निर्माण मज़दूरों का पंजीकरण न करने पर हाईकोर्ट ने कहा- कार्यवाही के लिए तैयार रहिए

arvind kejriwal

दिल्ली हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफ़ेयर बोर्ड को निर्माण मज़दूरों के पंजीकरण और सदस्यता नवीनीकरण करने का आदेश जारी करते हुए कार्यवाही की चेतावनी जारी की है।

इकोनामिक टाइम्स के अनुसार, जस्टिस विपिन सांगी और रजनीश भटनागर की पीठ ने कहा कि जबतक अदालत के इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट रद्द या स्टे नहीं दे देता, बोर्ड को इसे मानना होगा। अगली सुनवाई 21 अक्टूबर को होगी।

हाईकोर्ट ने पहले ही बोर्ड को इस बारे में आदेश जारी किए थे लेकिन पीआईएल दायर करने वाले वकील शायेल त्रेहान और शिवेन वर्मा ने कोर्ट को बताया कि बोर्ड इस आदेश पर कार्यवाही नहीं कर रहा बल्कि अलग अलग कारण बताकर इससे पल्ला झाड़ रहा है।

कोर्ट ने अगली सुनवाई में बोर्ड के सेक्रेटरी को मौजूद होने और त्रेहान की दलील का जवाब भी पेश करने का आदेश जारी किया है।

ये पीआईएल समाजिक कार्यकर्ता सुनील कुमार अलेडिया ने दायर कर वर्करों के पंजीकरण की अपील की थी। याचिका में कहा गया कि पंजीकरण से लॉकडाउन में परेशानी झेल चुके वर्करों को 5000 रुपये प्रतिमाह की मदद मिल सकती है।

याचिका में कहा गया है कि दिल्ली में केवल 10 लाख वर्कर ही पंजीकृत हैं और एक बड़ी संख्या में लोग उस मदद से महरूम हैं, जो उन्हीं के लिए बनाई गई है।

याचिकाकर्ता ने कहा है कि बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफ़ेयर सेस एक्ट के तहत लाखों मज़दूरों के नाम पर 2000 करोड़ रुपये इकट्ठा हुए लेकिन केवल 37,127 वर्करों को ही मदद मिल पाई, क्योंकि इतने ही वर्कर पंजीकृत हैं।

बोर्ड पर आरोप लगाया गया है कि साल 2015 से ही वर्करों का रजिस्ट्रेशन कम किया जा रहा है।

बोर्ड पर लग चुका है घोटाले का आरोप

जून 2020 में प्रवासी मजदूरों के 3200 करोड़ रुपये के फंड में हेराफेरी को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी।

इसमें आरोप लगाया गया था कि मजदूरों का फंड लॉकडाउन के दौरान दर्जी, नाई और टैक्सी ड्राइवरों में  बांट दिया गया। वकील योगेश पचौरी और आर बालाजी ने याचिका में कहा है कि दिल्ली सरकार के लेबर मिनिस्ट्री के दिल्ली बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड के अधीन ये तमाम गड़बड़ियां हुई हैं. याचिका में दावा किया गया है कि इन फर्जी श्रमिकों को अलग-अलग यूनियन के माध्यम से सर्टिफाई भी कराया गया. ये तमाम यूनियन पिछले चार-पांच साल के दौरान ही बनाई गई हैं।

आरोप है कि जिन लोगों को प्रवासी मज़दूरों के नाम पर फंड वितरित किया गया, उन सभी से इन यूनियन के लोगों ने 500 से 1000 रुपए तक की अवैध रूप से वसूली की।

इस मुश्किल वक्त में भी प्रवासी मजदूरों को उनका हक देने के बजाय उनका पैसा उन लोगों में बांट दिया गया जो प्रवासी मजदूर नहीं थे। ऐसे में इस पूरे मामले की जांच सीबीआई या फिर किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराए जाने की जरूरत है। इस मामले में दिल्ली सरकार से कोर्ट ने जवाब मांगा था।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.