एआईआरएफ़ ने किया ट्रेनों को निजी हथों में देने का ज़बानी विरोध, लेकिन क्या मोदी सरकार सुनेगी?

By आशीष सक्सेना

भारत सरकार भले ही रेलवे के निजीकरण की दिशा में एक के बाद एक कदम बढ़ा रही हो, लेकिन ऑल इंडिया रेलवे मेंस फ़ेडरेशन को अभी भी उम्मीद की किरण नज़र आ रही है।

एआईआरएफ़ के महासचिव शिवगोपाल मिश्रा की रेलवे बोर्ड के चेयरमैन से मुलाकात की है।

यहां बता दें, रेलमंत्री पियूष गोयल ने रेलवे के निजीकरण को अभी भी नकारा है और निजी ट्रेन ऑपरेशन को एक अतिरिक्त प्रयोग बताया है।

एआईआरएफ़ महासचिव ने हाल ही में दो बार सीआरबी से भेंट करके रेलवे के निजीकरण संबंधी मामलों पर ऐतराज दर्ज कराया।

ताज़ा मुलाकात तो बृहस्पतिवार को ही हुई, जिसमें उन्होंने अप्रेंटिस कर चुके 25 हजार से ज्यादा युवाओं को नियुक्ति देने की सिफारिश की।

रेल कर्मचारियों की तमाम समस्याओं को लेकर ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा ने रेलवे बोर्ड के चेयरमैन विनोद यादव से मुलाकात की और कहा कि सरकार को ट्रेनों को प्राइवेट ऑपरेटर को देने के साथ ही बेवजह तमाम पोस्ट को सरेंडर किए जाने के आदेश को तत्काल वापस लिया जाना चाहिए।

एआईआरएफ़ ने आधिकारिक सोशल मीडिया पेज पर इस सूचना के साथ ही बताया कि रायबरेली के माडर्न कोच फैक्ट्री को निजी हाथों में देने के बजाए सरकारी क्षेत्र में रखते हुए इसका विस्तार किया जाएगा।

चेयरमैन रेलवे बोर्ड की लगभग घंटे भर चली बैठक में शिवगोपाल मिश्रा ने कहा कि विपरीत हालातों में भी ट्रेनों का कुशलतापूर्वक संचालन कर रेलकर्मचारियों ने साबित किया है कि वो हर हाल में मेहनत से काम कर सकते हैं।

कोरोना में जब पूरा देश लॉक हो गया, उस समय भी बड़ी संख्या में मालगाड़ी और पार्सल ट्रेनों का संचालन कर देशभर में आवश्यक वस्तुओं की कमी नहीं होने दिया।

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इतना ही नहीं जब तमाम राज्य सरकारें प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने में नाकाम रही तो रेलकर्मियों ने ही श्रमिक ट्रेनों का संचालन कर उन्हें घर पहुंचाया। यही वजह है कि खुद प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात में रेल कर्मचारियों को फ्रंट लाइन करोना वारियर्स बताया।

महामंत्री ने चेयरमैन रेलवे बोर्ड से कहा कि जिस आईआरसीटीसी ने ट्रेन चलाने का जिम्मा लिया, उसकी हालत ये है कि हमारी स्पेशल ट्रेनों की टिकट बेच रही है।

इन हालातों में ट्रेनों का संचालन प्राईवेट ऑपरेटरों को कतई नहीं दिया जाना चाहिए, एआईआरएफ़ इसके सख्त ख़िलाफ़ है।

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इसी तरह रोजाना अखबारों में खबर आ रही है कि बड़ी संख्या में पोस्ट सरेंडर किए जा रहे हैं। ट्रेनों की संख्या लगातार बढ़ रही है, आज तमाम कर्मचारियों पर काम का बोझ है, इसके बाद नई तैनाती करने के बजाए पोस्ट सरेंडर करने की बात हो रही है, जबकि इसका कोई आधार नहीं है।

एआईआरएफ का कहना है कि इस बीच सूत्रों से पता चला है कि रायबरेली कोच फैक्ट्री के निजीकरण की योजना को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। अब रेल मंत्रालय चाहता है कि इसका सरकारी क्षेत्र में रहते हुए ही विस्तार किया जाए, इसकी उत्पादन क्षमता को बढ़ाए जाने का भी विचार हो रहा है , ताकि यहां से बने कोचों का निर्यात संभव हो सके।

दक्षिण पूर्व रेलवे में खत्म होंगे 3681 पद

एआरआईएफ़ की उम्मीद और आशंकाओं के बीच रेलवे ने कर्मचारियों को बाहर निकालने का रास्ता तैयार कर दिया है। प्रमुख समाचार पत्रों के माध्यम से स्पष्ट किया गया है कि दक्षिण-पूर्व रेलवे के हेड क्वार्टर और रांची रेल डिवीजन समेत चार डिवीजन में 3,681 पद खत्म किए जाएंगे।

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दक्षिण-पूर्व रेलवे के एजीएम अनुपम शर्मा ने संबंधित पदों की लिस्ट जारी करते हुए आदेश दिया है कि बिना देरी किए रेलवे बार्ड के आदेश पर सभी रेल डिवीजन अमल करें। शर्मा ने बताया है कि रांची रेल डिवीजन से 100 पोस्ट सरेंडर किए जाएंगे।

डीआरएम को आदेश दे दिया गया है। रांची के अलावा चक्रधरपुर रेल डिवीजन से 592, आद्रा डिवीजन से 870, खडग़पुर डिवीजन से 509, ख?गपुर हेडक्वार्टर से 885 और वर्कशॉप-स्टोर से 725 पद शामिल हैं।

रांची रेल डिवीजन की मेंस कांग्रेस यूनियन के मंडल समन्वयक प्रभारी नित्यानंद लाल कुमार ने गलत निर्णय बताते हुए कोर्ट जाने की चेतावनी दी है।

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