‘मज़दूर नं. 1’ का मज़दूर अधिकारों पर निर्णायक हमला, श्रम विभाग ख़त्म, श्रम क़ानून DM के हवाले

modi mazdoor cartoon

श्रम क़ानून और श्रम अधिकारियों के रूप में जो थोड़े बहुत मज़दूरों की सुरक्षा के उपकरण थे, मोदी सरकार ने अब उन्हें भी छीन लिया।

श्रम कानूनों में बदलाव के तहत केंद्र व राज्य में श्रम आयुक्त, अतिरिक्त श्रम आयुक्त, उप श्रमायुक्त, सहायक श्रम आयुक्त और लेबर इंस्पेक्टर के पद समाप्त कर दिए गए हैं।

इनकी जगह चीफ़ फ़ैसिलिटेटर, एडिशनल फ़ैसिलिटेटर, डिप्टी फ़ैसिलिटेटर, असिस्टेंट फ़ैसिलिटेटर और फ़ैसिलिटेटर होंगे।

यह महज नाम परिवर्तन नहीं है, बल्कि श्रम अधिकारियों के पहले से ही सीमित कर दिए गए अधिकारों को पूरी तरह ख़त्म करना है।

दरअसल, केंद्र की मोदी सरकार 44 श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं में समेटने की पूरी तैयारी कर चुकी है।

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Labour law india under modi regime
मोदी सरकार ने 44 श्रम क़ानूनों को ख़त्म कर उन्हें चार सरल (पूंजीपतियों के लिए) संहिताओं में समेट दिया है।
श्रम अधिकारियों की जगह फ़ैसिलिटेटर, नहीं होंगे कोई अधिकार

ट्रेड यूनियनों के अनुसार, ये मजदूरों को लंबे संघर्षों के दौरान हासिल अधिकारों को छीनने की अबतक की सबसे बड़ी कोशिश मानी जा रही है।

इसी क्रम में चौथी संहिता है- ‘सामाजिक सुरक्षा और कल्याण श्रम संहिता’।

इसमें ही ये प्रावधान है कि अब श्रम अधिकारी पुराने नाम से नहीं जाने जाएंगे।

मुख्य काम चीफ़ फ़ैसिलिटेटर द्वारा देखा जाएगा। इनके अधीन एडिशनल फ़ैसिलिटेटर, डिप्टी फ़ैसिलिटेटर, सहायक फ़ैसिलिटेटर और फ़ैसिलिटेटर होंगे।

इन नए अधिकारियों को कंपनियों में सीधे जांच करने की इजाज़त नहीं होगी।

किसी शिकायत की जांच सीधे ज़िला अधिकारी की निगरानी में होगी।

चीफ़ फ़ैसिलिटेटर अन्य फ़ैसिलिटेटरों के माध्यम से आदेशों का पालन करेंगे।

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Labour law india under modi regime
श्रम अधिकारियों के पद समाप्त, अब उनकी जगह फ़ैसिलिटेटर होंगे।
अपनी मर्ज़ी से जांच भी नहीं कर सकते

इनका काम प्लांट, मशीनरी, ज़रूरी मैटेरियल, आदि का परीक्षण और दुर्घटना, चोट, मौत आदि की जांच करना होगा।

ये सुरक्षा, स्वास्थ्य और वेलफ़ेयर पर ‘ग़लतियों’ महज कारण बताओ नोटिस दे सकेंगे।

विशेष मामलों में जैसे दुर्घटना या स्वास्थ्य संबंधी मामलों में जांच से पूर्व कंपनियों के ऑक्युपायर/नियोक्ता/प्रबंधन को सूचना देंगे।

फ़ैसिलिटेटर जांच व सर्वे की रिपोर्ट किसी को भी सार्वजनिक नहीं करेगा। यह ‘कॉन्फिडेंशियल’ होगा।

सिर्फ कोर्ट, कमेटी या बोर्ड, संबंधित प्रबंधन, पंजीकृत और मान्यता प्राप्त यूनियन को दे सकता है।

यानी कंपनी का कोई श्रमिक भी उसे प्राप्त नहीं कर सकता है।

फ़ैसिलिटेटरका असल काम होगा ‘मज़दूरों को उसके अधिकार व कर्तव्य’ की जानकारी देना! बाकी सब टांय-टांय फिस्स।

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(संघर्षरत मेहनतकश से साभार)

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