गिग वर्करों के लिए इसी सत्र में क़ानून लाएगी राजस्थान सरकार, डिलीवरी बॉय की ज़िंदगी में क्या बदलेगा?

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By अभिनव

राजस्थान सरकार इसी सत्र में गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा देने वाले एक ऐतिहासिक कानून को लाने जा रही है. 20 जुलाई को जयपुर में गिग वर्कर्स की एक सभा में राज्य के श्रम मंत्री सुखराम बिश्नोई ने इसकी घोषणा की.

राजस्थान में सामाजिक संगठन और यूनियनें लंबे समय से गिग वर्कर्स को लेकर क़ानून बनाने की मांग करती आ रही हैं.

सूचना एवं रोजगार अधिकार अभियान राजस्थान द्वारा जयपुर में शहीद स्मारक पुलिस कमिश्नरेट के बाहर जन हक धरना चल रहा है जिसमें राज्य भर से गिग वर्कर्स इकट्ठा हुए थे.

राजस्थान सरकार द्वारा अपने पिछले बजट सत्र के दौरान प्रदेश में मोबाइल फ़ोन और ऑनलाइन एप्प आधारित ई-कामर्स, ऑनलाइन आर्डर पर सामान और खाने कि चीज़ों की डिलीवरी, कार एवं बाइक-टैक्सी आदि सेवाओं में लगे वर्करों के लिए कानून लाने की घोषणा की थी.

मुख्यमंत्री गहलोत ने इस साल 10 फ़रवरी को पेश किये बजट 2023-24 में गिग वर्कर्स के लिए एक राज्य स्तरीय वेलफ़ेयर बोर्ड गठन का ऐलान किया.

उन्होंने कहा कि “दुनियाभर में नई उभरती गिग इकॉनमी से जुड़े लाखों युवाओं को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए राज्य सरकार ने प्लेटफ़ार्म बेस्ड गिग वर्कर्स बिल का प्रारूप तैयार कर लिया है.”

इस पर 7 जुलाई तक आम लोग भी श्रम आयुक्त को सुझाव दे सकते थे. उम्मीद है कि अब ये क़ानून हकीक़त में बदलेगा।

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क्या है गिग वर्कर

हमे भूख लगी हो हम झट से स्विगी या जोमाटो का एप्प अपने फोन में खोलते हैं और खाना आर्डर कर देते हैं.

blinkit और dunzo जैसे कई एप हैं जो 8 -10 मिनट में आपके सामान की डिलीवरी करने का दावा करते हैं.

कुछ इसी तरह हमे कही जाना हो तो हम उबर,ओला या दूसरी टैक्सी सर्विस का सहारा लेते हैं. दवाइयां मंगानी हो, राशन का सामान मंगाना हो हम ऐसे ही कई दूसरे प्लेटफार्म का इस्तेमाल करते हैं.

एप्प आधारित सेवाएं आज के दौर में जन-जीवन और अर्थवयवस्था का महत्व्यपूर्ण हिस्सा बन गई हैं.

हालाँकि इन सबका सीधा असर इन सेवाओं में काम कर रहे मज़दूरों/वर्कर्स पर पड़ता है. इन क्षेत्रों में काम कर रहे वर्कर्स को गिग वर्कर्स कहते हैं.

इन्हें अबतक किसी भी प्रकार के आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा जैसे की पीएफ, पेंशन या अन्य भविष्य निधि का कोई अधिकार नहीं था.

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क्यों पड़ी कानून कि ज़रूरत?

पिछले कई वषों में टेक्नोलॉजी विकास के साथ पूरी दुनिया में एप्प बेस्ड सर्विस का प्रचलन बढ़ा है. इस नए सेक्टर में कार्यरत करोड़ों लोग विशेषरूप से युवाओं कि संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है.

लेकिन बेहतर सेवा शर्तों, नौकरी कि नियमतता और सामाजिक सुरक्षा और कल्याण के लिए विशेष क़ानूनी प्रावधान कहीं भी नहीं है.

राजस्थान सरकार द्वारा लिया गया ये पहल देश के विभिन्न हिस्सों में लाखों कि संख्या में कार्यरत गिग वर्कर्स के कल्याण के लिए किसी भी सरकार द्वारा लागू किया जाने वाला पहला क़ानून और बोर्ड होगा.

गौरतलब है कि राजस्थान में विभिन्न गिग वर्कर्स यूनियनें सरकार पर लगातार इस तरह के कानून का दबाव बना रही थीं. बीते कई महीनों से ये यूनियनें विभिन्न प्लेटफॉर्मों के साथ काम कर रहे गिग वर्कर्स के बीच जागरूगता अभियान चला रही थीं.

