क्यों मनरेगा कर्मियों की मज़दूरी और बजट आवंटन बढ़ाने की है जरुरत

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सरकारी समिति ने मनरेगा मजदूरी दरों और बजट आवंटन में तेज वृद्धि की सिफारिश की: रिपोर्ट

बीते दिनों केंद्रीय सरकार ने मनरेगा में मज़दूरी सम्बन्धी सुझाव के लिए एक पैनल का गठन किया था. पैनल ने सरकार को अपना सुझाव देते हुए कहा की “मनरेगा मज़दूरों की मज़दूरी में वार्षिक वृद्धि के अलावा हर पांच साल में फिर से मूल्यांकन किया जाना चाहिए”.

इकोनॉमिक टाइम्स की एक खबर के मुताबिक एक उच्च स्तरीय सरकारी पैनल ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की मौजूदा मजदूरी दरों में उल्लेखनीय वृद्धि की सिफारिश की है.खबर के अनुसार वृद्धि हाल की वार्षिक वृद्धि के अतिरिक्त होगी.

सरकार ने इस समिति का गठन इस सुझाव के लिए किया था की ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को और अधिक प्रभावी बनाने के लिया क्या किया जा सकता है. साथ ही साथ पैनल ने सरकार को इस रोजगार गारंटी योजना के लिए बजटीय आवंटन बढ़ाने का भी सुझाव दिया.

समिति के अध्यक्ष पूर्व ग्रामीण विकास सचिव अमरजीत सिन्हा हैं

ख़बरों के मुताबिक समिति ने मज़दूरी में वृद्धि और बजटीय आवंटन में वृद्धि की बात तो करता है लेकिन ये समिति सरकार को एक सटीक आंकड़ा देने में विफल रही है,जिसकी वजह से सरकार भी संशय के माहौल में है.

मिडिया से बात करते हुए एक विशेषज्ञ ने बताया की मनरेगा रेट में किसी भी तरह की तेज बढ़ोतरी से मज़दूरों की आय. बढ़ी मज़दूरी ग्रामीण उपभोक्ता को भी बढ़ाएगी ,जिससे आर्थव्यवस्था को भी मज़बूती मिलेगी. साथ ही बढ़ती महंगाई से सबसे ज्यादा जूझ रही मज़दूर वर्ग को रहत मिलेगी.

सिन्हा की अगुवाई वाली समिति ने मजदूरी दर में वार्षिक वृद्धि को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (ग्रामीण) से जोड़ने के बजाय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (खेतिहर मज़दूर) में रखने का भी प्रस्ताव किया है.

इसके अतिरिक्त पैनल ने सुझाव दिया कि वार्षिक वृद्धि के अलावा, हर पांच साल में इस तरह के वेतन का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए.

इंडिया रेटिंग्स के चीफ इकनॉमिस्ट डीके पंत ने ईटी को बताया ‘अगर मनरेगा की मजदूरी दरों में पर्याप्त बढ़ोतरी की जाती है, तो इससे अर्थव्यवस्था में खपत बढ़ सकती है. इस कदम से दूसरी एक्टिविटीज की मज़दूरी में भी बढ़ोतरी होगी साथ ही साथ फसलों के बढे हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य भी देखने को मिलेंगे जिसकी वजह अधिक खाद्य सब्सिडी और मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है’.

यह रिपोर्ट पिछले महीने ग्रामीण विकास मंत्रालय को सौंपी गई थी और इसे अभी सार्वजनिक किया जाना बाकी है

गौरतलब है की इस साल के बजट में मनरेगा के लिए आवंटन में भारी कटौती की गई थी, जिसे घटाकर 60,000 करोड़ रुपये कर दिया गया था. द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल के लिए अनुमानित बजट 89,400 करोड़ होना चाहिए था जबकि सरकार ने इसके उलट बजट को घटा दिया.

ख़बरों के मुताबिक बजट में वित्त वर्ष 23 -24 के लिए आवंटित मनरेगा बजट 60,000 करोड़ रुपये का 58 फीसदी हिस्सा पहली तिमाही में ही इस्तेमाल हो गया है. इसलिए केंद्र सरकार को अब इस योजना को जारी रखने के लिए अपने परिव्यय में वृद्धि करनी पड़ सकती है.

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