राजस्थान गिग वर्कर एक्ट श्रमिकों के साथ एक छलावा है- डिलिवरी वॉयस

राजस्थान सरकार ने राज्य के विधानसभा में हाल ही में गिग वर्कर्स पर एक बिल पेश किया था, जिसे 24 जुलाई को राजस्थान विधानसभा में पारित किया गया.
इस बिल को  “राजस्थान मंच-आधारित गिग वर्कर्स (पंजीकरण और कल्याण) विधेयक 2023” का नाम दिया गया.
विधेयक के उदेश्य को लेकर बताया गया है की इसे पंजीकरण के माध्यम से ऐप्प बेस्ड प्लेटफार्म पर कार्यरत गिग श्रमिकों को कल्याण प्रदान किया जायेगा.

सरकार द्वारा इस प्रकार के कल्याण कार्यक्रम को ‘सामाजिक सुरक्षा’ कहा जाता है .यह पहली बार है कि देश के किसी भी राज्य में गिग श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा विधेयक पारित किया गया है.
यह विधेयक कई कारणों से बेहद महत्वपूर्ण है. पहला तो ये की हो सकता चुनावी सरगर्मियों के बीच कुछ और राज्य अगले लोकसभा चुनावों से पहले ऐसे विधेयकों को अपने यहाँ पारित करें.पश्चिम बंगाल सरकार ने पहले ही बता दिया है की वहां भी इस प्रकार के विधेयक आने वाले हैं.

दूसरी अहम बात ये है की पिछले कुछ वर्षों से गिग वर्कर्स लगातार ऐसे विधेयक के लिए संघर्ष कर रहे थे. विधेयक के पारित होने के बाद इसे समझने के लिए लगातार विभिन्न सामाजिक गतिविधियों का आयोजन भी किया गया. साथ ही पारित विधेयक के हर पक्ष को समझने की लगातार कोशिश की जा रही है की श्रमिकों के कल्याण को लेकर यह विधेयक कितना सजग  है.

प्रारंभिक तौर पर हमे जो बातें समझ आ रही हैं वो ये है की विधेयक पूर्ण रूप से बीओसीडब्ल्यूए (यानी, घरेलू और अन्य निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए) अधिनियम 1996 के ढांचे का अनुकरण करता है और सामाजिक सुरक्षा को कम करता है.
राज्य सरकार इन श्रमिकों के लिए एक कल्याण बोर्ड बनाएगी, जो हर साल कंपनियों (एग्रीगेटर्स/ प्राथमिक नियोक्ताओं) से 1-2% कर (उपकर) एकत्र करेगा. इस धनराशि का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में श्रमिकों के कल्याण के लिए किया जाएगा.

क्या गिग वर्कर्स मालिक-मज़दूर सम्बन्ध के अंतर्गत नहीं आते

अब समस्या ये है कि अधिकांश निर्माण श्रमिक स्व-नियोजित श्रमिक हैं. ये मज़दूर-मालिक संबंध के अंतर्गत नहीं आते हैं. गिग वर्कर्स के साथ ऐसा नहीं है कंपनियों को इन वर्कर्स के श्रम से लाभ होता है.

गिग वर्कर्स के लिए कंपनियां एक खास तरह का ड्रेस बनवाती हैं, उनके लोकेशन पर नज़र रखती हैं मतलब कम्पनियाँ पूरी तरह से उनके काम करने की हर स्थिति को नियंत्रित रखती हैं. कम्पनियाँ चाहे तो वर्कर्स को बिना किसी चर्चा/बातचीत या अल्टीमेटम के हटा सकती हैं. कंपनियां अपने कर्मचारियों के साथ जो अनुबंध करती हैं, वे पूरी तरह से कंपनी के अपने अधिकारों के बारे में होते हैं.इस समझौते में वर्कर्स के अधिकारों का कोई स्थान नहीं है.

ऐप्प के माध्यम से ये कंपनियां श्रमिकों के काम के हर पल और समग्र श्रम की प्रक्रिया पर पूरी तरह से नियंत्रण बनाए रखती हैं. केवल ऐप ही नहीं कंपनी इन श्रमिकों से संबंधित कार्यों का प्रबंधन करने के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रबंधकों को भी काम पर रखती है.इस तरह ये साबित होता है की कंपनी जो दावा करती हैं की वर्कर्स के साथ उसका सम्बन्ध मालिक-मज़दूर का नहीं है सरासर झूठ है.

