छठ्ठू के साथ होली भी गई, IFFCO ठेका मज़दूर की मौत का पसरा मातम

https://www.workersunity.com/news/holi-passed-with-iffco-contract-worker-chatthu/

By सुशील मानव

होली के दिन मेरे गांव में सन्नाटा है। गांव सामंतवात और ब्राह्मणवाद का कितना भी बड़ा किला क्यों न रहा हो लेकिन फिर भी बाज़ारवाद से अभी कुछ हद तक अछूता है।

23 मार्च को इफको कारखाने में हुए हादसे में छठ्ठू की जान चली गई थी। मेरा गांव अभी उसी मातमपुर्शी में शामिल है। लोग बाग खाना बना खाकर अपने अपने घरों में पड़े हैं।

कोई गांव के बाहर का यार दोस्त या जान पहचान का आ जा रहा है तो रस्म अदायगी कर दे रहे हैं। बकिया न तो कोई रंग खरीदा न गुलाल।

तीन हजार वाली आबादी वाले यूपी के फूलपुर इफ़को प्लांट के पास स्थित पाली गांव में होली पर कोई भी डीजे या गाजा बाजा नहीं बजा। ये गांव इफको प्लांट की चहारदीवारी से बिल्कुल लगा हुआ है।
छः भाईयों में सबसे छोटे यानि छठवें नंबर पर होने के चलते उनको छठ्ठू नाम से बुलाया जाता था। जबकि उनके बड़े भाई का नाम पंचू है। छठ्ठू का स्कूल का नाम यानि आधिकारिक नाम प्रदीप था। छठ्ठू मेरे हमउम्र थे, सहपाठी भी।
Iffco worker death story 2

गुलाल लगाकर विदा किया गया

होली के ठीक पांच दिन पहले गांव से छठ्ठू की लाश उठी थी। उस रोज पूरा गांव की आंखें नम और मन ग़मगीन थी। गांव के बेटे को गांव के लोगो ने रंग गुलाल लगाकर विदा किया था। पिता को अंतिम विदा देते मरहूम छठ्ठू के सोलह वर्षीय बेटे शुभम का विलाप रह रहकर मन में दर्द उठा रहा है।
उस रोज शुभम पिता की लाश को कंधा देते वक़्त फफक फफककर रो रहा था। वो कह रहा था कि – “पापा तुम्हारे जाने के बाद अब सब कुछ मैं अकेले कैसे करुंगा”।
जाहिर है कच्ची उम्र में पिता का साया सिर से उठने पर वो दुनियादारी की मुश्किलातों का सामना करने की ही बात कह रहा था।
हाईस्कूल की पढ़ाई कर रहे शुभम के सामने अब किताब कॉपी स्कूली  परीक्षा का नहीं बल्कि घर के चूल्हे का सवाल खड़ा है। छठ्ठू की बीबी अब तलक गृहिणी का दायित्व निभाती आई हैं और छठ्ठू रोटी, बच्चों की महंगी शिक्षा, महंगाई में बुनियादी ज़रूरतों की प्रतिपूर्ति का उद्देश्य लिये शहर दर शहर कंपनी दर कंपनी भटकता रहा है।
लेकिन अब छठ्ठू के जाने के बाद ये काम 16 साल के शुभम और उसकी मां के जिम्मे आ पड़ा है। छठ्ठू की बेवा गुमसुम है। आंखों में सूजन और नमी है। अभी वो किसी से कुछ बोल बात नहीं कर रही।
बता दें कि वर्षें पहले छठ्ठू के सभी छः भाई अलग विलग हो गये हैं। सबका अपना परिवार है, अपनी ज़रूरतें। अपना संघर्ष।
iffco workers death son cries

पांच लाख रुपये मुआवजा, संविदा पर नौकरी

इफको संविदा मजदूरों को धेला नहीं देती। हां जनदबाव बनने पर ठेकेदार की सिक्युरिटी मनी काटकर पीड़ित परिवार को दे देती है। लेकिन छठ्ठू के मामले में केस में एक पेच और है।
दरअसल ठेकेदार जिसके अधीन छठ्ठू काम करता था वो न सिर्फ़ छठ्ठू का पड़ोसी है बल्कि चाचा का लड़का ही है। जाहिर है ऐसे में पीड़ित परिवार ठेकेदार पर भी बहुत दबाव नहीं बना सकते। लेकिन इफको कारखाने के अंदर हुए हादसे के लिए इफको मैनेजमेंट जिम्मेदार है न कि ठेकेदार।
फिलहाल इफको मैनेजमेंट ने पीड़िता बीबी को संविदा पर नौकरी देने का आश्वासन दिया है। संविदा में 2 महीने काम और महीने बैठकी होती है। तिस पर महीने में 20-22 हाजिरी से ज़्यादा नहीं मिलता। ओवरटाइम की सख़्त मनाही है।
23 मार्च 2021 की दोपहर इफको में ब्वायलर फटने से 3 मजदूरों की मौत हो गई थी जबकि दो दर्जन से अधिक मजदूर गंभीर रूप से घायल हुए थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.