कृषि कानूनों पर मोदी सरकार आग से खेल रही है: पी साईनाथ

modi on farmers issue

केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 50 से अधिक दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों ने नए कृषि कानूनों की प्रतियां जलाई।

किसानों की मांग है कि तीनों कृषि कानूनों को निरस्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कोरोना वायरस महामारी के दौरान इन कानूनों को पारित करने का केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाए हैं।

किसान डटे हुए हैं और केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

इन कानूनों के जरिये सरकार एपीएमसी मंडियां और न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म करना चाह रही हैं, जिसके चलते उन्हें ट्रेडर्स और बड़े काॅरपोरेट के रहम पर जीना पड़ेगा। ये कानून किसानों को कोई कानूनी सुरक्षा नहीं प्रदान करते हैं।

किसान संगठन अपनी इस मांग को लेकर प्रतिबध हैं कि सरकार को हर हालत में इन कानूनों को वापस लेना होगा। इस संबंध में सरकार और किसानों के बीच बातचीत के कई दौर चले, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है।

नेशन फाॅर फार्मर किसानों के साथ देश बिहार महिला समाज और तत्पर फाउंडेशन द्वारा बिहार की राजधानी पटना में एक संवाद का आयोजन किया गया।

कृषि बाजार कानूनों को लेकर देश के किसानों के अप्रत्याशित व्यापकजुटान के सन्दर्भ में पटना में जाने माने कृषि विशेषज्ञ एवं मैग्सेसे पुरस्कार विजेता पी.साईनाथ के साथ चर्चा का आयोजन हुआ।

ज्ञात हो कि साईनाथ पीपुल्स अरकाईव ऑफ रूरल इंडिया ;पीएआरआईद्ध के संस्थापक हैं और द हिंदू अखबार के ग्रामीण मामलों के संपादक रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान के तहत कृषि राज्य का विषय है।

केंद्र द्वारा इन कानूनों को बनाना असंवैधानिक है। इससे मौजूदा कृषि संकट और गहरा जाएगा। इन कानूनों को रद्द किया जाना चाहिए। सरकार आग से खेल रही है।

साईनाथ कहना है कि कृषि उत्पाद बाजार समिति, कृषि के लिए लगभग वही है जो सरकारी स्कूल शिक्षा के क्षेत्र के लिए है या फिर जो सरकारी अस्पताल स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए है। कृषि कानूनों में नीतिगत सुधार निश्चित तौर पर किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए, न कि निजी कंपनियों के हित में।

इन कानूनों के जरिये सरकार एपीएमसी मंडिया और न्यूनतम समर्थन मूल्य ;एमएसपीद्ध खत्म करना चाह रही है, जिसके चलते उन्हें ट्रेडर्स और बड़े काॅरपोरेट के रहम पर जीना पड़ेगा।

ये कानून किसानों को कोई कानूनी सुरक्षा नहीं प्रदान करते हैं। किसान संगठन अपनी इस मांग को लेकर प्रतिब( हैं कि सरकार को हर हालत में इन कानूनों को वापस लेना होगा। इस संबंध में सरकार और किसानों के बीच बातचीत के कई दौर चले, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है।

नेशन फाॅर फार्मर्स के डाॅ. गोपाल कृष्ण ने बताया कि कैसे बिहार के संदर्भ में एपीएमसी एक्ट को गैर वाजिब वजह से निरस्त किया गया और इस एक्ट को फिर से बहाल करने के महत्व पर जोर दिया।

निवेदिता झा ने महिला किसानों के हकों पर जोर दिया और महिला किसान दिवस के मौके पर 18 जनवरी को पटना में होने वाली महिला किसान रैली के बारे में भी बताया।

डाॅ. अनामिका प्रियदर्शिनी ने महिला किसान मामलों पर बोलते हुए कहा कि नए कानूनों में महिला किसानों के हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए।

मालूम हो कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधाद्ध विधेयक), 2020, किसान सशक्तिकरण एवं संरक्षण, मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु संशोधन विधेयक, 2020 को बीते 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं।

सरकार समझ रही थी कि यदि वो इस समय ये कानून लाती है तो मजदूर और किसान संगठित नहीं हो पाएंगे और विरोध भी नहीं कर पाएंगे, लेकिन उनका यह आकलन गलत साबित हुआ है।

किसानों को इस बात का भय है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा। किसानों का व्यापक जुटान कोई मामूली जुटान नहीं है।

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