योगी सरकार ने मज़दूरों पर तीन साल के लिए इमरजेंसी लगाई, सारे श्रम क़ानून छीने

yogi adityanath

आखिरकार लॉकडाउऩ का मक़सद खुलकर सामने आ ही गया। बीजेपी शासित राज्य सरकारों ने एक एक कर अपने यहां मज़दूरों पर इमरजेंसी जैसे क़ानून लागू करना शुरू कर दिया है।

लॉकडाउऩ के बहाने यूपी सरकार ने अगले तीन सालों के लिए सभी श्रम क़ानूनों को मज़दूरों से छीन लेने का ऐलान किया है। ये फैसला योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट में हुआ है।

यानी अगले तीन साल तक उत्तर प्रदेश में कोई श्रम क़ानून लागू नहीं होगा और फ़ैक्ट्री मालिक जैसा चाहें मज़दूरों से व्यवहार कर सकते हैं। इसका मतलब ये भी हुआ कि मज़दूरों की हालत राज्य में गुलामों जैसी हो जाएगी।

उधर, मध्यप्रदेश कानून बना रहा है नये उद्योगों और मौजूदा 40 मजदूरों तक वाले उद्योगों पर फ़ैक्ट्री क़ानून लागू नहीं होगा। मालिक उनसे ‘अपनी सुविधानुसार’ जैसे चाहें काम करा सकते हैं।

श्रम विभाग और अदालतें इसमें कोई दखल नहीं देंगी। इन उद्योगों में सुरक्षा और स्वास्थ्य के कोई मानक लागू नहीं होंगे। किसी के बीमार होने पर श्रम विभाग को सूचना तक नहीं देनी होगी।

इन पर मज़दूरी, काम के घंटे, सुरक्षा, शौचालय/मूत्रालय, सफाई, वगैरह कोई क़ानून लागू नहीं होंगे।

ये दोनों राज्य बीजेपी के शासन वाले हैं। लेकिन उद्योगपतियों के हक में मज़दूरों को ग़ुलाम बनाने वालों में कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान सबसे आगे रहा है।

राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने न केवल उद्योगों को कोरोना के समय में ही खोल दिया बल्कि फ़ैक्ट्री मालिकों को मज़दूरों से 8 घंटे की बजाय 12 घंटे काम लेने का नया ग़ैरक़ानूनी आदेश जारी कर दिया है।

15 अप्रैल को जारी आदेश में राजस्थान सरकार की ओर से कहा गया है कि ये नियम अगले तीन महीने तक लागू रहेगा, लेकिन ये बात साफ़ है कि ये सिर्फ उद्योग जगत को इशारा है। जब 12 घंटे काम सामान्य बात हो जाएगी तो आदेश वापस लेने के बावजूद उद्योगपति इसे जारी रखना चाहेंगे।

पूंजीपतियों की इस सेवा के लिए मुख्यमंत्रियों की बैठक में नरेंद्र मोदी ने ख़ास तौर कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की भूरि भूरि प्रशंसा  की और इसे बाकी राज्यों के मॉडल बताया।

इससे पहले गुजरात के उद्योगपतियों की संस्था ने सबसे पहले सुझाव दिया था लॉकडाउन के कारण उद्योग धंधों में आई गिरावट की भरपाई के लिए अगले एक साल तक यूनियन बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया जाए।

up govt order snaching labour laws इन क़ानूनों का क्या होगा असर?

यूपीः श्रम क़ानूनों को स्थगित करने के मतलब है कि न तो यूनियन बनाने, न हड़ताल करने और ना ही मज़दूरी, बोनस या इंसेंटिव बढ़ाने की मज़दूर मांग कर सकेंगे।

राजस्थानः 12 घंटे काम का मतलब है कि मज़दूरों से हर दिन 4 घंटे अधिक काम कराया जाएगा और इसके ख़िलाफ़ वो बोल भी नहीं पाएंगे।

मध्य प्रदेशः 40 मज़दूरों तक वाली फ़ैक्ट्रियों में मज़दूरों की हालत गुलामों से भी बदतर हो जाएगी।

क्या कहते हैं ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट

हमाल पंचायत से जुड़े ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट चंदन कुमार का कहना है कि सरकार नए ज़माने की गुलामी मज़दूरों पर थोपना चाहती है और उसके लिए कोरोना और लॉकडाउन एक बहान बन गया है।

उनका कहना है कि यही वजह है कि केंद्र और राज्यों की बीजेपी सरकारें मज़दूरों को घर वापस भेजने में हीला हवाली कर रही हैं और कर्नाटक की बीजेपी सरकार का ट्रेनें रद्द करने से ये बात बिल्कुल साफ़ हो गई है।

सरकार चाहती है कि प्रवासी मज़दूरों को उनके घरों से दूर रखकर उनसे कोरोना के समय में काम कराया जाए और ऐसा क़ानून बनाया जाए कि वो चूं तक न बोलें।

उल्लेखनीय है कि बिल्डर लॉबी की अपील पर कर्नाटक की येद्दयुरप्पा सरकार ने प्रवासी मज़दूरों को ले जाने वाली ट्रेनें रद्द कर दी थीं जिसके ख़िलाफ़ ट्रेड यूनियनें कर्नाटक हाईकोर्ट पहुंची और वहां से आदेश आने के बाद ट्रेनें फिर से चलानी पड़ीं।

विपक्षी दलों ने कर्नाटक की सरकार के इस फैसले को आधुनिक ज़माने की गुलामी क़रार दिया था।

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