कोरोना लॉकडाउन के दौरान कितने प्रवासी मज़दूरों ने शहर छोड़ा?

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देशभर में कोरोना वायरस की चौथी लहर बड़ी तेजी से बढ़ रही है। फिर से प्रवासी मज़दूरों को डर लग रहा है की कहीं फिर से लॉकडाउन न लग जाये।

मोदी सरकार द्वारा लगाए गए पहले लॉकडाउन में बड़े पैमाने पर प्रवासी मज़दूर बड़ी संख्या में अपने घरों को लौट गए थे।

हाल ही में लेबर फोर्स सर्वेक्षण ने अपनी डेटा रिपोर्ट जारी “Migration in India 2020-21” शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में जुलाई 2020 से जुलाई 2021 एक साल की अवधि का सर्वेक्षण दिया गया है।

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रिपोर्ट के अनुसार भारत के सभी राज्यों ने से महामारी के दौरान लगे लॉक डाउन के बाद 51.6% ग्रामीण प्रवासी शहरी क्षेत्रों से पलायन कर गए थे।

सर्वे में कुल 1,13,998 प्रवासियों मज़दूरों का सर्वेक्षण कर के रिपोर्ट तैयार किया गया है।

यह आंकड़ा उस अभूतपूर्व बेरोजगारी संकट की पुष्टि करता है जिसने पहले लॉकडाउन के बाद के महीनों में भारतीय लेबर एकोसिस्टम को प्रभावित किया था।

लॉकडाउन के तुरंत बाद बेरोजगारी पर कोई भी आधिकारिक आंकड़ा नही था। जिसके कारण बेरोजगारी संकट की असली तस्वीर और गंभीरता को समझ पाना बहुत मुश्किल था।

अनुपस्थिति ने बेरोजगारी संकट की असली तस्वीर और गंभीरता को धुंधला कर दिया। हालांकि बाद में CMIE ने अपने रिपोर्ट में सभी आंकड़ों साफ किया है।

12 करोड़ मजदूरों को छोड़ना पड़ा था काम

CMIE के आंकड़ों के अनुसार, सन 2020 में केवल अप्रैल के महीने में कुल 12.2 करोड़ मज़दूरों को अपना रोज़गार छोड़ना पड़ा था इसमें ग्रामीण और शहरी जगह से रोज़गार शामिल है।

वित्त वर्ष 2011 की पहली तिमाही में बेरोज़गारी का आंकड़ा दर्ज किया गया था जो जीडीपी डेटा से मेल खाता है। जो यह दिखाता है कि ज्यादातर शहरी क्षेत्रों से संचालित माध्यमिक और टर्षियरी औद्योगिक काम पर सब से ज्यादा प्रभाव पड़ा जब कि कृषि प्रिस्का कोई प्रभाव नही पड़ा।

जहां ज्यादातर पुरुष शहरी क्षेत्रों में नौकरी की तलाश में अपने गृहनगर छोड़ देते हैं। वहीं लॉकडाउन के बाद पलायन करने वाले शहरी प्रवासियों की कुल संख्या में से केवल 11% महिलाएं हैं, जो भारतीय समाज में एक बड़े बदलाव को दर्शाता है।

पहले लॉकडाउन में बेरोजगारी का संकट पर अधिक प्रकाश डालते हुए, वेब पोर्टल Ideas For India पर प्रकाशित अरूप मित्रा और जितेंद्र सिंह द्वारा लिखित एक आर्थिक सर्वे कार्य किया गया है। इस सर्वे में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग वाले मज़दूरों की बेरोज़गारी का आंकड़ा दिया गया है।

70 लाख लोगों ने नौकरी की तलाश करना बंद कर दिया

मित्रा और सिंह के सर्वे का अनुमान है कि लॉकडाउन से ठीक पहले की तिमाही में लगभग 18.2 करोड़ लोग या तो नौकरी की तलाश में थे या उनके पास नौकरी थी और लगभग 70 लाख लोग लॉकडाउन अवधि के दौरान श्रम बल से हट गए।

यह नौकरी का नुकसान महिलाओं के लिए और अधिक स्पष्ट था, जो कि लॉकडाउन लागू होने से पहले भी लेबर फोर्स में लगभग 4 करोड़ थे, कुल 14 करोड़ कार्यरत पुरुषों का एक छोटा सा अंश।

लॉकडाउन के बाद से देश में 40 लाख महिला मज़दूरों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा, जब की रोज़गार के नुकसान पुरुषों की संख्या 30 लाख थी।

रिसर्च के अनुसार “अनुमान है कि अप्रैल-जून 2020 के दौरान, तिमाही की तुलना में शहरी क्षेत्र में नियोजित व्यक्तियों की संख्या में लगभग 2.6 करोड़ की गिरावट आई है। मुख्य रूप से लगभग 70 लाख महिलाएं कार्यबल से हट गया है। वहीं बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या में लगभग 2 करोड़ की वृद्धि हुई।

तालाबंदी का समापन मजदूरों के पहले कभी न देखे गए रिवर्स माइग्रेशन और कारखानों से खेतों की ओर रोजगार के रूप में हुआ, एक प्रवृत्ति जो स्पष्ट रूप से कृषि में रोजगार की हिस्सेदारी में वित्त वर्ष 19 में 42.5% से बढ़कर वित्त वर्ष 2020 में 45.6% हो गई।

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