चाय बागान मज़दूरों को देना होगा न्यूनतम मज़दूरी – कोलकाता हाईकोर्ट, कोर्ट ने मालिकों को लगाई फटकार

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कई चाय बागान मालिकों/पट्टेदारों की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें राज्य के श्रम आयुक्त द्वारा 27 अप्रैल 2023 को जारी एक आदेश में चाय बागान मज़दूरों के लिए बढ़ी हुई न्यूनतम मज़दूरी के आदेश पर रोक लगाने की मांग की रहे थे.
मालूम हो की श्रम आयुक्त द्वारा 1 जून 2023 से चाय बागान श्रमिकों के लिए अंतरिम न्यूनतम मजदूरी बढ़ाकर 250 रुपये प्रति दिन कर दी गई थी .

बढ़ी हुई मज़दूरी को लटकाये रखना चाहते है मालिक 

न्यायमूर्ति राजा बसु चौधरी की एकल पीठ ने राज्य को छह महीने की अवधि के भीतर ऐसे श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी समझौते को अंतिम रूप देने का निर्देश देते हुए कहा की ” श्रम आयुक्त द्वारा जारी न्यूनतम मज़दूरी बढ़ने सम्बन्धी समझौते पर जब याचिकाकर्ता ने सहमति दे दी थी फिर वो बार-बार कोर्ट क्यों पहुँच रहें है. मज़दूरों को इस समझौते के बाद भी अपने बढे हुए मज़दूरी के लिए इंतज़ार करवाना कही से भी सही नहीं है. समझौते पर सहमति के बाद भी चाय बागान मालिकों का कोर्ट पहुँचाना बताता है की वो इन दैनिक मज़दूरों के बढे हुए मेहनताने को लटका कर रखना चाहते है”.

कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा की ” श्रम आयुक्त द्वारा कराया गया समझौता वैधानिक नियमों के अनुरूप था. श्रम विभाग समझौते के प्रारूप को जल्द से जल्द लागू करना चाहता है ,ताकि मज़दूरों को उनका वाजिब हक़ मिले. ऐसे में इस पर रोक सम्बन्धी याचिकाकर्ताओं का अनुरोध विधिक सम्वत नहीं है. याचिकाकर्ताओं को राज्य सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती. याचिकाकर्ताओं ने जब वृद्धि को स्वीकार किया था,तब उसके किर्यान्वयन के समय कोर्ट पहुंचना स्वीकार नहीं किया जायेगा.

क्या है चाय बागान मालिकों के तर्क

दूसरी तरफ याचिकाकर्ता चाय बागान मालिकों के भी अपने अलग तर्क थे ,उनका कहना था की “अब तक श्रमिकों की मजदूरी औद्योगिक विवाद अधिनियम के संदर्भ में श्रमिकों और बागानों के मालिकों के बीच आपसी समझौते से तय होती आ रही थी. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 (एमडब्ल्यू अधिनियम) बताता है की सबसे पहले श्रमिक और मालिक आपस में बैठ कर न्यूनतम मज़दूरी सम्बन्धी मामलें पर वार्ता करेंगे और एक सहमति तक पहुंचेंगे, लेकिन राज्य सरकार ने उससे पहले ही एक न्यूनतम मज़दूरी सलाहकार समिति का गठन कर दिया”.

पुराने दर पर ही मज़दूरों से काम लेना चाहते है मालिक

उन्होंने आगे अपने तर्क रखते हुए कहा की ” पहले भी मज़दूरी बढ़ाने सम्बन्धी विवाद होते रहे है, जिसे इसी अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप सुलझाए जाते रहे है. अंतिम समझौता 2015 में हुआ था तब निर्णय लिया गया था की न्यूनतम मज़दूरी अपने पुराने दर पर ही लागू रहेगी जब तक की सलाहकार समिति अधिनियम के आधार पर न्यूनताम मज़दूरी तय नहीं कर देती. अंतिम फैसला न आने के बावजूद राज्य सरकार लगातार मज़दूरी बढ़ाने सम्बन्धी ज्ञापन जारी करती रही”.
उन्होंने आगे अपनी बात रखते हुए कहा की ” मज़दूर हड़ताल पर न चले जाये इसलिए हमने दवाब के कारण बड़ी हुई मज़दूरी को स्वीकार करने की हामी भरी”.
श्रम आयुक्त पर आरोप लगाते हुए बागान मालिकों ने कहा की ” वो एक सुलह अधिकारी है ,लेकिन उन्होंने अपने दायरे से बाहर जाकर मज़दूरी बढ़ाने का आदेश जारी किया है”.

वही मज़दूरों का पक्ष रखने वाले उत्तरदाताओं ने कहा की” मालिक जानबूझ कर किसी समझौते तक नहीं पहुंचना चाहते, उनका इरादा है की वो मज़दूरों से पुराने मज़दूरी पर ही काम लेते रहे. और जहाँ तक श्रम आयुक्त के आदेश का सवाल है ,तो संविधान के अनुच्छेद 43 के तहत राज्य सरकार को यह अधिकार है की वह चाय उद्योग के विकास के लिए बागान मालिकों और मज़दूरों के हितों का सामान रूप से ध्यान रखे. श्रम आयुक्त ने अपने इसी अधिकार का उपयोग किया”.

दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने लागू अधिसूचना को बरकरार रखा, और रिट याचिका को खारिज करते हुए कहा की ” राज्य सरकार ने अपने संविधानिक अधिकार का उपयोग करते हुए मज़दूरी बढ़ाने का आदेश दिया है. और बागान मालिकों का यह तर्क की मज़दूरों के हड़ताल के डर के कारण उन्होंने बढ़ी हुई मज़दूरी को स्वीकार किया बेबुनियाद प्रतीत होता है, इसलिए हम इस याचिका को ख़ारिज करते हैं.”

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