कोरोनाः पीएम के मना करने के बावजूद मीडिया में अंधविश्वास फैलाने की आंधी – नज़रिया

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By आशीष सक्सेना

दुनिया का एकमात्र ऐसा देश, जहां सदियों से ब्राह्मणवाद अपने को नए रंगरूप में ढालकर आज तक न सिर्फ जीवित है, बल्कि वक्त बेवक्त हर बहाने संजीवनी भी देता है। फिलहाल, कोरोना वायरस की महामारी इसको मजबूत बनाने का बहाना बन गई है।

इस बात की तस्दीक कर करती है हमारे देश में कोरोना की दहशत के बीच सामाजिक हलचल। इस हलचल के बीच अफवाहें और दावे।

ये सब सत्ता में बैठे लोगों की प्रेरणा से ‘भीड़ का भरोसा’ बनाने की कोशिश भी है। कुछ तथ्यों से इसे बखूबी समझा जा सकता है।

भाजपा से जुड़े तमाम फेसबुक पेज और सोशल मीडिया पर पोस्ट भी इस बात को साबित करती रहीं कि एक ख़ास एजेंडा इस बुरे वक्त में भी पूरी ताकत से जुटा हुआ है।

हाल ही में कोरोना को लेकर राष्ट्र के संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवरात्र से ताकत पाने का आह्वान किया, ये उनकी सियासत का हिस्सा ही था, जो हिंदुत्व के नाम पर ब्राह्मणवादी संस्कृति और परंपराओं को समाज पर थोपने की कोशिश थी।

ऐसा तब है, जब नवरात्र की पूजा अर्चना समाज का एक हिस्सा करता है और तमाम लोग इसके पीछे बताए जाने वाले किस्से पर ऐतराज दर्ज कराते हैं।

जिस महिषासुर को मारकर देवी दुर्गा को महिषासुरमर्दनी की संज्ञा मिली, उन्हीं महिषासुर को एससी-एसटी समुदाय के जुड़े लोग अपना देवता या नेता मानकर पूजा अर्चना करते हैं।

देश में कई धर्म और संस्कृति के लोग बसते हैं, तो साझी विरासत या साझे मूल्यों से ताकत पाने की जगह किसी खास संस्कृति का स्थापित करने का आखिर क्या तुक है।

ये उसी एजेंडे पर काम करने जैसा है, जैसा कि सामान्य दिनों की राजनीति में सत्ताधारी दल अभी तक करता रहा है।

बात यही नहीं रुकती। ब्राह्मणवादी पोंगापंथ के सहारे लोगों को किस्मत के सहारे रहने के कार्यक्रम मीडिया के जरिए भी स्थापित किए जा रहे हैं इस दौरान।

https://www.facebook.com/WorkersUnity18/videos/499144804090408/

प्रमुख हिंदी दैनिक अखबार नई दुनिया की वेबसाइट पर इस आशय का लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें थाली बजाने से होने वाली ध्वनि को विज्ञान प्रमाणित रोगाणु विषाणु नाशक पौराणिक तंत्र बताया।

न्यूज-24 चैनल में कोरोना वायरस पर दिखाए कार्यक्रम में स्थापित करने की कोशिश की गई कि इस वायरस का जिक्र वेद-पुराणों में पहले ही लिखा है।

दावा किया गया कि नारद संहिता में इस वर्ष में पूर्व दिशा के देश से महामारी के खतरे को बताया गया है। इस पर जिन ‘शर्मा जी’ ने शोध किया, उनसे बातचीत भी दिखाई गई।

इसी तरह दैनिक हिदुस्तान की वेबसाइट लाइव हिंदुस्तान पर ज्योतिष पर आधारित रिपोर्ट चलाई गई, जिसमें ग्रह-नक्षत्रों के आधार पर ये स्थापित करने की कोशिश की गई कि कोरोना वायरस इसलिए आया है और ग्रहों की चाल बदलने से इसका असर 15 अप्रैल से कम होना शुरू हो जाएगा।

https://www.facebook.com/WorkersUnity18/videos/200487074591835/

इसके अलावा कई लेख-वीडियो भी बड़े पैमाने पर प्रसारित हुए, जिन्होंने एक के बाद एक कई अफवाहों को जन्म दिया।

जैसे, जनता कफ्र्यू की रात अमावस्या की काली रात होगी, जिसमें असुर शक्तियां, रोग फैलाने वाले जीव वातावरण में निकलेंगे, इसलिए मोदी जी ने सोच-समझकर ये दिन चुना, साथ ही उनके विनाश के लिए थाली-शंख आदि की ध्वनि से नष्ट करने का तरीका सुझाया है।

हालांकि, प्रधानमंत्री ने सीधे इस तरह की बात नहीं की थी, वह सिर्फ आभार प्रकट करने का आह्वान था। इस तरह कई अफवाहें शुरू हो गईं, जैसे रामायण पुस्तक के बालकांड पुस्तक में बालों का निकलना आदि।

बिल्कुल निचले स्तर पर पहुंचते-पहुंचते कई अफवाहें और कहानियां भी चल निकली हैं।

मसलन, कोरोना वायरस का आकार और रंग, मुंह में चले जाने या फिर चिपक जाने की कल्पनाएं। इससे निजात दिलाने के बहाने यज्ञ तो बाकायदा भाजपा के कार्यकर्ताओं ने किए ही हैं, सामान्य तौर पर भी तंत्र-मंत्र और गंडा-ताबीज के टोटके चल निकले हैं।

https://www.facebook.com/WorkersUnity18/videos/196037648367715/

अस्सी फीसद ब्राह्मणवादी मूल्यों वाली हिंदू आबादी के इन टोटकों से कंपटीशन लेने वाले इस्लामिक मौलाना भी उतरे हैं, कोई कबूतर की बीट के दाने की झिल्ली पानी में घोलकर पीने की सलाह दे रहा है तो कोई मुसलमानों पर जुल्म होने की वजह से इसे अल्लाह के अजाब का हवाला दे रहा है, जिसके निशाने पर चीन, ईरान और भारत सबसे ऊपर हैं।

निरीह लोग, जिनको मुसीबत से बचाने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं, वे ऐसे सहारे को ही अपनी ताकत महसूस करते हैं। यही उनके जीवन का ढर्रा बना रहे, यही उनकी आस्था हो, ब्राह्मणवाद और फासिस्ट पूंजीवादी व्यवस्था यही चाहती है। दोनों ये नहीं चाहते कि कोई उनसे तर्क करे या फिर हिसाब मांगे।

हर कोई उनसे सिर्फ रहम की विनती करे, इसके लिए वे तमाम जतन और पाखंड करते हैं।

(लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और ज़रूरी नहीं कि वर्कर्स यूनिटी इससे पूरी तरह सहमत हो।)

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