लॉकडाउन के दौरान तेलंगाना के मजदूरों में उधारी और कर्ज़ में बेतहाशा वृद्धि हुई, सर्वे में आया सामने

survey covid 19

By सुरजीत दास, अथरी जनिसो और प्रकाश कुमार शुक्ला

विभिन्न व्यवसायिक पृष्ठभूमि से आने वाले कमज़ोर वर्गों के सर्वे में यह पाया गया कि कम से कम इस संकट की स्थिति के लिए स्वास्थ्य सेवाएं मुफ्त बनाने की बहुत अधिक मांग है।

इस  रिपोर्ट में  COVID-19 के दौरान लॉकडाउन के प्रभाव को समझने का प्रयास किया गया है और यह रिपोर्ट 57 रिस्पॉन्डेन्ट के टेलीफोनिक साक्षात्कार पर आधारित है।

इसमें 1 जून से 10 जून के बीच विभिन्न व्यवसायिक पृष्ठभूमि से 247 लोगों को शामिल किया गया है।

यद्यपि सैम्पल का आकार बहुत छोटा है और यह किसी भी तरह से पूरी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व  नहीं करता है, हालाँकि अधिक विश्वसनीय आंकड़े की अनुपस्थिति में यह टेलिफोनिक सर्वेक्षण हमें जमीनी स्तर की वास्तविकता के बारे में कुछ प्रारंभिक संकेत देता है।

रिस्पॉन्डेन्ट तेलंगाना के हैदराबाद, शापुर, वारंगल, मंचेरियल, महबूबनगर और रंगारेड्डी के रहने वाले थे।  57 रिस्पॉन्डेन्ट में से 23 प्रवासी मजदूर थे और वे मूल रूप से मणिपुर, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे विभिन्न राज्यों से थे।

किसानों, कृषि-श्रमिकों, दिहाड़ी मजदूर, निर्माण कार्यो में लगे मजदूर, ऑटोरिक्शा चालक, राजमिस्त्री, फल और सब्जी विक्रेता, रसोइया, घरेलू सहायक, दर्जी, बढ़ई, मोटर मैकेनिक, चाय दुकानदार, गृहणी, स्टोर कीपर, इंजीनियर, रोकड़िया, ड्राइवर, बुटीक और वस्त्रालय दुकानदार, कढ़ाई कारीगर, ग्रामीण विकास पेशेवर, बिक्री सलाहकार, अमेज़ॅन कैटलॉग विशेषज्ञ, त्वचा चिकित्सक, अतिथि संबंध संयोजक, प्रशिक्षक, शिक्षक, शैक्षिक सलाहकार, बिक्री प्रबंधक, सौंदर्य सलाहकार एवं डीजे ऑपरेटर आदि सहित ये रिस्पॉन्डेन्ट अलग-अलग व्यावसायिक पृष्ठभूमि से थे।

हमारे सैम्पल  में 28 महिला और 29 पुरुष रिस्पॉन्डेन्ट हैं, इनकी उम्र 18 से 70 वर्ष के बीच है। रिस्पॉन्डेन्ट की शिक्षा का स्तर अनपढ़ से लेकर एमए डिग्री तक है और इनमें 31 हिंदू, 21 ईसाई और 5 मुस्लिम हैं।

पूरे सैम्पल में 29 रिस्पॉन्डेन्ट अनुसूचित जाति और 9 अनुसूचित जनजाति पृष्ठभूमि के हैं। रिस्पॉन्डेन्ट का लगभग पाँचवा हिस्सा 1,000 रु या उससे कम  प्रति-व्यक्ति मासिक आय वर्ग के अंतर्गत आता है, एक पाँचवा हिस्सा 1,000 रु से अधिक लेकिन 2500 रु या उससे कम प्रति-व्यक्ति मासिक आय वर्ग के अंतर्गत आता है।