राजस्थान सरकार द्वारा पारित बिल ने श्रमिकों के मामले में नियोक्ताओं द्वारा सीधे दाखिल करने के सवाल को दरकिनार कर दिया. श्रमिकों के कल्याण के नाम पर मालिकों को छूट देकर श्रमिकों के साथ मौजूदा विधेयक एक छलावा करती है,ये विधेयक कंपनी मालिक के निजी स्वार्थ की वकालत करता है और साथ ही राज्य सरकार की भूमिका पर भी सवालिया निशान खड़ा करता है.

क्या है गिग वर्कर की परिभाषा

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राजस्थान विधेयक में गिग वर्कर को परिभाषित करते हुए जो बात कही गई है वो केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित सामाजिक सुरक्षा कोड में ‘गिग वर्कर’ के परिभाषा से ली गई है.जिसमे कहा गया है की गिग वर्करों का सम्बन्ध मालिक- मज़दूर की परिभाषा से बाहर है. यह दावा निराधार है क्योंकि स्विगी, ओला, उबर, अमेजन, फ्लिपकार्ट, जोमैटो जैसी बड़ी कंपनियां श्रम कानूनों को दरकिनार कर शोषण के पक्ष में देश के कानूनों को बदलना चाहती हैं.

गिग वर्कर्स का अपनी नौकरियों में’ स्वतंत्रता/लचीलेपन ‘ का विज्ञापन वास्तव में मालिकों की बढ़ती गैरजिम्मेदाराना छवि को बताती है. श्रमिकों को वास्तविक सुरक्षा न देकर कम्पनियाँ सिर्फ मुनाफाखोरी की फ़िराक़ में रहती हैं.

श्रमिकों के सर पर अनिश्चितता की तलवार हर वक़्त लटकती रहती है.काम करने का सही माहौल और न्यूनतम मजदूरी की गारंटी तय करना राज्य सरकार जी जिम्मेवारी है जबकि मौजूदा बिल श्रमिकों की सामूहिक सौदेबाज़ी का मार्ग प्रशस्त करती है.
मज़दूरों की जगह मालिकों के हितों का संरक्षण करती है.

गिग वर्कर्स के साथ छलावा

कई संघर्ष-आंदोलनों के कारण संगठित क्षेत्र के श्रमिकों को ईएसआई, पीएफ सहित कई कानूनी अधिकार प्राप्त हुए हैं. इस बिल में गिग श्रमिकों के लिए इन अधिकारों की बात ही नहीं की गई है. जबकि तथ्य यही है की इस सेक्टर में भी कंपनी के साथ श्रमिक का सम्बन्ध बिलकुल किसी संगठित क्षेत्र के समान ही है.

इसके अलावा लगातार वेतन में कटौती, आईडी-ब्लॉक के नाम पर अवैध छंटनी यहां बहुत ही आम बात है. यह विधेयक इन सब सवालों पर एकदम मौन है जो की सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करता है.

गिग श्रमिकों के हालिया आंदोलनों ने स्पष्ट रूप से कंपनी के शोषण के खिलाफ उनकी लड़ाई को सबके सामने रखा है. ऐसे समय में जब कंपनियां मज़दूरों की जायज मांगों से बचना चाहती हों, सरकार द्वारा पेश बिल मज़दूरों के साथ एक धोखेबाज़ी है. मज़दूरों के सामाजिक सुरक्षा के नाम पर सरकार कंपनियों को छूट दे रही है.

सरकार का द्वारा पेश ये बिल श्रमिकों के आँखों में धूल झोकने वाला है. गिग श्रमिकों के श्रम को मान्यता दी जानी चाहिए, सामाजिक सुरक्षा के नाम पर लगातार गैर-जिम्मेदार मालिक (कंपनी) द्वारा गिग वर्कर्स का शोषण किया जा रहा है.सरकार द्वारा गिग वर्कर्स को उचित कानूनी सुरक्षा दी जानी चाहिए थी. बिल के प्रावधान बता रहे हैं की सरकार द्वारा मालिकों के साथ मज़दूरों की सौदेबाज़ी की गई है.

— डिलिवरी वॉयस द्वारा राजस्थान गिग वर्कर एक्ट पर प्रारंभिक प्रतिक्रिया

(डिलीवरी कर्मियों का डिजिटल मुखपत्र)

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