नीति आयोग रिपोर्ट: 2030 तक गिग वर्करों की संख्या हो सकती है दोगुनी से भी ज्यादा

delivery boys under a tree shade in a traffic jam

भारत में साल 2020-21 में कम से कम 77 लाख गिग वर्कर थे, जो कि कुल गैर खेती मजदूरों के 2.6 फीसदी थे और देश के कुल श्रम बल के 1.5 फीसदी। साल 2019-20 की 68 लाख की संख्या के मुकाबले यह भारी बढ़त है।

ऐसा कहना है नीति आयोग की हाल में जारी की गई रिपोर्ट का जिसके मुताबिक साल 2029-30 तक ये संख्या 2.35 करोड़ तक पहुँच सकती है, जो कि कुल मजदूरों का 4.1 फीसदी होगा।

नीति आयोग की रिपोर्ट India’s Boomin Gig and Platform Economy: Perspectives and Recommendations on Future of Work ये स्पष्ट कहती है कि जानकारी के अभाव के कारण रिपोर्ट में कई खामियां हैं।

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फिलहाल डाटा की कमी के कारण कुल गिग वर्करों की सटीक संख्या का अनुमान लगा पाना मुश्किल है। इसलिए रिपोर्ट ने दूसरे छोटे बड़े शोधों से रोजगार और दूसरे जरूरी पहलू पर उपलब्ध सीमित डाटा के आधार पर गिग अर्थव्यवस्था के आकार का अनुमान लगाया है।

श्रम मंत्रालय की परिभाषा के अनुसार जो भी व्यक्ति पारंपरिक मजदूर-नियोक्ता के रिश्ते से हटकर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करता है, वह गिग वर्कर है।

जो गिग वर्कर किसी तरह के प्लैटफॉर्म, जैसे कि Ola, Uber, Dunzo, Zomato, Swiggy, Urban Company, आदि का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें प्लैटफॉर्म वर्कर भी कहा जाता है।

गिग वर्करों पर डाटा की कमी

रिपोर्ट यह दर्शाती है कि कोरोनाकाल के दौरान भी गिग अर्थव्यवस्था ने परिस्थिति के विपरीत दृढ़ता से लाखों नौकरियां पैदा कीं और समुदायों को जोड़ कर रखा। उसके बावजूद इस क्षेत्र में बहुत कम डाटा उपलब्ध है।

हालांकि, किसी भी तरह के नियम कायदों के अभाव में गिग वर्कर रोज अपने अधिकारों के हनन और मजदूर कानून के उल्लंघन से जूझते हैं।

इस परेशानी को हल करने के लिए श्रम मंत्रालय ने गिग वर्करों को नए लेबर कोड में शामिल किया है। नए लेबर कोड के सामाजिक सुरक्षा कोड में गिग वर्कर्स के लिए अलग श्रेणी बनाई गई है।

हालांकि अभी तक नए लेबर कोड की अभी तक सूचना जारी नहीं की गई है, जिसके बाद ही गिग वर्कर सोशल सिक्युरिटी का फायदा उठा पाएंगे।

सबसे बड़ा हिस्सा रिटेल व्यापार और बिक्री में

रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर गिग वर्कर — लगभग 26.6 लाख — खुदरा यानी रिटेल व्यापार और बिक्री में कार्यरत हैं और लगभग 13 लाख ट्रांसपोर्ट में।

लगभग 6.2 लाख मजदूर उत्पादन क्षेत्र में और 6.3 लाख फाइनैन्स और बीमा क्षेत्र में कार्यरत हैं।

साल 2011-12 से ले कर 2019-20 तक रिटेल सेक्टर में मजदूरों की संख्या में 15 लाख का इजाफा हुआ है।

इस दौरान ट्रांसपोर्ट क्षेत्र में 7.8 लाख मजदूर और उतप्पड़न क्षेत्र में 3.9 लाख मजदूर जुड़े। शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े कामगारों की संख्या में 66,000 से ले कर 1 लाख तक की बढ़ोतरी हुई।

मध्यम कुशलता वाले कामों में मजदूरों की संख्या में गिरावट

फिलहाल 47 फीसदी गिग वर्कर मध्यम कुशलता वाले काम में हैं, 22 फीसदी उच्च कुशलता वाले काम में और लगभग 31 फीसदी निम्न कुशलता वाले कामों में कार्यरत हैं।

रिपोर्ट इस बात पर गौर करती है कि मध्यम कुशलता वाले कामों में मजदूरों की संख्या कम हो रही है और उच्च और निम्न कुशलता वाले कामों में संख्या बढ़ रही है।

नीति आयोग के उपाद्यक्ष, सुमन बेरी ने रिपोर्ट जारी करते वक्त कहा, “यह रिपोर्ट आगे चल कर गिग अर्थव्यवस्था की क्षमता को समझने और बेहतर रिसर्च करने में मददगार साबित होगी।”

नीति आयोग CEO अमिताभ कांत ने बढ़ते शहरीकरण, इंटरनेट के फैलाव और स्मार्टफोन की पहुंच को ध्यान में रखते हुए गिग अर्थव्यवस्था की नौकरी देने की क्षमता पर जोर डाला।

आधिकारिक डाटा के अभाव में गिग वर्कर अदृश्य रह जाते हैं। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि गिग वर्करों की विशिष्ठ गणना की जानी चाहिए, ताकि इस क्षेत्र के असली आकार का अनुमान लगाया जा सके और गिग वर्करों की कार्य विशेष जरूरतों को समझा जा सके।

रिपोर्ट में ये सुझाव भी दिया गया है कि गिग अर्थव्यवस्था की क्षमता को इस्तेमाल करने के लिए गिग वर्करों के लिए समर्पित फाइनैन्स की योजना बनाई जानी चाहिए और उन्हें स्वरोजगार कर रहे व्यक्तियों से जोड़ा जाना चाहिए, जिससे छोटे स्टॉल और ठेलों से भी लोग बड़े बाजार में बिक्री कर सकें।

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