एक पाँचवा हिस्सा 2500 रु से अधिक लेकिन 4500 रु से कम  प्रति-व्यक्ति मासिक आय वर्ग के अंतर्गत आता है, एक पाँचवा हिस्सा 4500 रु से लेकर 12000 रु तक प्रति-व्यक्ति मासिक आय वर्ग  के अंतर्गत आता है।

बाकी का एक-पांचवा हिस्सा 12500 रु या उससे अधिक प्रति-व्यक्ति मासिक आय वर्ग के अंतर्गत आता है।

survey graph

कमाई जाने की आशंका प्रबल

सैम्पल में परिवार के सदस्यों की संख्या 1 से 12 तक है और परिवार के सदस्यों की औसत संख्या 4.3 है। 26 परिवार ऐसे हैं जिनमें कमाने वाला सदस्य एक है और 6 परिवार ऐसे हैं जिनमें कमाने वाले सदस्य 2 से अधिक हैं।

इस सर्वेक्षण के सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्षों में से एक यह है कि 57 में से 25 रिस्पॉन्डेन्ट (यानी आधे से भी कम) को उम्मीद है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद उनकी मासिक कमाई बनी रहेगी।

उनमें से अधिकांशतः शीर्ष और निचले आय वर्ग के हैं, 14 रिस्पॉन्डेन्ट को संदेह है कि उनकी औसत मासिक कमाई लगभग एक तिहाई कम हो जाएगी, 18 रिस्पॉन्डेन्ट (यानी 30% से अधिक) ने कहा कि ‘उन्हें पता नहीं है’।

अधिकतर मज़दूरों के मन में नौकरी  को लेकर अतिसंवेदनशीलता और आय के बारे में अनिश्चितता बनी हुई है। 50% से अधिक रिस्पॉन्डेन्ट का यह मानना है कि शहरी क्षेत्रों में भी आखिरी उपाय के रूप में रोजगार गॉरन्टी कार्यक्रम (जैसे मनरेगा) की आवश्यकता है।

 

न्यूनतम खर्च में गुज़ारा

दूसरा महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि सैम्पल जनसंख्या के समृद्ध वर्ग के लिए, लॉकडाउन के बाद परिवार के प्रति व्यक्ति मासिक व्यय (अप्रैल और मई के महीने में) से लॉकडाउन से पहले परिवार की प्रति व्यक्ति औसत मासिक आय का अनुपात काफी कम है (ग्राफ़ देखें)।

सैम्पल जनसंख्या के गरीब तबके के लोगों के लिए यह अनुपात निम्न दो कारणों से बहुत अधिक है। पहला, गरीब जनसंख्या वर्ग में औसत उपभोग की प्रवृत्ति अधिक होती है और समृद्ध वर्ग अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा बचत कर लेते  हैं।

लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गरीब तबका जीवन निर्वाह स्तर के व्यय के साथ अधिकांशतः आवश्यक वस्तुओं का उपभोग करता है, जिसे COVID-19 लॉकडाउन के कारण आय में आयी अचानक गिरावट के बाद भी और कम करना मुश्किल है।

परिणामस्वरूप, 29 रिस्पॉन्डेन्ट (उनमें से अधिकांश जनसंख्या के गरीब तबके से हैं) ने सूचित किया कि लॉकडाउन के दौरान उनकी ऋणग्रस्तता में वृद्धि हुई है।

स्रोत: 1-10 जून के दौरान टेलीफोनिक माध्यम से एकत्र किए गए सर्वेक्षण के आंकड़ों पर आधारित

केंद्र सरकार ने मार्च के महीने में प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत तीन ठोस चीजों-मुफ्त राशन, जन धन खाते में 500 रु डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर और मुफ्त गैस सिलेंडर की घोषणा की है।

सरकार तत्काल 10,000 रुपये दे हरेक को

10 रिस्पॉन्डेन्ट (लगभग 20% सैम्पल जनसंख्या) ने बताया है कि घोषणा के दो महीने बाद भी उन्हें कोई मुफ्त राशन नहीं मिला है।

