अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को आरएसएस मातृ शक्ति दिवस क्यों बता रहा है?

international women's day bjp

By आशीष सक्सेना

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस, जो असल में अंतरराष्ट्रीय महिला मजदूर दिवस है, उसके मायने को आरएसएस और भाजपा बदलने के प्रयास में जुटी है।

जाहिर है, इसके लिए केंद्र की मोदी सरकार का प्रश्रय भी है और सरकार खुद चाहती है कि महिला मजदूरों के इतिहास को नष्ट कर दिया जाए।

इसी कोशिश में अंतराष्ट्रीय महिला मजदूर दिवस की पूर्व संध्या पर बरेली में भाजपा के सहयोगी संगठन राष्ट्र जागरण युवा संगठन ने अर्बन कोऑपरेटिव बैंक सभागार में महिला सशक्तीकरण सम्मान समारोह कार्यक्रम किया।

वही कोऑपरेटिव बैंक, जिसके चेयरमैन केंद्रीय श्रम व रोजगार मंत्री संतोष गंगवार हैं।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि भाजपा नेत्री साध्वी प्राची थीं। इस कार्यक्रम में शहर के कई नामचीन डॉक्टर और पत्रकार भी शरीक हुए।

इस कार्यक्रम में बताया कि 8 मार्च 1975 में संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा मान्यता मिलने पर प्रति वर्ष महिला दिवस मनाया जाता है।

ये दिवस मातृ शक्ति को प्रणाम करने एवं राष्ट्र निर्माण में उनके अतुलनीय योगदान को सराहना देने के लिए मनाया जाता है। इसके बाद साध्वी प्राची ने बरेली अलग-अलग क्षेत्र की कुछ महिलाओं को नारी शक्ति सम्मान से नवाजा।

कार्यक्रम की सामान्य सूचना इतनी ही है, लेकिन इसका बड़े पैमाने पर प्रसार किया गया और आठ मार्च के दिन मीडिया माध्यमों से ये सूचना लाखों महिलाओं ही नहीं आमजन में भी पहुंचेगी, जो कि भ्रामक है।

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस का राष्ट्र निर्माण में योगदान से लेना-देना नहीं, बल्कि महिला मुक्ति के सवाल पर संघर्ष का परचम फहराना है।

असल में सरकार और उसके सहयोगी संगठन महिला श्रमिकों ही नहीं, आम महिलाओं के साथ किए जाने वाले अन्याय पर राष्ट्रवादी पर्दा डालने की भरसक कोशिश कर रहे हैं।

जिन श्रम मंत्री बैंक के सभागार में हुए कार्यक्रम में मनगढ़ंत बातें की गईं, वे महिला श्रमिकों को सूर्य छिपने तक काम कराने की छूट दे चुके हैं। ये नियम लागू होने से पहले ही तमाम सेक्टर में ऐसा पहले ही हो रहा है।

बहुत ही कम उम्र की युवतियां बैंकों में काफी अंधेरा होने तक काम करने को मजबूर हैं तो तमाम फैक्ट्रियों में भी अब ये सिलसिला शुरू हो चुका है। जबकि महिला के खिलाफ अपराध में सरकार कोई कमी नहीं करा सकी है।

उलटा सरकार के तमाम सांसद बलात्कार के आरोपी हैं। सरकार ने किराए की कोख यानी सरोगेसी के नियमों में फिर बदलाव कर गरीब महिलाओं को अमानवीय हालत में डालने का रास्ता खोल दिया है।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि कथित साध्वी प्राची महिला सरोकारों को या महिलाओं की मुक्ति के बारे में वही राय रखती हैं, जो आरएसएस रखती है, यानी महिलाएं बच्चे पैदा करने की मशीन भर हैं।

ये वही प्राची हैं, जिन्होंने विश्व हिंदू परिषद के सम्मेलन में 11 बच्चे पैदा करने वाले हिंदू बुजुर्ग को सम्मानित किया और राजस्थान के भीलवाड़ा में सभी हिंदू महिलाओं से कम से कम चार बच्चे पैदा करने को कहा। इनके जहरीले बोल से हिंसा की चिंगारियां फूटती रही हैं।

योगी सरकार के बनने से पहले बरेली में भी शेरगढ़ की छात्राओं को लेकर दो समुदायों की फूट का कारण बन चुकी हैं। छात्राओं की शिक्षा का मुद्दा इनके लिए महत्वहीन ही रहा।

महिला दिवस का इतिहास

अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर, यह दिवस सबसे पहले 28 फरवरी 1909 को मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखिरी इतवार के दिन मनाया जाने लगा।

1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया।

जर्मन कम्युनिस्ट क्लारा जेटकिन के जोरदार प्रयासों से सम्मेलन ने महिला दिवस को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप दिया और इस दिन सार्वजनिक अवकाश को सहमति दी।

उस समय इस दिन का खास मकसद महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलाना था, क्योंकि तब ज्यादातर देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था।

फिर, 1917 में रूस की महिलाओं ने महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिए ऐतिहासिक हड़ताल की। जारशाही ध्वस्त होने पर मजदूर वर्ग की कम्युनिस्ट पार्टी की अंतरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिया।

उस समय रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनों की तारीखों में कुछ अंतर है।

जुलियन कैलेंडर के मुताबिक 1917 की फरवरी का आखिरी इतवार 23 फरवरी को था, जबकि ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन 8 मार्च थी।

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