मज़दूरों पर अत्याचार के ख़िलाफ़ पोस्ट डालने पर मज़दूर नेता के ख़िलाफ़ राजद्रोह का मुकदमा

abhilakh singh

लॉक डाउन से त्रस्त मज़दूरों पर पुलिस दमन के खिलाफ आवाज उठाने और ह्वाट्सऐप पोस्ट डालने पर मज़दूर नेता अभिलाख सिंह पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया गया है।

काम धंधा बंद होने पर दर दर भटक रहे मज़दूरों पर पुलिस उत्पीड़न का विरोध करने पर इंकलाबी मज़दूर केंद्र के कार्यकर्ता व ठेका मज़दूर कल्याण समिति ,पंतनगर के मज़दूर नेता अभिलाख पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया है।

मज़दूर संगठन और ठेका कल्याण समिति ने इस पुलिसिया कार्यवाही की निंदा की है और तत्काल मुकदमा हटाने की मांग की है।

अभिलाख सिंह पंतनगर विश्वविद्यालय में स्थाई कर्मचारी और लंबे समय से ठेका मज़दूर कल्याण समिति, पंतनगर के माध्यम से ठेका मज़दूरों के हक अधिकारों की आवाज उठाते रहे हैं।

पन्तनगर विश्विद्यालय फार्म के ठेका मज़दूरों के विगत समय में स्वतः स्फूर्त आंदोलन हुए हैं। ठेका मज़दूरों के इन संघर्षों के चलते प्रशासन को पिछले समयों में ठेका मज़दूरों की कई मांगों को मानने को मजबूर होना पड़ा।

ठेका मजदूरों की ई.एस.आई.सी. और ई.पी.एफ., स्थायीकरण की मांग पर हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ने ,हाईकोर्ट से ई.एस.आई.सी लागू कराने के संबंध में विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ आदेश प्राप्त करने और लागू कराने में उनकी मुख्य भूमिका रही थी ।

कुछ समय पहले ठेका मज़दूर कल्याण समिति पन्तनगर के सक्रिय कार्यकर्ता व इंक़लाबी मज़दूर केंद्र के सदस्य ठेका मज़दूर मनोज कुमार को आंदोलन की अगुवाई करने के लिए बर्खास्त कर दिया गया था।

हालांकि न्यूनतम वेतन दिलाने व वेतन भुगतान का यह संघर्ष सफल रहा था। इस पूरे मामले में भी अभिलाख की अग्रणी भूमिका रही थी।

ठेका कल्याण समिति का आरोप है कि इस वजह से विश्वविद्यालय प्रशासन व पुलिस प्रशासन साथी अभिलाख के प्रति रंजिश रखने लगा था और उन्हें फंसाने के मौके की तलाश में जुट गया था।

समिति ने एक बयान जारी कर कहा है कि 24 मार्च को मोदी सरकार द्वारा कोरोना महामारी के चलते किये गए लॉक डाउन ने पूरे देश के स्तर पर मज़दूर मेहनतकशों खासकर असंगठित मज़दूरों को बुरी तरह प्रभावित किया है।

यह लॉक डाउन मज़दूरों मेहनतकशों पर कहर बनके टूटा है। रोज खाने कमाने वाले गरीब असंगठित मज़दूर भूख और बेकारी के चलते तमाम बड़े औद्योगिक केंद्रों और दिल्ली, मुम्बई जैसे महानगरों से पैदल सैंकड़ों किलोमीटर दूर अपने गाँवों को मजबूर हो गए हैं।

समिति के अनुसार, इन त्रस्त मज़दूरों की सुध लेने, उन्हें राहत पहुंचाने के बजाय पुलिस प्रशासन का व्यवहार इनके प्रति बेहद असंवेदनशील और क्रूरतापूर्ण रहा है।

लेकिन इन मज़दूरों को मदद करने और राहत सामग्री देने में अभिलाख आगे रहे हैं।

समिति का कहना है कि पुलिस प्रशासन की ओर से मजदूरों की सहायता करने के बजाय उनके प्रति घोर उपेक्षा दिखाने और असंवेदनशीलता की हद तक पिटाई करने से मज़दूर वर्ग में एक आक्रोश था।

पुलिस के इसी असंवेदनशील व्यवहार व क्रूर पिटाई का विरोध करते हुए अभिलाख ने एक पोस्ट पन्तनगर के सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र की यूनियनों के ग्रुप में डाली थी।

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पुलिस का कहना है कि एक मुखबिर की सूचना पर इस सम्बंध में पन्तनगर थाने में अभिलाख को दिनांक 31 मार्च को थाने बुलाया और 3 घंटे पूछताछ की गई और उनका मोबाइल जब्त कर लिया।

अगले दिन एसटीएफ (उत्तराखंड) ने भी उनसे पूछताछ की और उसके बाद उनपर धारा 124 (A) के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया।

मज़दूर संगठन का आरोप है कि पुलिस की कार्रवाई पूरी तरह बदले की भावना से प्रेरित है और शासन सत्ता के ख़िलाफ़ असंतोष को कुचलने की एक साजिश है और अभिव्यक्त के अधिकार का यह खुला उल्लंघन है।

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