कोरोना से तबाह मज़दूरों को अब नहीं तो कब दिया जाएगा राहत पैकेज? 70 संगठनों की केंद्र से अपील

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कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण मुसीबत झेल रहे मज़दूर वर्ग को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए राष्ट्रव्यापी राहत पैकेज दिया जाना चाहिए।

वर्किंग पीपुल्स चार्टर (डब्ल्यूपीसी) के नेतृत्व में 70 से अधिक ट्रेड यूनियनों और सामजिक संगठनों के एक समूह ने केंद्र सरकार से राहत पैकेज, डायरेक्ट बेनेफ़िट ट्रांसफ़र, मनरेगा का विस्तार समेत कई मांगें रखी हैं।

इस संबंध में एक बयान जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि मज़दूरों और ग़रीब वर्ग के लोगों के खाते में छह महीने तक 3,000 रुपये प्रति माह जमा किए जाएं।

इन संगठनों का अनुमान है सीधे आर्थिक मदद पहुंचाने में 5.5 लाख करोड़ रुपये खर्च होगा।

पूरा बयान पढ़ें-

कोरना महामारी की दो लहरों और कुछ कुछ अंतराल पर लगे लॉकडाउन का मज़दूरों पर गहरा असर पड़ा है, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता। यहां तक कि दूसरी कोरोना लहर से पहले ही दसियों लाख परिवार ग़रीबी रेखा के नीचे चले गए। तमाम स्रोतों ने इसकी पुष्टि की है।

और इस तरह ग़रीबी कम करने की कठिन लड़ाई न केवल बाधित हुई बल्कि इसमें हम पीछे गए हैं।

संगठित क्षेत्र में काम करने वाली आधी से अधिक आबादी ने रोज़गार और आजीविका खो दिया है, जबकि इनमें से दो तिहाई के सामने भुखमरी जैसे हालात पैदा हो गए।

ग़रीब परिवारों का हाल और बुरा हुआ है और इसके कारण ग़ैरबरारी का दंश उन्हें सबसे अधिक झेलना पड़ा। कोरोना की दूसरी लहर और लोकल स्तर पर लगाए गए लॉकडाउन ने पिछले साल से चली आ रही मुसीबतों में और इजाफ़ा किया है। इसका असर केवल शहरी ग़रीब और प्रवासी मज़दूरों पर ही नहीं पड़ा बल्कि ग्रामीण ग़रीब परिवारों और ग्रामीण मध्यवर्ग को भी संकट में डाल दिया है।

महिलाएं, बच्चे और ख़ासतौर पर सामाजिक रूप से पिछड़े समूहों पर लंबे दौर तक के लिए पिछड़ने का ख़तरा पैदा हो गया है।

अगर कुछ साहसिक कदम नहीं उठाए गए, तो इसका असर लंबे समय तक रह सकता है।

महामारी के पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब थी और कई तिहामी के आंकड़े आर्थिक सुस्ती का गवाह रहे जिसके कारण बेरोज़गारी और मज़दूरी में ठहराव देखा गया।

महामारी के कारण आमदनी पर जो असर पड़ा उसने कुल मांग को और प्रभावित किया। वैक्सिनेशन और स्वास्थ्य सेवाओं पर ज़रूरी ध्यान देने के अलावा छोटे स्तर पर राहत की सख़्त ज़रूरत है और इसके लिए राष्ट्रीय राहत और रिकवरी पैकेज तत्काल घोषित होने चाहिए।

ताकि, ज़िंदगियों को बचाया जा सके, आमदनी और आजीविका को हुए नुकसान की आंशिक भरपाई की जा सके और अर्थव्यवस्था तेज़ी से रिकवरी बढ़ाने के लिए मांग को प्रोत्साहित किया जा सके।

बिना इस तरह के पैकेज के, सिर्फ अर्थव्यवस्था को खोल देने से संतुलित रिकवरी नहीं हो सकेगी। पूरी दुनिया में विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाएं इस तरह की सरकार नीत राहत कार्यक्रमों को लागू कर रही हैं ताकि परिवनारों की

