घरेलु कामगारों के सवैतनिक अधिकार के लिए अभियान: दिल्ली

गुरुवार को दिल्ली के वसंत कुंज के जय हिन्द बस्ती में विभिन्न इलाकों के घरों में काम करने वाले महिला घरेलु कामगारों ने अपनी एक सभा आयोजन किया.
इस सभा का आयोजन इन महिला कामगारों के बीच जागरूकता का काम करने संगठन संग्रामी घरेलु कामगार यूनियन (S .G .U .) ने किया था . महिला कामगारों ने अपनी इस सभा में घरेलु कामगारों के लिए सवेतनिक छुट्टी,वेतन में वृद्धि,काम के बुरे हालातों सहित कई विषयों पर चर्चा की.

महिला कामगारों को 1980 में पुणे में हुए ऐतिहासिक घरेलु कामगार हड़ताल के बारे में भी बताया गया,जिसमें पुणे के घरों में काम करने वाली महिला कामगारों ने भाग लिया था. 1980 के इस हड़ताल के दौरान महिला कामगारों ने एक शहर-व्यापी संगठन बनाया,हड़ताल के परिणामस्वरुप शहर में इस संगठन की महत्वपूर्ण जीत हुई और व्यक्ति केंद्रित कार्यसंबन्धों को संविदात्मक कार्यसंबन्धों में बदल दिया गया.

चर्चा के दौरान दिल्ली के वसंतकुंज इलाके के जयहिंद कैम्प में रहने वाली शरज़ीना जो घरेलु कामगार के तौर पर काम करती हैं ने बताया की ” पुरे महीने हम हाड़तोड़ मेहनत करते है.इसके बावजूद बढ़ती महंगाई के बीच हमसे सालों पुराने वेतन पर ही काम लिया जा रहा है.इसके साथ ही हमें महीने में चार दिन की छुट्टी भी नसीब नहीं होती.”
एक और महिला कामगार आशा ने बताया की ” कई बार तो हमें बीमार होने के बाद भी काम पर जाना पड़ता है.पैसे बढ़ाने की मांग करते ही हमें काम से निकल देने की धमकी दी जाती है. न छुट्टी, न वेतन हम बहुत ही मुश्किल हालात में काम कर रहे हैं.”
सभा के दौरान महिला कामगारों ने एक स्वर में ये सहमति बनी की वो सब जिस भी सोसाइटी में काम करती है उसके नाम अपनी मांगो को लेकर एक आवेदन लिखेंगी और यदि उनकी मांगो को अस्वीकार किया जाता है तो वो भी हड़ताल का रास्ता अपनाएंगी.

कामगारों के बीच काम करने वाले संगठन से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया की “अंतरराष्ट्रीय सर्वोच्च मानवाधिकार घोषणा(1948) का अनुच्छेद 24 कहता है-” प्रत्येक व्यक्ति को विश्राम और अवकाश का अधिकार है.इसके अंतर्गत काम के घंटो की उचित सीमा और समय-समय पर मज़दूरी सहित छुटियाँ शामिल है.हमारा देश भी इसका हस्ताक्षरकर्ता है.भारतीय कानून के साप्ताहिक अवकाश दिन अधिनियम(1942) में भी हफ्ते में एक से डेढ़ दिन छुट्टी का प्रावधान है”.

कामगारों को सम्बोधित करते हुए संगठन के लोगों ने कहा की “मेहनतकशों के आंदोलन से ही दुनिया में सबको सवेतन छुट्टी का कानूनी अधिकार मिला है. यूरोप और अमरीका के मज़दूरों की लड़ाई और भारत में मिल-मज़दूरों की लड़ाई से ही पहली बार छुट्टी का कानून बना था ,जिसका लाभ आज फैक्टरी-ऑफिस में काम करने वालों का एक बड़ा हिस्सा उठाता है. हमारी एकता और संगठित लड़ाई ही इसे घरेलू कामगारों के लिए लागू कर सकती है”.

हालाँकि अब देखने वाली बात होगी की इन महिला कामगारों के आवेदन का हाउसिंग सोसाइटी और RWA पर क्या असर पड़ता है और आगे वो क्या रास्ता इख्तियार करती हैं.

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