच करें। उन्होंने समाज के अन्य तबकों से भी अपील की है कि वे अन्नदाताओं के हितों की रक्षा के लिए इन वाजिब मांगों के पक्ष में बढ़चढ़ कर समर्थन में सामने आएं और किसानों के विरोध को सहयोग दें।”

उन्होंने कहा बताया कि पंजाब, हरियाणा, यूपी, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश व अन्य राज्यों से दसियों हजार किसान दिल्ली के लिए विभिन्न दिशाओं से तथा अलग-अलग परिवहन से चल चुके हैं। कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से भी सैकड़ों की संख्या में किसान नेता दिल्ली पहुंच रहे हैं।
उधर 26 नवंबर को देशव्यापी हड़ताल को पूरी तरह सफल करने के लिए ट्रेड यूनियनों की तैयारी जोरों पर है।
उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार ने बीते संसद सत्र में क़रीब 30 श्रम क़ानूनों को ख़त्म कर तीन लेबर कोड ज़बरदस्ती पारित कराए थे, जबकि उससे ठीक पहले खेती में कांट्रैक्ट फ़ार्मिंग, आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी करने की खुली छूट समेत ऐसे कृषि क़ानूनों को पास कराया था जिसका तीखा विरोध चारो ओर से हुआ है।
यहां तक कि इऩ क़ानूनों के पास करने के दौरान विपक्ष ने बॉयकाट किया और कहा जा सकता है कि मोदी सरकार ने इसे ज़बरदस्ती पास कराया क्योंकि सत्ता पक्ष के अलावा सदन में और कोई नहीं था।
मोदी सरकार के इस मनमाने रवैये को विपक्षी दल तानाशाही बता रहे हैं और इन्हें तत्काल वापस लिए जाने की मांग कर रहे हैं लेकिन मोदी सरकार पर कोई असर होता नहीं दिख रहा।
विरोधियों का कहना है कि मोदी को पूंजीपतियों की खुली शह मिली है जिससे मोदी एंड कंपनी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि जनता क्या चाहती है।
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मोदी सरकार जनता की आकांक्षाओं से इतनी दूर जा चुकी है कि उसका पीछे लौटना नामुमकिन जैसा है और इसी का नतीजा है कि वो देश की सभी सार्वजनिक संपत्तियों को अपने याराना पूंजीपतियों के हवाले करने पर ऊतारू है।

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