गिग वर्कर्स के लिए कानून बनाने पर राजस्थान के मंत्री का वादा

राजस्थान सरकार ने गिग वर्कर्स के लिए नए कानून बनाने की मंशा जाहिर की है।

राजस्थान सरकार के दो कैबिनेट मंत्रियों ने महाराष्ट्र के माथाड़ी मॉडल पर आधारित, प्लेटफार्म और गिग वर्करों के लिए देश का पहला कानून बनाने का आश्वासन दिया है।

दरअसल बीते 24 जनवरी को जयपुर में प्लेटफार्म और गिग वर्कर्स का “कामगार एवं सामाजिक न्याय” विषय पर सम्मेलन हुआ था। इसमें राजस्थान सरकार के दो कैबिनेट मंत्री राजस्थान सरकार में श्रम राज्य मंत्री सुखराम विश्नोई और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री टीकाराम जूली भी मौजूद थे।

इंडियन फेडरेशन फॉर ऐप बेस्ड ट्रास्पोर्ट वर्कर (IFAT) और सूचना एवम रोजगार अभियान की बैनर तले हुए इस कार्यक्रम में टीकाराम जूली ने कहा, “हम जल्दी ही कानूनी विशेषज्ञों से राय लेकर गिग और प्लेटफार्म वर्कर्स के लिए विधानसभा का जो वर्तमान सत्र चल रहा है उसी में कानून लाने का प्रयास करेंगे।”

कार्यक्रम में उबर, ओला, एमेजॉन, स्विगी, जोमैटो आदि गिग कंपनियों के लिए काम करने वाले डिलीवरी बॉय ने हिस्सा लिया।

ये भी पढ़ें-

एक बड़ा कदम

सूचना के अधिकार आंदोलन और विभिन्न अधिकार-आधारित आंदोलनों से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने सम्मेलन में कहा कि अगर राजस्थान गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के लिए कानून और बोर्ड बनाता है तो यह देश और दुनिया के लिए एक बड़ा कदम होगा।

इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स के शेख सलाउद्दीन ने मंत्रियों के समक्ष वर्कर्स की प्रमुख्य चार मांगों को रखा।

संगठन की मांग

  • गिग और प्लेटफार्म कर्मियों की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
  • सामाजिक सुरक्षा प्रत्येक लेन-देन पर आधारित होनी चाहिए।
  • एग्रीगेटर कंपनियों को रेगुलेट करने के लिए जल्द सख्त कानून बनाया जाए।
  • गिग व प्लेटफार्म कर्मियों के लिए तत्काल त्रिपक्षीय बोर्ड का गठन किया जाए।

आयोजनकर्ताओं ने माथाड़ी मॉडल के अगुआ रहे working peoples charter ( WPC) के संरक्षक बाबा आढव की प्रशंशा की। कॉर्डिनेटर चंदन ने कहा कि बाबा आढव ने 50 साल पहले जो विज़न और विचार कामगारों के लिए देखा था आज उन्हीं सिद्धांतों का इस्तेमाल करके मज़दूर आंदोलन और प्रगतिशील सरकारें जटिल समस्याओं का समाधान ढूंढ रही हैं।

ये भी पढ़ें-

सरकारी नीति बनाने की मांग

गौरतलब है कि डिलीवरी ब्वॉय और ओला उबर जैसी कंपनियों के ड्राइवरों की यूनीयनें लगातार सरकारी नीति बनाने की मांग करती रही हैं।

पिछले साल दुर्गापूजा से लेकर दशहरे तक कई शहरों में डिलीवरी बॉयज़ ने हड़तालें की थीं। कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली, औरंगाबाद में इन हड़तालों से त्योहार के मौके पर फूड फिलीवरी कंपनियों को काफी नुकसान हुआ था।

हालांकि कोई हुई सरकारी नीति न होने की वजह से जग वर्कर्स की लड़ाई कहीं नहीं पहुंच पाती।

वर्कर्स यूनिटी को सपोर्ट करने के लिए सब्स्क्रिप्शन ज़रूर लें- यहां क्लिक करें

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.