रेल मंत्री पीयूष गोयल किसको मूर्ख बना रहे हैं?- नज़रिया

PIYUSH GOYAL

By मुकेश असीम

रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि जैसे सड़क पर सबकी गाडियाँ दौड़ती हैं पर सड़क की जगह तो निजी नहीं होती, वैसे ही रेलवे में भी हो सकता है। अतः भारतीय रेल का निजीकरण कभी नहीं होगा।

हँसिये मत, बात सोलह आने सच है। भारतीय रेल का निजीकरण होने से पूँजीपति वर्ग को क्या लाभ? निजीकरण भारतीय रेल से होने वाली सारी कमाई और मुनाफे का होगा। नुकसान, घाटे का बोझ तो आगे भी जनता पर ही डालना है उसके लिए भारतीय रेल को तो सार्वजनिक रखा ही जायेगा।

पूंजीवाद में सार्वजनिक-निजी का रिश्ता ऐसे ही चलता है।

एक ओर दो बैंक निजी करने की योजना पर काम चल रहा है क्योंकि अब ये निजी पूँजीपतियों को लाभ पहुंचाने में सक्षम नहीं रहे। अब इनकी जमीन, इमारत, और प्रशिक्षित कर्मचारी निजी क्षेत्र को अधिक लाभ दे सकते हैं।

दूसरी ओर कल एक नए सरकारी बैंक अर्थात DFI खोलने का फैसला भी हो गया। इस बैंक में छोटे मोटे लोग जमा भी नहीं कर पायेंगे।

जिन पूँजीपतियों के पास अतिरिक्त पूंजी है जिसे वे कहीं लाभ के काम में निवेश नहीं कर पा रहे वे ही जमा करेंगे और उन्हें इसके ब्याज पर टैक्स भी नहीं देना पड़ेगा।

इस बैंक में जमा पूरी तरह सुरक्षित होगी – रिजर्व बैंक पीएमसी की तरह नहीं बोलेगा 10 हजार से ज्यादा नहीं निकाल सकते, सिर्फ 5 लाख का ही बीमा है, वगैरह। यहाँ अमीर लोगों का पैसा जमा होगा तो फुल गारंटी माँगता है।

ये 3 लाख करोड़ रु के लोन बांटेगा पूँजीपतियों को – वो NPA होकर डूब गए तो हम हैं चुकाने को, जमा करने वालों को तो फुल गारंटी है ही अर्थात दोनों तरफ से पूँजीपतियों की पौ बारह।

ये बैंक इन पूँजीपतियों के लिए विदेशी मुद्रा का लेन-देन करेगा तो उसमें भी 5000 हजार करोड़ रु तक के नुकसान की ज़िम्मेदारी सरकार ने अपने सिर ओढ़ ली है। किसी संपत्ति को इसके जरिये ट्रांस्फर किया जायेगा तो उस पर स्टैम्प ड्यूटि भी नहीं लगेगी।

असल में कहिए तो आर्थिक संकट ऐसा है कि एक पूँजीपति दूसरे को कर्ज-उधार देने को तैयार नहीं, पता नहीं कहाँ पैसा डूब जाए तो सरकार दोनों के बीच में बिचौलिया बनने जा रही है – कर्ज लेने वाला न चुका पाया तो कर्ज लौटाने की ज़िम्मेदारी सरकार की अर्थात देश की जनता की।

कुछ लोग कहेंगे सार्वजनिक क्षेत्र में ऐसा, तो फिर निजीकरण का विरोध क्यों करना चाहिए?  तो जनाब, सिर्फ निजीकरण का विरोध काफी नहीं, इस आधे-अधूरे निजी पूंजी के लिए चोर दरवाजे वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बजाय पूर्ण समाजीकरण के लिए लड़ना चाहिए।

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