सांप्रदायिक तत्वों की निगाहों में खटक रहे मुंबई से लौटे मजदूर

By आशीष सक्सेना

सांप्रदायिक तत्वों के साथ मिलकर मीडिया का खेल पिछले दिनों बरेली में भी खेला गया, लेकिन वर्कर्स यूनिटी की ग्राउंड रिपोर्ट ने उस खेल को बेनकाब कर दिया था।

अब नए सिरे से ऐसी सुगबुगाहट है, जो किस किसी भी वक्त रंग दिखाई सकती है। इस बार निशाना बन सकते हैं मुंबई से लौटे मजदूर, जो कि संयोग से मुसलमान भी हैं। 21 मई की शाम तक बरेली जिले में मुंबई से लौटे सात संक्रमित लोगों की पुष्टि हुई, जिनमें छह मुसलमान हैं।

पिछले दिनों जब बरेली के गांव कर्मपुर चौधरी में पुलिस से गांव के लोगों के विवाद को राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया गया और बता दिया गया कि तब्लीगी जमात को तलाशने गई पुलिस पर हमला है, उस वक्त एक तनाव का माहौल बन गया।

राष्ट्रीय स्तर की खबरों में भी उन दिनों ‘जमाती’ मुद्दा छाया हुआ था। लेकिन बरेली में इस मुद्दे को ज्यादा हवा इसलिए भी नहीं मिल सकी कि यहां देवबंदी मसलक के सुन्नी मुसलमान न के बराबर हैं।

बरेली में आला हजरत दरगाह से जुड़े बरेलवी मसलक के सुन्नी मुसलमान हैं। इसके अलावा यहां सकलैन मियां और खानकाह-ए-नियाजिया के मुरीद हैं, जिनका देवबंद से नाता नहीं है।

लेकिन अब नई परिस्थितियों यहां बन रही हैं। इसकी वजह है यहां की विशिष्ट कारीगरी और उसका दूसरे राज्यों से संपर्क। बरेली के परंपरागत और मशहूर उत्पादों में सुरमा, हाथ से बनाया मांझा, फर्नीचर और जरी-जरदोजी का बेजोड़ शिल्प है।

इत्तेफाक ये है कि इन सभी कामोंं को करने वाले आमतौर पर मुस्लिम समुदाय के लोग हैं। सुरमा और मांझा तो स्थानीय स्तर पर ही तैयार होता है। जबकि फर्नीचर और जरी-जरदोजी के कारीगर बड़ी संख्या में दिल्ली, मुंबई और राजस्थान की बड़ी फर्मों में भी काम करने जाते हैं।

इसको इस बात से भी समझा जा सकता है कि बरेली जिले के कई कस्बों और मुख्य शहर से रोजाना प्राइवेट बस सर्विस जयपुर के लिए है, जिसमें जरी कारीगर ही आते-जाते हैं।

इन कारीगरों के साथ ही काफी लोग ऐसे भी हैं, जो मुंबई और राजस्थान में अन्य कामों से जुडक़र मेहनत-मजदूरी करते हैं, फल, हेयर कटिंग आदि का।

जो लोग दिल्ली में रहते थे, उनमें से अधिकांश तो दंगा होने के दौरान ही वापस आ गए। बाकी लोगों को ईद पर आना था, लेकिन लॉकडाउन की वजह से वे जैसे-तैसे आए हैं।

पिछले दिनों मुंबई से आने वाले दो युवकों की कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद माहौल बदलना शुरू हो गया। मुंबई में कोरोना संक्रमण ज्यादा है इसलिए भी वे केंद्र में हैं।

साथ ही सांप्रदायिक तत्व ये कहना शुरू कर चुके हैं कि ‘इन्हीं लोगों में ’ कोरोना मिल रहा है। ‘इन्हीं लोगों ’ के कहने में ‘जमाती’ शब्द तैर रहा है।

इत्तेफाक पर इत्तेफाक ये भी है कि ईद से ठीक दो दिन पहले बाजार खोले गए हैं और भीड़ भी शुरू हो गई है। भले ही सभी समुदाय के लोग बाजारों में आ रहे हों, लेकिन ईद की वजह से मुसलमानों का आना ही चर्चा में है।

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