वेदांता कंपनी के खनन के विरोध में ओड़िशा के आदिवासी समुदाय ने लिखा राष्ट्रपति को खुला पत्र

26 जनवरी को कुट्रुमाली, सिजिमाली और मझिंगमाली के लोगों की ओर से भारत के राष्ट्रपति को एक खुला पत्र

दक्षिण ओडिशा के कुट्रुमाली, सिजिमाली और मझिंगमाली के आठ गांवों के 160 आदिवासी और दलित लोगों ने गणतंत्र दिवस पर भारत के राष्ट्रपति को एक खुला पत्र लिखा है.

जिसमें उनका ध्यान उन अन्यायपूर्ण और असंवैधानिक तरीकों की ओर आकर्षित किया गया, जिनके द्वारा उनकी भूमि, पहाड़, नदियां और उनकी सहमति के बिना और देश के कानूनों का पालन किए बिना बॉक्साइट खनन करने के लिए वेदांता कंपनी को बेच दिया गया है.

ग्रामीणों ने कहा कि जब पूरी दुनिया जलवायु संकट से उत्पन्न पर्यावरणीय और पारिस्थितिक खतरों को रोकने के लिए कदम उठा रही है, तो राज्य सरकार विकास के नाम पर मुट्ठी भर कंपनियों के मुनाफे के लिए सब कुछ दावं पर लगा रही है.

उन्होंने चिंता व्यक्त की कि इस तरह के खनन और औद्योगीकरण के परिणाम आने वाले दिनों में उनकी आजीविका, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन और विरासत के लिए विनाशकारी होंगे.

पत्र :-

सेवा में
श्रीमती द्रौपदी मुर्मू
भारत के माननीय राष्ट्रपति

आदरणीय राष्ट्रपति जी,

हम गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं व्यक्त करते हैं.

हम कुटरुमाली, सिजिमाली और मझिंगमाली के सामान्य लोग हैं, मुख्य रूप से आदिवासी और दलित. हमारा क्षेत्र दक्षिण ओडिशा के रायगढ़ा जिले के काशीपुर और कालाहांडी जिले के थुआमल रामपुर तक फैला हुआ है. यह जंगलों, पहाड़ों और झरनों की भूमि है. भारत के संविधान के अनुसार यह क्षेत्र पाँचवीं अनुसूची के अंतर्गत आता है. हमें आपको लिखने का साहस और आत्मविश्वास है, क्योंकि आप हमारे ओडिशा से हैं और उड़िया भी समझतीं हैं. हमें इस बात पर भी गर्व है कि आप हमारे बीच से एक आदिवासी हैं, जो इस देश के संवैधानिक प्रमुख हैं. एक महिला होने के नाते आप हम जैसे लोगों की परेशानी को आसानी से समझ सकेंगी.

फरवरी 2023 में सरकार ने वेदांता को हमारी पहाड़ियों में बॉक्साइट खनन करने के लिए पट्टा दे दिया था. हमारी सहमति लेने की संवैधानिक गारंटी होने के बावजूद हमारी राय नहीं मांगी गई और न ही हमारी सहमति ली गई. किसी भी प्रशासनिक अधिकारी ने कोई ग्राम सभा या पल्ली सभा आयोजित नहीं की. इसके बजाय माइथ्री नाम की वेदांता की एक अनुबंध कंपनी के कर्मियों ने हमारे गांवों का चक्कर लगाना शुरू कर दिया. उन्होंने लोगों को अपने गाँव, अपनी ज़मीन और अपनी पहाड़ियाँ छोड़ने के लिए फुसलाने और मनाने की कोशिश की. परिणामस्वरूप, हमारे गाँवों में अशांति बढ़ गई. स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने हमारी लिखित अपील पर कोई ध्यान नहीं दिया. इसके बजाय, कंपनी के अधिकारियों ने अगस्त 2023 में अपने उपकरणों और स्थानीय पुलिस के साथ पहाड़ियों में प्रवेश करने का प्रयास किया. हम पहाड़ियों के निवासियों, विशेषकर महिलाओं ने शांतिपूर्ण तरीकों से क्षेत्र में उनके प्रवेश का विरोध किया. हमने मांग की कि देश के कानूनों के अनुसार ग्राम सभाओं के माध्यम से लोगों की सहमति मांगी जानी चाहिए. जिला प्रशासन और पुलिस ने इस पर भी सुनवाई नहीं की. उलटे उन्होंने आधी रात को छापेमारी की और बेतरतीब ढंग से लोगों को उठाया और हमारे 24 लोगों को तीन महीने से अधिक समय तक जेल में डाल दिया.

