बढ़ती महंगाई ने किया बेहाल, मनरेगा के तहत मज़दूरी में संशोधन की है सख्त जरुरत

manrega worker

बढ़ती महंगाई के बीच मनरेगा मज़दूरों के हालात खस्ताहाल हो गए है. मज़दूरी से पेट भरना भी मुश्किल हो गया है.

मनरेगा की मजदूरी दर में 8.71 प्रतिशत की सबसे तेज वृद्धि 2020-21 में की गई थी, जब महामारी के दौरान मज़दूर अपने गृहनगर की ओर पलायन कर रहे थे. 2022-23 में वृद्धि की गई लेकिन वो सिर्फ 1.55 प्रतिशत थी.

भारत सरकार की इस प्रमुख योजना के तहत अकुशल मैनुअल श्रमिकों के लिए औसत मजदूरी दर 2018-19 से ही काफी सुस्त गति से बढ़ रही है. 2018-19 में औसत मजदूरी दर ₹ 207 थी, जो 2023-24 में बढ़ कर ₹ 259 तक हो गई है . यह इस अवधि में केवल 4.5 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर है.

बढ़ती महंगाई के बीच बुनियादी जरुरतों को पूरा करने में ये मज़दूरी दर अपर्याप्त रही है. बीते 5 वर्षों में देखा जाये तो ग्रामीण मुद्रास्फीति को कवर करने में वर्तमान मज़दूरी दर पूरी तरह से अक्षम रही है.

केंद्र की इस रोजगार सृजन योजना का उद्देश्य अकुशल मैनुअल मजदूरों/प्रत्येक ग्रामीण घर को 100 दिन की गारंटी रोजगार प्रदान करना है. लेकिन 2009 में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा मजदूरी से न्यूनतम मजदूरी को हटा दिया, जिसकी वजह से मनरेगा के तहत मज़दूरी बढ़ने की दर धीमा हो गई है.

हालांकि केंद्र हर साल मनरेगा पर एक बड़ी राशि खर्च करती रही है. 2023-24 में छह सबसे महत्वपूर्ण ‘कोर योजनाओं’ के लिए संशोधित राशि (आरई) ₹ 1.08-लाख करोड़ आवंटित की गई, जिसमें 79 प्रतिशत फंड मनरेगा को आवंटित किया गया.

मजदूरी असमानता

आंकड़ों से पता चलता है कि 2023-24 में हरियाणा, केरल और कर्नाटक ने भारत में अकुशल श्रम के लिए उच्चतम मजदूरी प्रदान की जो क्रमशः ₹ 357, ₹ 333, और ₹ 316 हैं.

वही दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्य हैं जो योजना के तहत बहुत कम मजदूरी देते हैं.

2021-22 में प्रतापराव जाधव की अध्यक्षता में ग्रामीण विकास और पंचायती राज द्वारा स्थायी समिति का भी कहना है कि ” राज्यों के बीच मजदूरी दरों में उतार-चढ़ाव चिंतनीय और अनुचित है. इसलिए असमानता को समाप्त करने के लिए एक समान मजदूरी दर की सिफारिश की जाती है”.

हालांकि मज़दूर किसान शक्ति संघ से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता और संस्थापक सदस्य निखिल डे कहते हैं “राज्यों में मजदूरी का मानकीकरण एक अच्छा विचार नहीं हो सकता है. क्योंकि लोगों के जीवन, जरूरतों और आकांक्षाओं के मानक स्थान- स्थान पर भिन्न होते हैं. इसलिए सरकार को स्थानीय संदर्भ और आवश्यकताओं के अनुसार मजदूरी प्रदान करने पर विचार करना चाहिए. ”

आंकड़े भी बता रहें कि मनरेगा में रोजगार की मांगों की संख्या में गिरावट का संकेत मिल रहे हैं. मनरेगा के तहत रोजगार की मांग 2021-22 में 8.05 करोड़ से घटकर 2023-24 में 6.20 करोड़ हो गई है.

डे बताते हैं “ मनरेगा के तहत रोजगार की मांग में कमी के कई कारण हैं. पहला कारण तो यही है कि लोगों को लगातार काम का नहीं मिलना. इसके अलावा मनरेगा में कई और भी समस्याएं हैं, जैसे कि मजदूरी मिलने में देरी. नतीजतन लोग अन्य विकल्पों की तरफ चले जातें हैं. अब तो इसमें मज़दूरी प्राप्त करने की प्रक्रिया में कई तरह की तकनीकी चीजें जोड़ दी गई हैं ,जो मज़दूरों के लिए परेशानी का सबब बन गया है “.

( द हिन्दू बिजनेस लाइन की खबर से साभार)

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