कोरोना मरीज़ों का मज़ाक उड़ाएं या एलोपैथी डॉक्टरों को ‘हत्यारा’ कहें, रामदेव पर कौन करेगा कार्यवाही

बाबा रामदेव ने एलोपैथी को एक फ्रॉड साइंस बताया है। केंद्रीय मंत्रियों से अपनी अवैध दवा कोरोनिल की मार्केटिंग करवाने वाले बाबाजी ने एक और बड़ी बात कही है। उनका दावा है कि कोरोना संकट के दौरान लाखों लोगों की जान एलोपैथिक डॉक्टरों की वजह से गई है।

यह एक बहुत गंभीर आरोप है। इस देश में करोड़ों ऐसे लोग हैं जो बाबा रामदेव को सीरियसली लेते हैं। अगर लोगों ने उनकी बात मानकर इलाज बीच में छोड़ दिया तो जिम्मेदार कौन होगा? अगर देश में अफरा-तफरी मची तो जवाबदेही किसकी?

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने सरकार से यही सवाल पूछा है और सरकार से कहा कि वो अपनी स्थिति साफ करे। अगर सरकार सचमुच एलोपैथी को एक बोगस साइंस मानती है तो फिर तमाम अस्पताल बंद करे या फिर अफवाह फैलाने के जुर्म में महामारी एक्ट के तहत रामदेव के ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज हो।

आपको क्या लगता है, सरकार क्या करेगी? सरकार कुछ नहीं करेगी। मटर छीलू स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन खुद कोरोनिल का प्रचार करते नज़र आये हैं। कई राज्यों के राज्यपाल और दूसरे केंद्रीय मंत्री भी यही कर रहे हैं।

अगर जान पर बन आएगी कि तो यही लोग देश के सबसे बड़े एलोपैथिक अस्पतालों में वीईपी कोटे में अपना इलाज़ कराएंगे लेकिन प्रचार रामदेव की अवैध दवा करेंगे जिसे आईएमए या आईसीएमआर ने मान्यता नहीं दी है।

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रामदेव का खुद इलाज़ एलोपैथी के डॉक्टर कर चुके हैं। रामलीला मैदान का सलवार कांड ज्यादातर लोगों को याद होगा। उस कांड के फौरन बाद बाबा रामदेव ने अनशन का एलान किया।

अन्ना टाइप लोगों की वजह से उन दिनों अनशन का फैशन था। तो बाबाजी बैठ गये अनशन पर। मगर हालत ऐसी बिगड़ी कि फौरन अस्पताल में भर्ती कराकर ग्लूकोज चढ़ाना पड़ा। बाबाजी की सेहत को लेकर उस समय तक मेडिकल बुलेटिन जारी होता रहा जब तक वो डिस्चार्ज होकर घर नहीं पहुंच गये।

रामदेव की कंपनी के सीईओ और तमाम असाध्य रोगों के इलाज का दावा करने वाले आचार्य बालकृष्ण को हार्ट अटैक आया। आचार्य जी को फौरन एम्स में भर्ती कराया गया और अनुभवी एलोपैथिक डॉक्टरों की एक टीम की देख-रेख में उनकी जान बचाई गई।

सरकार कुछ अगर करती अगर सरकार सचमुच होती। इस समय देश में कोई सरकार नहीं है, सिर्फ एक राजनीतिक दल है, जो अपने राजनीतिक फायदे के लिए पूरे तंत्र की ऐसी-तैसी करने पर तुला है। इस बात को समझाने के लिए मेरे पास अनगिनत उदाहरण हैं। मैं सिर्फ दो-तीन गिना रहा हूं।

सी ग्रेड न्यूज़ चैनल चलाने वाले आरएसएस के एक आदमी ने टीवी कार्यक्रम बनाकर इल्जाम लगाया कि यूपीएसी की परीक्षाओं में बड़ी संख्या में मुसलमानों का सफल होना देश के लिए खतरा है। उस स्वयंभू पत्रकार ने अपने कार्यक्रम को `यूपीएसी जेहाद’ नाम दिया।

साफ है कि इस कार्यक्रम के ज़रिये यूपीएसी जैसी पुरानी संस्था की छवि भी मटियामेट करने की कोशिश की गई। कार्यक्रम का प्रसारण रुकवाने के लिए किसी ने किसी ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया।

सर्वोच्च अदालत में सरकार ने इस कार्यक्रम पर कोई एतराज नहीं किया। उल्टे सरकार के प्रतिनिधि ने यह कहा कि ख़तरा न्यूज़ चैनलों के कंटेट से नहीं बल्कि सोशल मीडिया से है। साफ है कि उस समय अदालत में केंद्र सरकार नहीं बल्कि पार्टी बोल रही थी।

पत्नी की हत्या के आरोपी वासुदेव जग्गी ने कृष्ण और यशोदा को लेकर एक बेहूदा किस्म की टिप्पणी की। टिप्पणी में माता-पुत्र के रिश्तों से अलग दैहिक आकर्षण की बात कही गई थी। सिर्फ हिंदू नहीं किसी भी समुदाय का अगर कोई सभ्य व्यक्ति यह टिप्पणी सुनेगा तो एतराज करेगा।

आपने बीजेपी, आरएसएस या किसी हिंदू संगठन की तरफ से कोई एतराज सुना? ये वही लोग हैं, जो मामूली सी बात पर भीड़ को उकसाकर किसी की लिचिंग करवा दें लेकिन वासुदेव जग्गी अपना आदमी है, इसलिए सब माफ है।

कपिल मिश्रा का मामला भी कुछ ऐसा ही है। आम आदमी पार्टी में रहते हुए कपिल मिश्रा ने दिल्ली विधानसभा में गुजरात के तात्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के एक लड़की के साथ कथित तौर पर अवैध रिश्तों पर लंबा भाषण दिया था। भाषण आज भी यू ट्यूब पर पड़ा है।

मिश्रा ने बकायदा सिलेसेलवार तरीके से बताया था कि किस तरह लड़की सीएम हाउस में बुलाई जाती थी और उसे ज़बरदस्ती कई दिनों तक रोके रखा जाता था।

कपिल मिश्रा ने जब पाला बदला और बीजेपी ने उसे दिल्ली विधानसभा का टिकट दे दिया तो मुझे लगा कि भक्तजन विरोध करेंगे। उनका खून खौलेगा कि मोदीजी के बारे में ऐसी बातें करने वाले को टिकट कैसे दिया जा सकता है, मगर कहीं से एक आवाज़ नहीं।

वजह यह थी कि मिश्रा को ज़हरीले भाषण देकर दंगा भड़काने में महारत हासिल है। इसलिए उसकी हर बात माफ़ है।

इस समय देश में केवल एक पार्टी का राज है, जो नफरत को रात-दिन सींच रही है। इनका हिंदू गौरव, राष्ट्रवाद सब फर्जी हैं। पार्टी पूरे तंत्र को दीमक की तरह चाट चुकी है। जो पार्टी का हित है, वही राष्ट्रहित है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और व्यंगकार हैं। उनके फ़ेसबुक पोस्ट से साभार प्रकाशित।)

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