बिल्डरों की अपील पर कर्नाटक सरकार ने मज़दूरों को ले जाने वाली ट्रेनें रद्द कीं

train migrants

तीसरी बार लकडाउन बढ़ाने के फैसले के बाद मज़दूरों को घर पहुंचाने के लिए ट्रेन चलान की इजाज़त दे दी गई थी।

कर्नाटक ने भी राज्य में फंसे मज़दूरों को ट्रेन से भेजने के आदेश जारी कर दिया था लेकिन मंगलवार, 5 मई को बिल्डरों से बैठक के बाद ये आदेश वापस ले लिया गया।

कर्नाटक की बीेजेपी सरकार के मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा से प्रापर्टी बिल्डर्स ने मुलाक़ात की थी, जिसके तुरंत बाद एक नया आदेश जारी कर ट्रेनों को चलाने की मंजूरी वापस ले ली गई।

इस संबंध में राज्य सरकार ने भारतीय रेलवे को चिट्ठी लिख कर ट्रेनों को रद्द करने की सिफ़ारिश की। ये ट्रेनें बुधवार, 6 मई से दिन में तीन बार चलनी थीं।

ये फैसला ऐसे समय आया है जब वर्कर अपने घर को लौटने की जद्दोजहद कर रहे हैं और ट्रेन चलाने का आदेश उनके लिए एकमात्र उम्मीद थी।

karnataka govt order

क्विंट वेबसाइट ने कर्नाटक सरकार के उस ख़त को सार्वजनिक किया है जिसमें ट्रेन रद्द करने के आदेश जारी किए गए हैं।

इस चिट्ठी में लिखा है कि पहले के आदेश में 6 मई से ट्रेन चलाने की बात कही गई थी लेकिन अब इसकी ज़रूरत नहीं है।

वेबसाइट ने एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के हवाले से कहा है कि हालांकि इस आदेश में कोई कारण नहीं बताया गया था लेकिन कर्नाटक के कॉनफ़ेडेरेशन ऑफ़ रीयल इस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (क्रेडाई) के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के बाद ये फैसला लिया गया।


बिल्डरों के हित में लिया गया फैसला

By मुकेश असीम

कर्नाटक की बिल्डर लॉबी ने सरकार को कहकर वहाँ से मजदूरों को ले जाने वाली ट्रेन बंद करा दीं। गोवा के बिल्डरों ने भी सरकार को कहा है कि मज़दूर चले गए तो उनका काम कैसे चलेगा।

गुजरात से निकलने वालों को मप्र की सीमा पर रोका जा रहा है। सभी औद्योगिक क्षेत्रों में यही किया जा रहा है। सस्ते मजदूरों के बगैर मुनाफा कैसे होगा?

पर ‘बुद्धिमान’ लोग हमें बतायेंगे कि पूंजीपति मजदूर को रोजगार देते हैं नहीं तो वे भूखे मर जाते और मुनाफा मालिकों की मेहनत और प्रतिभा से पैदा होता है।

पर सच वही है जो मार्क्स नामक इंसानियत से बेपनाह मुहब्बत करने वाला वैज्ञानिक डेढ़ सौ साल पहले बता चुका है – सारी संपदा सारा मूल्य मजदूरों के श्रम से पैदा होता है, उसमें से जितना उन्हें न देकर मालिक रख लेता है वही मुनाफा है।

कई सौ साल से इस मुनाफे के इकट्ठा होते जाने से ही सरमयदारों के पास दौलत के अंबार लगे हैं।

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