ताउते तूफ़ानः ONGC में काम करने वाले 70 कर्मियों की मौत, धर्मेंद्र प्रधान और संबित पात्रा के इस्तीफ़े की मांग तेज़

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ओएनजीसी के तेल खनन प्रोजेक्ट में काम करने वाले 70 कर्मचारियों की मौत और दर्जन भर से अधिक के लापता कर्मचारियों की तलाश के बीच मोदी सरकार में पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान  और ओएनजीसी के डायरेक्टर बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा पर इस्तीफ़ा देने का दबाव बढ़ गया है।

मुंबई पुलिस ने के अनुसार, रविवार तक अरब सागर में डूबे बजरा पी305 पर काम करने वाले कर्मचारियों के 70 शव मिल चुके हैं। आरोप है कि हफ़्ते भर पहले से जारी चेतावनी को अनदेखी करते हुए तूफ़ान ताउते के आने तक कर्मचारियों से काम कराया जाता रहा।
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शिवसेना ने बजरे के डूबने से कई कर्मचारियों की मौत के लिए ओएनजीसी को ज़िम्मेदार ठहराया और पूछा कि क्या पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान त्रासदी की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देंगे?

वहीं, आर्थिक मामलों के जानकार मुकेश असीम लिखते हैं, “मोदी सरकार के ‘कुशल’ मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के मंत्रालय के अंतर्गत और संबित पात्रा जिस के डाइरेक्टर हैं, उस ओएनजीसी ने ऐसे तूफान में अपने ठेका श्रमिकों को समुद्र में डूबने के लिए बेसहारा छोड़ दिया जिसके आने की सूचना बड़े जोर से कई दिनों से दी जा रही थी।”

वह लिखते हैं, ‘तूफ़ान के पहले ही उन्हें न सुरक्षित स्थान पर भेजा गया न किसी अफसर ने परवाह की कि एक बजरे पर मौजूद मज़दूरों का भयंकर हवा और लहरों में क्या होगा। 70 की लाशें मिल चुकी हैं या अभी तक भी गायब हैं, कुछ इतने घंटे भयावह समुद्र में रहने के बाद लाइफ़ जैकेट की वजह से मौत के इतने पास पहुंच बचा लिये गये हैं। दुर्घटना नहीं यह कर्मचारियों का सामूहिक हत्याकांड है।’

महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत ने कहा कि यह मानव निर्मित दुर्घटना घटी है और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को इसकी ज़िम्मेदारी लेते हुए तुरंत इस्तीफ़ा देना चाहिए।

शिवसेना ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिख कर धर्मेंद्र प्रधान और ओएनजीसी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर के इस्तीफ़े की मांग करते हुए पूरी घटना की जांच हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज से कराए जाने की मांग की है।

एनसीपी के मुख्य प्रवक्ता नवाब मलिक ने कहा है कि ओएनजीसी ने जानबूझ कर 700 कर्मचारियों की जान को ख़तरे में डाला। ओएनजीसी के ख़िलाफ़ आपराधिक मानव हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए।

घटनाक्रम

मीडिया रिपोर्टों में आई ख़बर के मुताबिक पुलिस ने कहा कि स्पेशल टीमों और उपकरणों की मदद से पी305 बजरा और टग बोट बरप्रदा में मौजूद अन्य मज़दूरों की तलाश की जा रही है।

बजरा पी 305 पर 261 कर्मचारी थे, जिनमें 186 को बचा लिया गया था। बजरा पानी पर तैरता एक ऐसा ढांचा होता है जहां कर्मचारी रहते हैं और इसे एक पोत से खींच कर ही कहीं ले जाया जाता है।

इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, अधिकारियों ने कहा है कि महाराष्ट्र के रायगढ़ तट पर आठ शव मिले हैं जबकि गुजरात के वालसाड तट पर छह शव मिले हैं। अगर उनकी पहचान हो जाती है और वो पी305 के कर्मचारियों के ही पाए जाते हैं तो लापता कर्मचारियों की संख्या और कम हो जाएगी, जिनकी तलाश की जा रही है। शनिवार को बजरा समुद्र की तलहटी में पहले ही मिल चुका है।

मुंबई के समुद्री तट से लगभग 65 किलोमीटर दूर पर तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) के लिए काम कर रहे एफ़कांस कंपनी के कर्मचारियों के रहने के लिए तैनात बजरा पी305 चक्रवाती तूफान ताउते की चपेट में आ गया था।

शापूर पालनजी ग्रुप की कंपनीं एफकोंस असल में ओएनजीसी के लिए ठेके पर काम करा रही थी। हफ़्ते भार मिले शव इतनी बुरी हालत में हैं कि उनकी पहचान करना मुश्किल है। पुलिस ने शवों से मिलान के लिए उनके रिश्तेदारों का डीएन सैंपल लेना शुरू कर दिया है।

बचाव और तलाशी अभियान में लगी भारतीय नौसेना के अनुसार, बजरे पी 305 और टग बोट वरप्रदा में तलाशी और बचाव अभियान को आगे बढ़ाने में युद्धपोत आईएनएस मकर और आईएनएस तारसा  की स्पेशल डाइविंग टीमों को लगाया गया है।

मुंबई पुलिस ने बजरा पी-305 के इंजीनियर मुस्तफ़िज़ुर रहमान शेख़ की शिकायत पर बजरे के कप्तान राकेश बल्लव और अन्य के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की।

शेख़ ने आरोप लगाया है कि मौसम विभाग की चेतावनी के बाद भी उसने स्टाफ की सुरक्षा के उपाय नहीं किए, जिस वजह से बजरा तूफान का सामना नहीं कर सका और कई मज़दूरों को जान गंवानी पड़ी। चक्रवात ताउते ने उत्तर भारत के कई इलाकों में मौसम पर गहरा असर डाला है।

शेख़ ने बताया कि हफ़्ते भर पहले ही चेतावनी मिल गई थी और तूफ़ान आने के 24 घंटे पहले आस पास की सारी नावें जा चुकी थीं फिर भी कप्तान ने मज़दूरों की सलाह को नज़रअंदाज़ किया। कप्तान राकेश का कहना था कि हवाओं की रफ़्तार 40-50 किमी प्रति घंटा होगी लेकिन जब तूफ़ान टकराया तो उसकी रफ़्तार 100 किमी प्रति घंटे से भी अधिक थी।

इस मामले में अब एफ़कोंस के साथ ही ओएनजीसी को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। ओएनजीसी ने मारे गए मजूदरों के परिवारों को 2-2 लाख की मुआवजे का एलान किया तो एफ़कोंस ने कहा कि वह हादसे में जान गंवाने वाले हर मज़दूर के परिवार को 35 से 70 लाख रुपये की आर्थिक मदद करेगी।

एफ़कोंस ने इसके साथ ही मजू़दरों के बच्चों की शिक्षा के लिए एक ट्रस्ट बनाने का एलान भी किया। इसके बावजूद सवाल यह है कि मौसम विभाग की चेतावनी को नज़रअंदाज कर तूफान के बीच भी मज़दूरों से काम क्यों कराया जाता रहा।
इस भयंकर लापरवाही पर बीजेपी के मंत्री और उसके मुखर प्रवक्ता संबित पात्रा पर गंभीर सवाल खड़े किए जा रहे हैं और सोशल मीडिया पर तल्ख सवाल किए जा रहे हैं।

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