साथ ही 20 जुलाई को जयपुर के शहीद स्मारक में महारैली का आयोजन किया है. गिग वर्कर्स यूनियन के पदाधिकारी आशीष सिंह अरोरा कहते हैं, “इस कानून के तहत इंटरनेट शटडाउन कि स्थिति में उचित मुआवज़ा मिलने का प्रावधान जोड़ा जाये. साथ ही उन्होंने कहा कि इस महारैली से गिग वर्कर्स अपनी एकजुटता दिखाएंगे और देश के अलग अलग हिस्सों के गिग वर्कर्स से ये अनुरोध करते हैं कि आप भी अपने राज्यों में इस तरह के बिल की मांग करें.”

मज़दूर किसान शक्ति संगठन के मुकेश गोस्वामी ने इस बिल के बारे में कहा कि “राजस्थान सरकार उन लोगों के लिए अच्छी पहल कर रही है, जिनको मज़दूर कि पहचान भी नहीं मिल पाई है. प्रस्तावित कानून देश के दूसरे राज्यों के लिए भी एक मिसाल होगा.”

“वेलफेयर बोर्ड के माध्यम से इन कांट्रैक्ट वर्करों को सामाजिक सुरक्षा दी जा सकेगी, जिसकी जिम्मेदारी सम्बंधित सेवा प्रदाता कम्पनियाँ या सरकारें अब तक नहीं ले रही हैं. सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का संचालन सेवा के लिए भुगतान पर लेवी लगाकर करने का प्रस्ताव तार्किक है.”

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राजस्थान के तीन लाख वर्करों को लाभ

भारत सरकार के ई- श्रम पोर्टल पर गिग वर्कर कि श्रेणी में देश भर में लगभग 88 लाख वर्कर पंजीकृत हैं, जिसमें लगभग 3 लाख लोग राजस्थान से हैं. राजस्थान में एप्प आधारित डिलीवरी में लगभग 5 लाख लोग लगे हैं.

नए कानून से ओला, उबर, जोमैटो, स्विगी, अमेज़ॉन आदि कंपनियों से जुड़े लोग लाभान्वित हो सकेंगे.

साल 2029-30 तक इन सेवाओं में देशभर में 2.38 करोड़ लोगों के लिए रोजगार का अनुमान है.

क्या है प्रस्तावित बिल में

इस कानून के तहत गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाने के प्रावधान लागू किये जायेंगे. एप्प आधारित सेवाएं देने वाली कंपनियों और उनके कार्मिकों का पंजीकरण होगा.

एक राजस्तरीय वेलफेयर बोर्ड का गठन होगा, जिसमें राज्य सरकार के साथ ही सेवा प्रदाता कंपनियों और गिग वर्कर्स का प्रतिनिधित्व होगा.

राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित 200 करोड़ रुपये का गिग वर्कर्स वेलफेयर डेवलपमेंट फंड के माध्यम से गिग वर्कर्स के कल्याण और सामाजिक सुरक्षा के लिए योजनाएं संचालित कि जाएंगी.

इस फंड के लिए सेवा अदायगी पर भुगतान किये गए बिल में लेवी (विशेष कर) लगाया जायेगा. सेवा-शर्तों में सुधार तथा कार्यस्थल से सम्बंधित वर्कर्स कि समस्याओं कि सुनवाई और समाधान होगा.

वर्कर्स यूनिटी ने देश के अलग अलग हिस्सों में गिग वर्कर्स से राजस्थान में आ रहे इस बिल के बारे में जब बात की तो उनका भी मानना था कि उन सबको ऐसे कानून कि सख्त जरुरत है.

दिल्ली में गिग वर्कर के रूप में काम कर रहे गुलशन ने बताया कि वो ब्लिंकिट के साथ डिलीवरी बॉय के रूप में काम करते हैं, पांच मिनट में डेलिवरी करने के चक्कर में उनका कई बार एक्सीडेंट हो चुका है लेकिन कंपनी को इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ता. काम के घंटे भी निश्चित नहीं है.

पटना में फ्लिपकार्ट और मिंत्रा के लिए डिलीवर बॉय का काम करने वाले मोहित का कहना है कि “कंपनी बाइक के माइलेज के हिसाब से फ्यूल का पेमेंट करती है और लोग गलत एड्रेस लिख देते हैं और उन्हें कई किलोमीटर ज्यादा बाइक चलानी पड़ती है.

कंपनी टारगेट बेसिस पर काम लेती है और इतनी मेहनत के बाद मिनिमम वेज भी नहीं मिलता. ऐसे में राजस्थान जैसे बिल कि जरूरत राष्ट्रीय स्तर पर है.

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