इंडोनेशियाः नए श्रम क़ानून के विरोध में बैन के बावजूद लाखों लोग सड़क पर उतरे, जकार्ता में आगजनी

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पूरी दुनिया में लॉकडाउन का फायदा उठाकर सरकारें श्रम क़ानूनों को ख़त्म करने में जुटी हुई हैं और दिनों दिन विरोध प्रदर्शनों हड़तालों का सिलसिला तेज़ हो रहा है।

हालिया ख़बर इंडोनेशिया से है जहां विवादित नए श्रम क़ानूनों के ख़िलाफ़ मज़दूरों और बेरोज़गार नौजवानों का हुजूम सड़कों पर उतर पड़ा है और पुलिस प्रशासन से सीधी भिड़ंत ले रहा है।

चैनल न्यू एशिया के अनुसार, वृहस्पतिवार को दसियों हज़ार प्रदर्शनकारियों ने राजधानी जकार्ता में पुलिस बैरिकेड और पुलिस पोस्टों को आग के हवाले कर दिया।

ट्रेड यूनियन एक्टिविस्टों और पर्यावरण अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस क़ानून की निंदा की है। जबकि एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे मज़दूरों के लिए ‘विनाशकारी’ बताया है।

 बृहस्पतिवार को राजधानी में सरकारी भवनों तक प्रदर्शनकारियों के पहुंचने से रोकने के लिए 13,000 पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे लेकिन वे मुख्य इलाक़े में जाने से प्रदर्शनकारियों को रोकने में विफल रहे।

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सरकार के मनमाने क़ानून से गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड को आग लगा दी, कई बस स्टॉप और ट्रैफ़िक पुलिस पोस्ट को आग के हवाले कर दिया।

जकार्ता पुलिस ने इस मामले में 23 प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार किया है। आलोचकों का कहना है कि नए रोज़गार क़ानून से मज़दूरों के अधिकार और पर्यावरण क़ानून कमज़ोर होंगे।

चैनल न्यू एशिया ने जावा द्वीप पर मौजूद पुलिस प्रवक्ता एडी सुमार्दी के हवाले से बताया कि जकार्ता के उत्तरी प्रांत में बुधवार को भारी प्रदर्शनों के बीच 14 प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार किया है। जबकि 9 अन्य प्रदर्शनकारियों को पश्चिमी जावा से गिरफ़्तार किया गया है।

भारत की तरह इंडोनेशिया में सरकार मज़दूर नेताओं और विश्वविद्यालय के छात्रों को निशाने पर ले रही है क्योंकि प्रदर्शन की अगुवाई यही कर रहे हैं।

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पुलिस ने कहा है कि अगर ये प्रदर्शन जारी रहता है तो पुलिस फ़ैक्ट्रियों और विश्वविद्यालय के कैंपसों पर गश्त बढ़ा देगी।

बीते सोमवार को संसद में एक झटके में नया क़ानून पास कर दिया गया। राष्ट्रपति जोको विडोडो की सरकार का कहना है कि क़ानूनों में ढील देकर और विदेशी निवेश को आकर्षित करके, कोरोना वायरस से बुरी तरह प्रभावित हुई अर्थव्यवस्था को गति देने में आसानी होगी।

लेकिन इंडोनेशिया में सोशल मीडिया पर इन नए क़ानूनों के ख़िलाफ़ आक्रोश उमड़ पड़ा।

आलोचकों का कहना है कि 70 मौजूदा क़ानूनों को ख़त्म कर उनकी जगह बहुत ढीले क़ानून और प्रावधान बनाने से श्रम अधिकारों और पर्यावरण क़ानूनों की रक्षा का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।

कहा जा रहा था इस क़ानून पर राष्ट्रीय सहमति बनाई जाएगी लेकिन उम्मीद से पहले ये क़ानून पास हो गया। सरकार ने ये काम ऐसे समय किया है जब पुलिस ने इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में सार्वजनिक स्वास्थ्य के आधार पर प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगा रखा है।

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ट्रेड यूनियनें और एक्टिविस्टों का कहना है कि सरकार ने ये क़ानून लाने से पहले उनसे कोई सलाह मशविरा नहीं किया।

बुधवार को इंडोनेशिया के छह शहरों में हज़ारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन किया और सोशल मीडिया पर भी क़ानून की तीखी आलोचना हो रही है।

क़ानून के विरोध में चलाए गए कई हैशटैग वायरल हुए हैं। सोशल मीडिया पर सरकार के इस कदम के विरोध का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि क़ानून वापस लिए जाने के लिए चलाए गए हस्ताक्षर पीटिशन को 13 लाख लोगों ने समर्थन दिया है।

बुधवार को कॉनफ़ेडरेशन ऑफ़ इंडोनेशियन वर्कर्स यूनियन्स ने कहा है कि मंगलवार से जारी तीन दिन की हड़ताल को दबाने की कोशिशों से पीछे नहीं हटेंगे।

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उनका दावा है कि मंगलवार को लाखों श्रमिक अपनी फ़ैक्ट्री नहीं गए और उत्पादन पंगु हो गया है।

इंडोनेशिया में हालांकि श्रम क़ानूनों का पालन भारत जैसा ही होता है लेकिन विदेशी कंपनियों के लिए वहां श्रम क़ानून कड़े हैं।

देश में न्यूनतम वेतन का क़ानून है लेकिन मुश्किल से ही कंपनियां इस क़ानून का पालन करती हैं।

(सभी तस्वीरें ट्विटर से)

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