कंपनी राज्य के बाहर मज़दूरों को ट्रांसफ़र नहीं कर सकती, कोर्ट ने दिया आदेश

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उत्तराखंड के पंतनगर सिडकुल औद्योगिक इलाके में स्थित इंटरार्क कंपनी के मज़दूरों को एक और क़ानूनी जीत मिली है। मज़दूरों के मनमाने ट्रांसफ़र को लेबर कोर्ट ने ग़ैरक़ानूनी करार दिया है।

कंपनी प्रबन्धन लेबर कोर्ट /ट्रिब्यूनल हल्द्वानी में एक बार फिर यूनियन से हार गया है।

यूनियन की अपील पर डिप्टी लेबर कमिश्नर हल्द्वानी द्वारा कम्पनी के स्टेंडिंग आर्डर में यूनियन द्वारा प्रस्तावित संशोधन को स्वीकार करने के पक्ष में बदलाव करने का निर्णय दिया था।

उस संशोधन यह भी शामिल था कि मजदूरों की पूर्व सहमति के बिना उत्तराखंड राज्य से बाहर उनका ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है।

यूनियन ने एक प्रेस बयान जारी कर कहा कि डीएलसी के स्टेंडिंग ऑर्डर में किये गये संशोधन के आदेश के ख़िलाफ़ कंपनी ने लेबर कोर्ट हल्द्वानी में अपील कर दी थी, तब से मामला लेबर कोर्ट में चल रहा था ।

यूनियन के प्रधान दलजीत ने कहा कि जुलाई 2020 को कंपनी प्रबन्धन ने कोरोना लॉकडाउन का फायदा उठा यूनियन तोड़ने की साजिश के तहत प्रबन्धन ने 195 मजदूरों का चेन्नई ट्रांसफर कर दिया था।

उन्होंने आरोप लगाया कि असली मंशा मजदूरों को ट्रांसफर के बहाने नौकरी से निकालकर यूनियन को कमजोर करना व तोड़ना था। डीएलसी के उक्त आदेश के अनुसार प्रबंधन मजदूरों का उत्तराखंड राज्य से बाहर चेन्नई या अन्य जगह पर ट्रांसफर नहीं कर सकता था ।

कंपनी के इस आदेश का यूनियन ने विरोध किया और कहा कि कोई भी मज़दूर चेन्नई नहीं जाएगा। साथ ही श्रम विभाग में यूनियन ने शिकायत की।

daljeet bajwa president Interarch

मैनेजमेंट को हर कदम पर मिली मात

नतीजन प्रबंधन ने एक जुलाई 2021 से सभी 195 मजदूरों का गेट बंद कर दिया था। यूनियन इसके विरुद्ध हाईकोर्ट गई। हाईकोर्ट ने ट्रांसफर पर स्टे लगा दिया और मामले को लेबर कोर्ट को रेफर कर दिया था।

28 जुलाई को प्रबंधन ने हार मार ली और सभी मजदूरों की सवैतनिक कार्य बहाली कर दी थी। अब प्रबन्धन ने पुनः हाईकोर्ट की शरण ली और डीएलसी द्वारा स्टेंडिंग ऑर्डर में किये गये उक्त बदलाव के ख़िलाफ़ लेबर कोर्ट में चल रही सुनवाई को जल्दी पूरा करने करने का आदेश देने की अपील की।

हाईकोर्ट ने 2 माह के भीतर सुनवाई पूरा करने का आदेश दिया। अब जाकर लेबर कोर्ट ने भी फैसला सुना दिया है कि यूनियन की अपील पर डीएलसी ने स्टेंडिंग ऑडर पर जो संशोधन किया था वो सही था।

लेबर कोर्ट ने प्रबंधन के ख़िलाफ़ यूनियन के पक्ष में फैसला दिया है। दलजीत का कहना है कि अभी भी 195 मजदूरों का मामला लेबर कोर्ट में चल रहा है जो कि अब औपचारिकता मात्र ही है क्योंकि अब साफ हो गया है कि कंपनी के पंतनगर व किच्छा प्लांट के किसी भी मजदूर के अनुमति के बिना उत्तराखंड राज्य से बाहर ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है।

अब 195 मजदूरों के साथ ही दोनों प्लांटों के सभी मजदूरों के ऊपर से ट्रांसफर का खतरा अब हट गया है।

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