आमदनी और खर्च को प्रोत्साहित किया जाए। साथ ही वे इस बात को मान रही हैं कि अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर राहत और रिकवरी के काम ज़रूररी है। भारत को भी ऐसा ही करना चाहिए।

हम मानते हैं कि इस राहत पैकेज में न्यूनतम तीन और बहुत ज़रूरी उपाय किए जाने चाहिए, राशन, आमदनी और रोज़गार।

दूसरी कोराना लहर का सार्वभौमिक असर इस बात की ओर संकेत करता है कि हमें राष्ट्रीय फूड सिक्यूरिटी एक्ट के दायरे में आने वाले परिवारों के अलावा एक व्यापक आबादी को ध्यान रखना होगा।

इसलिए ऐसे पैकज को 33 करोड़ परिवारों तक ले जाना चाहिए जिसमें देश के 80 प्रतिशत ग्रामीण परिवार और 70 प्रतिशत शहरी परिवार आते हैं।

साल 2020 में घोषित राहत पैकेज को और विस्तारित करते हुए लोन और क्रेडिट की सुविधाएं भी मुहैया करानी चाहिए।

राशन

पीडीएस के तहत राशन कार्ड धारकों के लिए अतिरिक्त राशन देने की समय सीमा को नवंबर 2021 तक बढ़ाया जाना स्वागतयोग्य कदम है। लेकिन हमें 10 करोड़ टन राशन और जारी करना चाहिए ताकि नवंबर 2021 तक उन गैर राशन कार्ड धारकों को भी राशन मिल सके, जिनके पास कार्ड तो नहीं है लेकिन उनकी आजीविका पर संकट है।

ऐसे परिवारों को भी इस दायरे में लाने की ज़रूरत है जिसमें बच्चे हैं। इसके अलावा स्कूलों और आंगनबाड़ी में राशन और भोजन (जिसमें अंडे शामिल हैं) की सुचारू व्यवस्था हो सके।

आमदनी

संकटग्रस्त परिवारों को छह महीने तक हर महीने 3000 रुपये प्रति माह सीधे खाते में जाम किए जाएं।

रोज़गार

मनरेगा के तहत काम की गारंटी सीमा को 150 दिनों तक किया जाना चाहिए। साथ ही शहरी रोज़गार के लिए सार्वजनिक निर्माण कार्यक्रमों को बढ़ाया जाए।

राहत पैकेज को लोगों तक पहुंचाने के लिए पहले से कई सारे तंत्र मौजूद हैं। डायरेक्ट बेनेफ़िट ट्रांसफ़र के बहुत सारे तंत्र मौजूद हैं मसलन नरेगा, पीएम-किसान, पीएमजेडीवाई, एनएसएपी। इसके अलावा राशन की दुकानों, पोस्ट ऑफ़िस, पंचायत और स्थानीय संस्थाओं के मार्फ़त वितरण की व्यवस्था की जा सकती है। हम मानते हैं कि प्रस्तावित नकद आर्थिक मदद से भारत सरकार पर 5.5 लाख करोड़ या 2021-22 में अनुमानित जीडीपी का 2.45 प्रतिशत का भार पड़ेगा।

केंद्र सरकार को इस पैकेज को घोषित करना चाहिए और राज्य सरकारों से भी इसमें न्यूनतम मदद लेनी चाहिए, जो वितरण के मामले में अपने फंड का इस्तेमाल करते हैं।

ये ज़रूरी है कि भारत सरकार इस मुसीबत से भारत के मज़दूरों और नागरिकों को उबारने की ज़रूरत को संजीदा तरीके से महसूस करे।

हम अपील करते हैं कि इस पर तुरंत कार्यवाही की जाए, ये संवैधानिक ज़िम्मेदारी भी है और दुनिया के स्तर पर अपनाया जाने वाला एक मानक तरीक़ा भी। अगर अभी नहीं किया जाएगा तो कब?

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