आगजनी से रेल को 300 करोड़ का नुकसान, लेकिन खरबों की संपत्ति कौड़ियों के भाव पूंजीपतियों को देने पर कितना नुकसान?

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हाल ही में सेना की अग्निपथ योजना के खिलाफ में आंदोलनकारियों द्वारा जलायी गई ट्रेनों और बोगियों से आंकड़ों के मुताबिक कुल नुकसान अधिकतम 300 करोड़ रुपए का हुआ है।

जबकि उस तुलना में अब तक लाखों करोड़ों के मूल्य की ट्रेनें, प्लेटफॉर्म, स्टेशन और रेल रूट कौड़ियों के भाव में पूंजीपतियों के हवाले कर दी जा रही हैं, उस नुकसान का ब्योरा कौन देगा?

ये सवाल है डॉ कमल उसरी का, जो कि इंडियन रेलवे इम्पलाइज फेडरेशन (IREF) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।

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वे कहते हैं कि जब प्रदर्शनकारियों ने रेल कोचों पर आग लगाई तब जांबाज रेल कर्मचारियों ने अपनी जान पर खेल कर उसे बचाया।

रेल मंत्री ने भी आक्रोशित प्रदर्शनकारियों से यही कहा कि रेल जनता की और देश की संपत्ति है, इसलिए उसमें आग ना लगाई जाए।

और फिर एक ही सांस में वह उसी रेल को पूंजीपतियों को बेचने की नई युक्ति लगाते हैं।

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देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का हक सिर्फ सरकार को

उनका कहना है कि राष्ट्र की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का हक सिर्फ सरकार के पास है।

मोदी सरकार ने नवंबर 2021 में रेल के निजीकरण के लिए तरह तरह के हथकंडे इस्तेमाल किये, जिसमें से एक भारत गौरव योजना थी।

इस योजना के तहत दो साल के लिए ट्रेन का संचालन प्राइवेट हाथों में दिया जाएगा।

हालांकि इन ट्रेनों का मेन्टेनेंस सरकार के ही हिस्से में होगा, प्राइवेट खिलाड़ियों को सिर्फ फीस भरनी होगी।

इस योजना में अनगिनत ट्रेनें शामिल हैं, जिसे कोई भी कान्ट्रैक्टर टेन्डर डाल के ले सकेगा।

मुनाफे वाले रूट जा रहे प्राइवेट कब्जे में

यह ट्रेनें खासकर के सबसे मलाईदार रूटों पर चलाई जाएंगी, जहां भारी मुनाफा कमाए जाने का रास्ता है।

शुरुआत में जब मोदी सरकार ने राष्ट्रीय मौद्रीकरण पाइपलाइन योजना के तहत पूरी ट्रेन को ही बेचने का प्रयास किया, तब बहुत काम ऑपरेटरों ने रुचि दिखाई।

जिसके बाद सरकार ने इसे लीज पर देने का फैसला किया।

रेल निजीकरण के बड़े प्लान का ही यह भारत गौरव एक छोटा सा भाग है जिसमें गौरव की आड़ में रेल की संपत्ति कौड़ियों के भाव लीज पर दी जा रही है।

कोयम्बटूर से शिर्डी तक 14 जून को चलने वाली ट्रेन भारत गौरव योजना के अंतर्गत सिर्फ पहली ही ट्रेन है।

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प्राइवेट होगी सिर्फ बुकिंग, देखरेख, सफाई सरकार के ही जिम्मे

इस योजना के तहत जिन ट्रेनों को लीज पर दिया गया है, उनकी टिकट या रिज़र्वेशन की देख रेख का जिम्मा प्राइवेट मालिकों की ही होगी।

लेकिन ट्रेन जिस स्टेशन में भी रुकेगी- वहां कम दामों में सफाई और मेंटेनेंस किया जाएगा जिसका जिम्मा सरकार के पाले ही है।

चूंकि यह ट्रेन दोनों धार्मिक स्थलों के बीच चलेगी, इसलिए सुरक्षा के नाम पर दो सिक्युरिटी गार्ड रखे जाएंगे।

कोयम्बटूर नॉर्थ रेलवे स्टेशन, जहां से ट्रेन रवाना हुई, वह स्वघोषित धर्मगुरु जग्गी वसुदेव के आश्रम के पास है।

जबकि गंतव्य शिर्डी साईंनगर था जो कि साईं बाबा के धाम के रूप में प्रचलित है।

IREF का कहना है कि ये स्पष्ट रूप से रेल का निजीकरण है जहां प्राइवेट ऑपरेटर अपने हिसाब से दाम तय कर रहा है।

सरकारी मान्यता प्राप्त फेडरेशन भी अड़ंगा

इस प्राइवेटाइजेशन के कदम का स्थानीय दक्षिण रेलवे एमप्लॉइज यूनियन (DREU) ने प्रतीकात्मक विरोध किया था।

देशव्यापी आंदोलन के लिए IREF की रणनीति यह है कि जिन जिन स्टेशनों पर उनकी ताकत है, वहां पर विरोध प्रदर्शन किया जाए।

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(प्रतीकात्मक तस्वीर)

वो मानते हैं कि उनकी ताकत सरकार द्वारा समर्थन और मान्यता प्राप्त फेडरेशनों जितनी नहीं है और यह भी कि ज्यादातर उनकी लड़ाई इन्हीं फेडरेशनों से होती है।

वे कहते हैं हैं कि अगर कोई कर्मचारी सरकारी नीतियों का विरोध करता है तो उसका ट्रांसफर कर दिया जाता है।

परिवार सहित बार बार ट्रांसफर होना कर्मचारियों के लिए कठिन होता है, जिसका नतीजा सरकार को कर्मचारियों के मौन के रूप में मिलता है।

26 जून को संभावित है देश भर में विरोध

संभावित है कि IREF की तरफ से 26 जून को देश भर में सरकार के निजीकरण के नीति का सिम्बॉलिक विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।

इस प्लान पर अभी IREF काम कर रही है।

राष्ट्रीय मौद्रिकारण पाइपलाइन के तहत चाहे सामानों की बुकिंग हो या रेल रूट हो, सभी को लीज पर दिए जाने या प्राइवेटाइजेशन के प्लान का ही ये एक छोटा हिस्सा है।

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