क्या यह अत्यंत अन्यायपूर्ण नहीं है कि हमारी सहमति के बिना और देश के कानूनों का पालन किए बिना, हमारी ज़मीनें, पहाड़ियां,नदियां और नाले कंपनी को बेच दिए गए हैं? क्या इस अन्याय का विरोध करना अपराध हो जाता है? हमारा मानना है कि हमारे पूर्वज बिरसा मुंडा, लक्ष्मण नायक और रेंडो माझी अगर आज हमारे बीच होते तो उन्होंने इस अन्याय का विरोध किया होता. हमारा यह भी मानना है कि आदिवासी होने के नाते आप हमारे विचारों और भावनाओं को समझ सकेंगे.

जब हमारे लोग जेल में हैं. वेदांता को पर्यावरण मंजूरी के लिए 16 और 18 अक्टूबर, 2023 को दो सार्वजनिक सुनवाई हुई. हमने फिर भी वहां भाग लिया और अपने विचार व्यक्त किये. सरकार जिसे केवल बॉक्साइट पर्वत के रूप में देखती है, हमारे लिए वह हमारे जंगल और पहाड़, हमारी माँ और हमारा जीवन-स्रोत है. यह हमारे पूर्वजों का निवास स्थान है. यह हमारे देवताओं का निवास और हमारी पूजा का स्थान भी है. पूरे वर्ष यहां अनुष्ठान और त्यौहार होते रहते हैं. वहाँ विभिन्न प्रकार के जीवित प्राणी और पेड़-पौधे भी रहते हैं जिनकी हम पूजा करते हैं और समुदाय का अंतर्निहित हिस्सा मानते हैं. वे सभी हमारे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन और विरासत से अटूट रूप से जुड़े हुए हैं.

हम यहां विभिन्न प्रकार की फसलें उगाते हैं जैसे सुआन, मंडिया, कांगू, कोसल आदि. वनों से हमें कंधा, करुड़ी, चाटु, लकड़ी, पत्ते, साग और जीवन की कई दैनिक आवश्यकताएं प्राप्त होती हैं. पीढ़ियों से हम पहाड़ों और जंगलों की रक्षा करते हुए जी रहे हैं. किसी भी सरकार के अस्तित्व में आने से पहले से ही हमारे पूर्वज यहां रहते रहे हैं. उन्होंने इन पहाड़ियों की रक्षा की और हमारे लिए पहाड़ियां छोड़ दीं. पहाड़ियां हमारी हैं. सरकारी अधिकारी हमसे इसका सबूत मांग रहे हैं. क्या मछली यह कहने के लिए कोई प्रमाण दे सकती है कि वह पानी में रहती है?

पहाड़ियां अनगिनत जलधाराओं का स्रोत हैं. हमारी संस्कृति में यह केवल एक जातिवाचक संज्ञा नहीं है. प्रत्येक धारा का एक नाम है. जिस तरह एक माँ बच्चों को अपने दूध से पालती है, उसी तरह हम किसान पहाड़ों से आने वाली इन जलधाराओं के पानी पर रहते हैं. और अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि ये धाराएं जुड़कर नदियों में विलीन हो जाती हैं. ये नदियां कई मोड़ लेती हुई समुद्र में गिरती हैं, जो हमारा तटीय ओडिशा है. वे पहाड़ों और जंगलों से अपने साथ जो गाद लेकर आते हैं, वह तटीय ओडिशा के मैदानों को इतना समृद्ध और उपजाऊ बनाता है. नदियां पहाड़ी क्षेत्रों को तटीय क्षेत्रों से जोड़ती हैं. यदि कुछ टन बॉक्साइट और कुछ करोड़ रुपयों के लिए पहाड़ियां गायब हो जाएँगी, तो ये नदियाँ भी ख़त्म हो जाएँगी. संपूर्ण ओडिशा हमेशा के लिए नष्ट हो जाएगा,पूरा ओडिशा एक विशाल रेगिस्तान बन जाएगा.

