ब्रेकिंगः ट्रेड यूनियनों के ख़िलाफ़ दिल्ली पुलिस ने किया एफ़आईआर, 9 अगस्त को जंतर मंतर पर किया था प्रदर्शन

workers protest at jantar mantar on 9th august

दिल्ली के जंतर मंतर पर 9 अगस्त को प्रदर्शन करने पर दिल्ली पुलिस ने केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और आशा वर्कर्स के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है।

पुलिस के अनुसार, जंतर मंतर पर इकट्ठा होना अनलॉक गाइडलाइंस का उल्लंघन है। इस तरह की भीड़ से कोविड 19 का संक्रमण और बढ़ सकता है।

डीसीपी नई दिल्ली के ट्विटर हैंडल से जारी एक बयान में कहा गया है कि जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शनों पर कड़ी पाबंदी है।

हालांकि दिल्ली पुलिस ने ये साफ़ नहीं किया है कि ये एफ़आईआर जंतर मंतर पर प्रदर्शन प्रतिबंध के उल्लंघन को लेकर भी है।

ट्रेड यूनियन नेताओं के अनुसार, ये बहुत ऐतिहासिक प्रदर्शन रहा क्योंकि पिछले चार महीने से मोदी सरकार की तानाशी नीतियों के ख़िलाफ़ किसी को भी प्रदर्शन नहीं करने दिया जा रहा था।

हालांकि बीते मार्च में जब लॉकडाउन शुरू हुआ है और मई में इसमें ढील दी गई तो ट्रेड यूनियनों ने पहले 22 मई को देशव्यापी प्रदर्शन का आयोजन किया। इसके अलावा जून और जुलाई में भी प्रदर्शनों में तेज़ी आई और 9 अगस्त की कॉल में किसान संगठन, स्कीम वर्कर्स और ट्रेड यूनियनों से अलग मज़दूर संगठनों ने भी एक साथ प्रदर्शन का आह्वान किया था।

9 अगस्त एक ऐतिहासिक तारीख़ है, जब 1942 में अंग्रेज़ी हुक़ूमत के ख़िलाफ़ अंग्रेज़ों भारत छोड़ो का नारा दिया गया। ट्रेड यूनियन नेताओं ने इसी तारीख़ पर भारत बचाओ का नारा देते हुए देशव्यापी प्रदर्शन और जेल भरो आंदोलन का आह्वान किया था।

उल्लेखनीय है कि श्रम क़ानूनों को ख़त्म किए जाने और सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में ताबड़तोड़ बेचे जाने के ख़िलाफ़ केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, मासा और किसान संगठनों ने 9 अगस्त को देशव्यापी प्रदर्शन का आह्वान किया था।

अगस्त के महीने में मेहनतकश वर्ग की ओर से लगातार विरोध प्रदर्शन और हड़ताल का आह्वान किया जा रहा है। पूरे महीने लगभग हर क्षेत्र के मज़दूर, कर्मचारी या प्रदर्शन कर रहे हैं, हड़ताल कर रहे हैं या आगे प्रदर्शन की नोटिस मोदी सरकार को दे रहे हैं।

एटक की महासचिव अमरजीत कौर ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि मोदी सरकार की अनाप शनाप लॉकडाउन प्रतिबंधों के बावजूद देश के कई राज्यों में मज़दूर संगठनों और किसान संगठनों ने सड़क पर निकल कर विरोध किया।

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सीटू के महासचिव तपन सेन ने बताया कि देश के कई अन्य राज्यों में 10 अगस्त को भी मज़दूरों किसानों ने प्रदर्शन किया क्योंकि उनके यहां 9 अगस्त को लॉकडाउन था।

मज़दूर आंदोलनों पर पैनी नज़र रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता संतोष कुमार का कहना है कि चार महीने से पूरे देश में एक किस्म की जड़ता को मज़दूर यूनियनों ने तोड़ा है, जो सरकार को मंज़ूर नहीं है।

विश्लेषकों का मानना है कि एक तरफ़ मोदी सरकार श्रम क़ानूनों को रद्दी की टोकरी में फेंक देना चाहती है, सारे सार्वजनिक उपक्रमों को निजी कंपनियों के हवाले कर रही है, कोरोना से बचाव में पूरी तरह विफल साबित हुई है तो दूसरी तरफ़ इन सारी बातों से ध्यान हटाने के लिए वो मंदिर निर्माण के लिए पूरे समारोह के साथ भूमि पूजन आयोजित कर रही है।

मोदी सरकार नहीं चाहती है कि उसके जन विरोधी कारनामों पर कोई सवाल उठे, या विरोध की कोई आवाज़ उठे।

जहां तक दिल्ली पुलिस की भूमिका का मसला है, दिल्ली दंगों में वो दंगाईयों को पकड़ने की बजाय एक एक कर बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्रों पर चार्जशीट दर चार्जशीट दायर कर रही है, लेकिन मज़दूर वर्ग पर मुसीबतों से उसने सिर्फ़ आँखें नहीं फेर लीं बल्कि लॉकडाउ के दौरान जमकर लाठियां बरसाईं।

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