लगभग आधे रिस्पॉन्डेन्ट  (57 में से 26) ने बताया है कि उनके पास या तो कोई जन धन खाता नहीं है या उन्हें इसमें कोई पैसा नहीं मिला है। 90% से अधिक लोगों ने सूचित किया है कि उन्हें लॉकडाउन के दो महीने बाद भी कोई मुफ्त गैस सिलेंडर नहीं मिला है।

कुल 23 अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों में से 13 श्रमिक लॉकडाउन के बाद अपने मूल राज्यों में वापस जाना चाहते हैं एवं 10 श्रमिक वापस नहीं जाना चाहते हैं।

12 रिस्पॉन्डेन्ट ने बताया कि उनके परिवार में ​​COVID-19 के अलावा अन्य बीमारियां थीं और उनमें से 11 ने सूचित किया कि लॉकडाउन के कारण उन रोगियों के इलाज में विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

जहां तक रिस्पॉन्डेन्ट के टिप्पणियाों  और सुझावों की बात हैं, क्या किया जाना चाहिए के संबंध में तो हमें निम्नलिखित प्रतिक्रियायें मिली है।

एक मत यह है कि सरकार को आगे आना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दिहाड़ी मजदूरों और जरुरतमंदो की उपेक्षा न हो।

सरकार को कम से कम गरीबों और जरूरतमंद लोगों की बुनियादी जरूरतें जैसे सब्जियाँ और अन्य वस्तुएं आदि पूरी करनी चाहिए।

COVID-19 के दौरान लॉकडाउन की वजह से हुई आय मे हानि के मुआवजे के रूप में 500 रु नहीं बल्कि कम से कम लगभग 7,000 रु से 10,000 रु प्रति माह नकद हस्तांतरण की मजबूत मांग है।

गरीबों को 1500 रु हस्तांतरण के लिए राज्य सरकार के प्रयास को सराहा गया है। सभी को राशन कार्ड के वगैर राशन मिलना चाहिए और अन्य आवश्यक सुविधाएं होनी चाहिए जिससे कि प्रवासी मजदूर अपने मूल निवास स्थानों पर वापस जाने के लिए बाध्य न हों।

सरकारी मदद न के बराबर मिली

लोगों की प्रतिक्रिया है कि सरकार ने वादा किया था कि जो लोग जहां है वहीं रहें, सबको आर्थिक सहायता दी जाएगी लेकिन बहुतों को कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली।

लोगों ने सुझाव दिया है कि सरकार को सार्वजनिक उद्योग शुरू करने चाहिए और काम करने का अवसर देना चाहिए।

सरकार को असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों जैसे ऑटो चालकों, छोटे व्यवसायों जैसे छोटे दुकानदारों आदि को आर्थिक सहायता देकर उनकी मदद करनी चाहिए। सरकार को सभी के लिए सुरक्षित और स्थिर आय के साथ-साथ रोजगार के कुछ अवसर सुनिश्चित करने चाहिए।

कम से कम इस तरह के संकट की स्थिति के दौरान स्वास्थ्य सेवाएं मुफ्त बनाने की मजबूत मांग है।

लोगों की राय है कि वर्तमान चुनौती से लड़ने के लिए बेहतर रणनीति तैयार करने और बेहतर योजना बनाने के लिए सरकारों के विभिन्न स्तरों के बीच अधिक समन्वय होना चाहिए।

उम्मीद है कि सबसे बड़े लोकतंत्र में लोगों की आवश्यकता के लिए प्रशासन अधिक संवेदनशील और उत्तरदायी होगा।

(सुरजीत दास सीईएसपी-जेएनयू में अर्थशास्त्र पढ़ाते हैं, अथरी जनिसो और प्रकाश कुमार शुक्ला बिट्स पिलानी हैदराबाद में पीएचडी शोधार्थी हैं, इंग्लिश से हिंदी में ट्रांसलेशन पूनम पाल ने किया है जो  सीईएसपी-जेएनयू में पीएचडी सोधार्थी हैं।)

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