आज, ओडिशा सरकार मिलेट मिशन चला रही है और इसे वैश्विक स्तर पर ले गई है. विश्व पटल पर ओडिशा का नाम रोशन करने वाला बाजरा हमारे पहाड़ों पर ही पकता है. यदि पहाड़ियां चली जाएं तो क्या बाजरा बचेगा? पहाड़ चले गये तो क्या हमारी सांस्कृतिक पहचान बनी रहेगी? हम जड़विहीन लोग बन जायेंगे. एक आदिवासी के रूप में, हम आशा करते हैं कि आप हमारी पीड़ा और दर्द को अच्छी तरह से समझ सकतीं हैं.

हम देखते हैं कि कैसे सुंदरगढ़ और तालचेर में कोयला क्षेत्र, क्योंझर और जाजपुर में लौह अयस्क क्षेत्र और सुकिंडा में क्रोमाइट खनन ने इनमें से प्रत्येक क्षेत्र को प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों और मौतों के प्रजनन स्थल में बदल दिया है. खनन और उद्योगों ने न केवल जलधाराओं को सूखने का कारण बना दिया है, बल्कि रासायनिक अपशिष्टों और अन्य जहरीले कचरे के निरंतर निर्वहन के माध्यम से ओडिशा की सभी बड़ी नदियों को भी प्रदूषित कर रहे हैं. इंसानों की बात तो छोड़िए, यह पानी मवेशियों और अन्य जानवरों के लिए भी जहरीला है. हमारे काशीपुर ब्लॉक में, खनन कार्यों और आदित्य बिड़ला के रिफाइनरी संयंत्र के कारण व्यापक पर्यावरणीय क्षति हो रही है. रोजगार की संभावनाओं के अभाव में, क्षेत्र के युवा जीविकोपार्जन की तलाश में चेन्नई और केरल जैसे दूर स्थानों की ओर पलायन कर रहे हैं.

हमें डर है कि वेदांत और अदानी के प्रवेश से कुट्रुमाली, सिजिमाली और मझिंगमाली में भी ऐसा ही होगा. जब पूरी दुनिया जलवायु संकट से उत्पन्न पर्यावरणीय और पारिस्थितिक खतरों को रोकने के लिए कदम उठा रही है, हमारी सरकार विकास के नाम पर मुट्ठी भर कंपनियों के मुनाफे के लिए सब कुछ छोड़ रही है. कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे खनन और औद्योगीकरण के परिणाम आने वाले दिनों में विनाशकारी होने वाले हैं.

पिछले छह या सात महीनों से हम अनुभव कर रहे हैं कि कैसे देश के कानून, संवैधानिक गारंटी और संस्थाएं कंपनियों का समर्थन कर रहीं हैं, न कि हमारे जैसे सामान्य नागरिकों का.यहां तक कि क्षेत्र के राजनीतिक दलों ने भी कंपनियों को अपना खुला समर्थन देने की घोषणा की है. जब हम अपनी ज़मीन, पहाड़ों और जलधाराओं की सुरक्षा के लिए आवाज़ उठाते हैं, तो कानून के रखवाले हमें अपराधी बना देते हैं. तो, हम क्या करें और कहां जाएं?

हम एक बार फिर दोहराएंगे कि चूंकि हम आपको हममें से एक मानते हैं और इस देश के संवैधानिक प्रमुख होने के नाते, हम आपके साथ अपने विचार साझा कर हैं. हम यह भी आशा करते हैं कि आप न केवल हमारे क्षेत्र बल्कि पूरे राज्य और देश के लाभ के लिए खनन और वनों की कटाई की इस विवेकहीन प्रक्रिया को समाप्त करने के लिए निश्चित रूप से उपाय करेंगीं.

सादर,

कुट्रुमाली, सिजिमाली और मझिंगमाली के लोग

माँ माटी माली सुरक्षा मंच (रायगढ़ा-कालाहांडी)

( ग्राउंड जीरो की खबर से साभार)

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