जर्मनी: किसानों का ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन, राजधानी बर्लिन को किया ट्रैक्टरों से जाम

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जर्मनी में किसानों को डीजल पर दी जा रही कर छूट को सरकार द्वारा समाप्त कर दिए जाने के बाद किसानों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है.

विरोध प्रदर्शनों की इसी कड़ी में सोमवार को किसानों ने बर्लिन की सड़कों को अपने ट्रैक्टरों से जाम कर दिया.

एक सप्ताह से जारी किसानों के इस विरोध प्रदर्शनों को जर्मनी के सबसे बड़े किसान आंदोलन के रूप में देखा जा रहा है.

देश के राजमार्ग पूरी तरह से  ठप्प

ऐतिहासिक ब्रांडेनबर्ग गेट पर प्रदर्शन से पहले ट्रैक्टरों की लम्बी कतारें राजधानी में घुस गईं. पिछले सप्ताह से जारी इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान किसानों ने पूरे जर्मनी में राजमार्ग के प्रवेश द्वारों को अवरुद्ध कर दिया है जिससे यातायात पूरी तरह से ठप हो चूका है.

विरोध कर रहे किसानों का कहना है कि उनका इरादा चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ की सरकार पर नियोजित कटौती को पूरी तरह से छोड़ने के लिए दबाव डालना है.

किसानों ने बताया कि ” वे सरकार द्वारा पहले ही दी गई रियायतों से ही संतुष्ट नहीं हैं और अब ये नई कटौती कर दी गई. 4 जनवरी को सरकार की तरफ से बताया गया की कृषि वाहनों के लिए कर छूट बरकरार रखी जाएगी लेकिन डीजल पर कर छूट में तीन वर्षों में धीरे-धीरे कटौती की जाएगी.”

जर्मन किसान संघ के अध्यक्ष जोआचिम रुकविद ने कहा ” सरकार द्वारा प्रस्तावित कर वृद्धि को वापस लेना होगा, तभी किसान अपना आंदोलन वापस लेंगे. इस आंदोलन से हम इन राजनेताओं को सन्देश देना चाहते हैं कि, अब बहुत हो चूका किसान अब झुकने वाले नहीं है.”

जर्मन वित्त मंत्री क्रिश्चियन लिंडनर जब सरकार की इन संशोधित योजना का बचाव कर रहे थे तब किसानों ने नारे लगते हुए उनका विरोध किया.

जिसके बाद वित्त मंत्री ने मिडिया से बात करते हुए बताया कि ” हम मानते हैं कि छूट कटौती के प्रावधान थोड़े कड़े हैं. लेकिन देश की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए ये बेहद जरुरी भी हैं. हमारी कोशिश रहेगी कि किसानों पर ज्यादा बोझ न डाला जाये साथ ही हम खेती में उत्पादकता में सुधार करने के तरीकों पर भी जोर देंगे ताकि किसानों को लाभ मिल सके.”

ख़बरों कि मुताबिक टैक्स छूट को कम करने की योजना 2024 के बजट में एक बड़े अंतर को भरने की आवश्यकता के परिणामस्वरूप की जा रही है.

सिर्फ किसानों का नही आम जनता का प्रतिरोध है

कई विश्लेषकों का कहना है कि ‘ किसानों का ये विरोध प्रदर्शन सिर्फ कर छूट में कटौती को वापस लेने के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए ,बल्कि चांसलर स्कोल्ज़ के नेतृत्व वाली सरकार के प्रति आम जनता के बीच उनके द्वारा लगातार लिए जा रहे जन विरोधी निर्णयों के खिलाफ उपजे गहरे असंतोष का नतीजा समझा जाना चाहिए. इस आंदोलन को आम जनता का भी समर्थन प्राप्त है.”

बीते शनिवार को एक वीडियो संदेश में स्कोल्ज़ ने कहा ” हम किसानों के विरोधी नहीं है.कृषि सब्सिडी में कटौती भविष्य की चिंताओं को देखते हुए की जा रही है. हमारा ये कदम देश की वित्तीय स्थित को सुधारने के लिए उठाया गया है. इसे आने वाले संकट और संघर्ष से बचने के उपाय के तौर पर देखा जाना चाहिए .”

वही किसानों के इस आंदोलन को आम जनता का भी समर्थन मिलता हुआ दिख रहा है. कई सर्वेक्षणों में ये बात उभर कर सामने आई की किसानों के विरोध प्रदर्शनों के प्रति सहानुभूति रखने वाले लोग बहुमत में हैं.

किसानों को कई अलग-अलग सेक्टरों की संगठनों का भी समर्थन मिलता दिख रहा है. सोमवार के प्रदर्शन में जर्मनी का सड़क परिवहन संघ भी शामिल हुआ.

किसानों की लड़ाई सिर्फ कर छूट की नहीं बल्कि मौजूदा सरकार की नीतियों को लेकर है

युवा किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संघ की प्रमुख थेरेसा श्मिट ने रैली में कहा “हम आज यहां केवल कृषि डीजल कटौती के कारण नहीं खड़े हैं. बल्कि हमारा विरोध लगातार कई वर्षों से जारी किसान विरोधी नीतियों की खिलाफ है. अमीरों को छूट दी जारी जबकि हमारी जरूरतों को कम किया जा रहा, हमारे लिए नियम सख्त किये जा रहे और तो और हमारे अधिकारों पर भी प्रतिबन्ध लगाए जा रहे हैं.”

फ्रैंकोनिया के बवेरियन क्षेत्र के एक किसान अल्फ्रेड विंकलर ने कहा, “हमारी जरूरतें बढ़ती जा रही हैं. हमारा उत्पादन गिर गया है. हमारा बाजार मानकों से नीचे उत्पादित होने वाले खाद्य पदार्थों से भरा हुआ है,ऐसे में ये सरकार ऐसा निर्णय कैसे ले सकती है.”

किसानों के प्रतिनिधियों ने सोमवार को रैली के बाद तीनों सत्ताधारी पार्टियों के संसदीय समूहों के नेताओं से मुलाकात की.
जहाँ नेताओं ने किसानों के सामने आने वाली व्यापक चुनौतियों पर कार्रवाई को लेकर तो बात की. लेकिन उन्होंने डीजल टैक्स छूट पर असहमति का समाधान नहीं किया.

(SFGATE  की ख़बर से साभार )

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